.... हालाँकि, ममता बनर्जी ने कांग्रेस की इस रणनीति को 'बुरी रणनीति' करार दिया और जाहिर है कि उनकी बातें चुनाव परिणामों के बात सच ही निकली हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि 'मां, माटी मानुष' के नारे के साथ सत्ता में आईं दीदी के लिए यह चुनाव शारदा घोटाले और स्टिंग के बाद एक कठिन परीक्षा से कम नहीं था, लेकिन चुनाव परिणामों को देखा जाय तो इसका कोई खास असर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल पर नहीं पड़ा है. अब यह बात साफ़ हो गयी है कि यह मुद्दा सिर्फ विपक्ष को उंगली उठाने के मौके से ज्यादा कुछ भी नहीं था और जनता ने भी इसे इसी रूप में लिया! बताते चलें कि ममता की पहचान 'सादगी की प्रतीक' जमीन से जुड़ी ऐसे नेता के रुप में होती है जो शासन-व्यवस्था को जनता के सरोकारों और जन सहभागिता के साथ आगे बढाने में विश्वास करती हैं. यह चुनाव ममता ने अपने दम पर लड़ा और चिर प्रतिद्वंद्वी वामपंथियों और कांग्रेस के एकजुट होने से भी उनके अभियान पर कोई असर नहीं हुआ. सिंगुर और नंदीग्राम में किसानों के हक में जमीन अधिग्रहण विरोधी लड़ाई के जरिए गरीबों की मसीहा के तौर पर उभरीं ममता पर निजी या सार्वजनिक जीवन में उनके रहन-सहन और आचरण पर अब तक सवाल नहीं उठे हैं और यही उनकी यूएसपी (USP) भी है. ...
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भई! यहाँ तो 'दीदी' ही 'दादा' हैं! - 2016 Assembly election in West Bengal, Trinmool Congress is King, Hindi Article, Mithilesh