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गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ - मदन मोहन सक्सेना - Sahityapedia

18 जनवरी 2017

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रचनाकार- मदन मोहन सक्सेना

विधा- अन्य

गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल का ही ग़ज़ल में सन्देश देना चाहता हूँ
ग़ज़ल मरती है नहीं बिश्बास देना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ

ग़ज़ल जीवन का चिरंतन प्राण है या समर्पण का निरापरिमाण है
ग़ज़ल पतझड़ है नहीं फूलों भरा मधुमास है
तृप्ती हो मन की यहाँ ऐसी अनोखी प्यास है
ग़ज़ल के मधुमास में साबन मनाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ

ग़ज़ल में खुशियाँ भरी हैं ग़ज़ल में आंसू भरे
या कि दामन में संजोएँ स्वर्ण के सिक्के खरे
ग़ज़ल के अस्तित्ब को मिटते कभी देखा नहीं
ग़ज़ल के हैं मोल सिक्कों से कभी होते नहीं
ग़ज़ल के दर्पण में ,ग़ज़लों को दिखाना चाहता हूँ

गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल दिल की बाढ़ है और मन की पीर है
बेबसी में मन से बहता यह नयन का तीर है
ग़ज़ल है भागीरथी और ग़ज़ल जीवन सारथी
ग़ज़ल है पूजा हमारी ग़ज़ल मेरी आरती
ग़ज़ल से ही स्बांस की सरगम बजाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ

मदन मोहन सक्सेना

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Introduction- मदन मोहन सक्सेना पिता का नाम: श्री अम्बिका प्रसाद सक्सेना संपादन :1. भारतीय सांस्कृतिक समाज पत्रिका २. परमाणु पुष्प , प्रकाशित पुस्तक:१. शब्द सम्बाद (साझा काब्य संकलन)२. कबिता अनबरत 3. मेरी प्रचलित गज़लें 4. मेरी इक्याबन गजलें मेरा फेसबुक पेज : ( 1980 + लाइक्स) https://www.facebook.com/MadanMohanSa

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दो दिन के बाद स्वतंत्रता दिवस है यानि की १५ अगस्त सरकारी अमला जोर शोर से तैयारी कर रहा हैस्कूल के बच्चे और टीचर अपने तरह से जुटे हुए हैं  पर्ब मनाने के लिएकुछ लोग छुट्टी जाकरलॉन्ग वीकेंड को मनाने को लेकर उत्साहित हैंछोटी मुनिया , छोटूये सोच कर बहु खुश है किपेपर और प्लास्ट

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बचपन

20 जुलाई 2016
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कविता ,आलेख और मैं : खेल ओलंपिक और हम

17 अगस्त 2016
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      बीसबीं सदी के पुर्बाध में भूतकाल के शुष्क धरातल पर जब हमारें पुर्बजों ने भबिष्य की आबश्यक्तायों की   पूर्ति के लिए अपने देश में   आयत करके भ्रष्टाचार का एक बीज रोपा था इस बिश्बास के साथ किआगे आने बाले समय  में नयी पीढ़ियों का जीवन सुखद सरल एबम सफल होगा किन्तु इस आशं

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ग़ज़ल (हक़ीकत)

22 जुलाई 2016
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 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (हक़ीकत)

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मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : हे ईश्वर

19 अगस्त 2016
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हे ईश्वर आखिर तू ऐसा क्यूँ करता है अशिक्षित ,गरीब ,सरल लोग तो अपनी ब्यथा सुनाने के लिए तुझसे मिलने के लिए ही आ रहे थे बे सुनाते भी तो भला किस को आखिर कौन उनकी सुनता ?और सुनता भी तो कौन उनके कष्टों को दूर करता ?उन्हें बिश्बास था कि तू तो रहम करेगा किन्तु सुनने की बात तो द

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मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : मुक्तक (किस्मत)

19 अगस्त 2016
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मुक्तक (किस्मत)रोता नहीं है कोई भी किसी और के लिएसब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते हैंप्यार की दौलत को कभी छोटा न समझना तुमहोते है बदनसीब ,जो पाकर इसे खोते हैं मुक्तक प्रस्तुति:मदन मोहन सक्सेना मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : मुक्तक (किस्मत)

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गज़ल (तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा)

25 जुलाई 2016
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 मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : गज़ल (तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा)

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ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल( समय से कौन जीता है समय ने खेल खेले हैं)

22 अगस्त 2016
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ग़ज़ल(समय से कौन जीता है समय ने खेल खेले हैं)अपनी जिंदगी गुजारी है ख्बाबों के ही सायें में ख्बाबों में तो अरमानों के जाने कितने मेले हैं भुला पायेंगें कैसे हम ,जिनके प्यार के खातिर सूरज चाँद की माफिक हम दुनिया में अकेले हैं महकता है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत ही मुहब

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ग़ज़ल (ये कैसा परिवार )

21 जुलाई 2016
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 गज़ल (ये कैसा परिवार) | जय विजय

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श्री कृष्णजन्माष्टमी का पर्ब आप सबको मंगलमय हो - Sahityapedia

25 अगस्त 2016
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उत्थान पतन मेरे भगवन है आज तुम्हारे हाथों मेंप्रभु जीत तुम्हारें हाथों में प्रभु हार तुम्हारें हाथों में मुझमें तुममें है फर्क यही मैं नर हूँ तुम नारायण होमैं खेलूँ जग के हाथों में संसार तुम्हारें हाथों मेंतुम दीनबंधु दुखहर्ता हो तुम जग के पालन करता होइस मुर्ख खल और क

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ग़ज़ल (पहचान)

25 जुलाई 2016
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 ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल (पहचान)

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मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (निगाहों में बसी सूरत फिर उनको क्यों तलाशे है)

7 सितम्बर 2016
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कुछ इस तरह से हमने अपनी जिंदगी गुजारी है ना जीने की तमन्ना है ना मौत हमको प्यारी हैलाचारी का दामन आज हमने थाम रक्खा है उनसे किस तरह कह दें कि उनकी सूरत प्यारी हैनिगाहों में बसी सूरत फिर उनको क्यों तलाशे हैना जाने ऐसा क्यों होता और कैसी बेकरारी हैबादल बेरुखी के दिखने प

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इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर

13 जून 2016
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इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबरहर सुबह रंगीन अपनी शाम हर मदहोश हैवक़्त की रंगीनियों का चल रहा है सिलसिलाचार पल की जिंदगी में ,मिल गयी सदियों की दौलतजब मिल गयी नजरें हमारी ,दिल से दिल अपना मिलानाज अपनी जिंदगी पर ,क्यों न हो हमको भलाकई मुद्द्दतों के बाद फिर अरमानों का पत्ता हिलाइश्क क्या

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कविता ,आलेख और मैं : हम आप और हिंदी ( १४ सितम्बर )

14 सितम्बर 2016
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हिंदी दिवस की आप सबको शुभ कामनाएं लिखो जज्बात हिंदी में करो हर बात हिंदी में हम भी बोले हिंदी में तुम भी बोलो हिंदी में जय हिंदी जय हिंदुस्तान मै भारत बने महान हम आप और हिंदी ( १४ सितम्बर )मदन मोहन सक्सेना कविता ,आलेख और मैं : हम आप और हिंदी ( १४ सितम्बर )

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ग़ज़ल (मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी)

26 जुलाई 2016
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 ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल (मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी)

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मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : आखिर कब तक

20 सितम्बर 2016
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आखिर कब तक फिर एक बार देश ने आंतकी हमला झेलाफिर एक बार कई सैनिक शहीद हो गए फिर एक बार परिबारों ने अपनोँ को खोने का दंश झेला फिर एक बार गृह , रक्षा मंत्री ने घटना स्थल का दौरा कियाफिर एक बार मंत्रियों ने प्रधान मंत्री को रिपोर्ट दीफिर एक बार हाई लेवल मीटिंग की गयी फिर एक

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मुक्तक (जान)

22 जुलाई 2016
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 मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : मुक्तक (जान)

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कविता ,आलेख और मैं : सब एक जैसे

6 अक्टूबर 2016
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सब एक जैसेआमिर शाहरुख़ सलमान सब एक जैसे सिर्फ चिंता अपनी फिल्मों की

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ग़ज़ल गंगा: मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ६ ,मार्च २०१६ में

27 जुलाई 2016
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 ग़ज़ल गंगा: मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ६ ,मार्च २०१६ में

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मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : पति पत्नी और करबाचौथ

18 अक्टूबर 2016
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कल यानि १९ अक्टूबर के दिन करवाचौथ पर भारतबर्ष में सुहागिनें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए चाँद दिखने तक निर्जला उपबास रखती है . पति पत्नी का रिश्ता समस्त उतार चदाबों के साथ इस धरती पर सबसे जरुरी और पवित्र रिश्ता है .आज के इस दौर में जब सब लोग एक दुसरे की जान लेने पर तु

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ग़ज़ल ( प्यारे पापा डैड हो गए )

7 जून 2016
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ग़ज़ल ( प्यारे पापा डैड हो गए )माता मम्मी अम्मा कहकर बच्चे प्यार जताते थेमम्मी अब तो ममी हो गयीं प्यारे पापा डैड हो गएपिज्जा बर्गर कोक भा गया नए ज़माने के लोगों कोदही जलेबी हलुआ पूड़ी सब के सब क्यों  बैड हो गएगौशाला में गाय नहीं है ,दिखती अब चौराहों मेंघर घर कुत्ते राज कर रहें  मालिक उनके मैड हो गएकैसे

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ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल(चार पल की जिंदगी में चंद साँसों का सफर)

21 अक्टूबर 2016
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क्या गुल खिलाया आजकल वक़्त की रफ़्तार नेदर्द हमसे हमसफ़र बनकर के मिला करते हैंइश्क का तो दर्द से रिश्ता ही कुछ ऐसा रहा फूल भी खारों के बीच अक्सर खिला करतें हैं डर किसे कहतें हैं हमको उस समय मालूम चला जब कभी भूले से हम खुद से मिला करतें हैंअंदाज बदला दोस्ती का इस तरह से आज

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मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ८ ,मई २०१६ में प्रकाशित

27 जुलाई 2016
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 मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ८ ,मई २०१६ में प्रकाशित

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मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार

27 अक्टूबर 2016
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मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहारजीवन में आती रहे पल पल नयी बहारईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकारलक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..मुझको जो भी मिलना हो ,बह तुमको ही मिले दौलततमन्ना मेरे दिल की है, सदा मिलती रहे शोहरतसदा मिलती रहे शोहरत ,रोशन नाम तेरा होग़मों का न तो स

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सपनो में सूरत

22 जुलाई 2016
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 मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : सपनो में सूरत

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मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : चलो हम अपने अहम् को जलाकर रौशनी कर लें

28 अक्टूबर 2016
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बह हमसे बोले हँसकर कि आज है दीवालीउदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा नहीं तालीमैं कैसें उनसे बोलूँ कि जेब मेरी ख़ालीजब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ तालीबह बोले मुस्कराके धन से क्यों न खेलते तुमदेखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते तुमइन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते ह

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ग़ज़ल (चार पल) - Sahityapedia

28 जुलाई 2016
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 ग़ज़ल (चार पल) - Sahityapedia

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गज़ल/गीतिका (समय ये आ गया कैसा) - Sahityapedia

28 अक्टूबर 2016
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गज़ल/गीतिका (समय ये आ गया कैसा)दीवारें ही दीवारें , नहीं दीखते अब घर यारोंबड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले हैंउलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल हैसमय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैंजिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता हैदुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैंज

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खुशबुओं की बस्ती

16 जून 2016
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खुशबुओं  की   बस्ती खुशबुओं  की   बस्ती में  रहता  प्यार  मेरा  है आज प्यारे प्यारे सपनो ने आकर के मुझको घेरा है उनकी सूरत का आँखों में हर पल हुआ यूँ बसेरा हैअब काली काली रातो में मुझको दीखता नहीं अँधेरा है  जब जब देखा हमने दिल को ,ये लगता नहीं मेरा है प्यार पाया जब से उनका हमने ,लगता हर पल ही सुनहर

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मैं उजाला और दीपावली - Sahityapedia

28 अक्टूबर 2016
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बह हमसे बोले हँसकर कि आज है दीवालीउदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा नहीं तालीमैं कैसें उनसे बोलूँ कि जेब मेरी ख़ालीजब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ तालीबह बोले मुस्कराके धन से क्यों न खेलते तुमदेखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते तुमइन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते ह

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अपनी ढपली, राग भी अपना - Sahityapedia

28 जुलाई 2016
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 अपनी ढपली, राग भी अपना - Sahityapedia

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ग़ज़ल गंगा: दिवाली और मेरे शेर

28 अक्टूबर 2016
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दिवाली और मेरे शेर दिवाली का पर्व है फिर अँधेरे में हम क्यों रहें चलो हम अपने अहम् को जलाकर रौशनी कर लें *************************************दिवाली का पर्व है अँधेरा अब नहीं भाता मुझे आज फिर मैंने तेरी याद के दीपक जला लिए दीपाबली शुभ हो मदन मोहन सक्सेना ग़ज़ल गंगा:

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बिनती

22 जुलाई 2016
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 मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : बिनती

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मैं , शेर और साहित्यपीडिया

2 नवम्बर 2016
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महकता है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत हीमुहब्बत को निभाने में फिर क्यों सारे झमेले हैं http://wp.me/p7uU2K-1L5 गज़ब हैं रंग जीबन के गजब किस्से लगा करते जबानी जब कदम चूमे बचपन छूट जाता है http://wp.me/p7uU2K-1Bt हर पल याद रहती है निगाहों में बसी सूरत तमन्ना अपनी रहती है खुद क

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मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट , ग़ज़ल (मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी)जागरण जंक्शन में प्रकाशित

29 जुलाई 2016
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 मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट , ग़ज़ल (मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी)जागरण जंक्शन में प्रकाशित

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कविता ,आलेख और मैं : जिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता

3 नवम्बर 2016
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दीवारें ही दीवारें , नहीं दीखते अब घर यारोंबड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले हैंउलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल हैसमय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैंजिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता हैदुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैंजीवन के सफ़र में जो पाया है सहेज

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सफर (घर से मरघट तक )

3 जून 2016
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आँख से अब नहीं दिख रहा है जहाँ ,आज क्या हो रहा है मेरे संग यहाँ .माँ का रोना नहीं अब मैं सुन पा रहा ,कान मेरे ये दोनों क्यों बहरें हुए.उम्र भर जिसको अपना मैं कहता रहा ,दूर जानो को बह मुझसे बहता रहा.आग होती है क्या आज मालूम चला,जल रहा हूँ मैं चुपचाप ठहरे हुए.शाम ज्यों धीरे धीरे सी ढलने लगी, छोंड तनहा

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जय हिंदी जय हिंदुस्तान मेरा भारत बने महान - Sahityapedia

4 नवम्बर 2016
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जय हिंदी जय हिंदुस्तान मेरा भारत बने महानगंगा यमुना सी नदियाँ हैं जो देश का मन बढ़ाती हैंसीता सावित्री सी देवी जो आज भी पूजी जाती हैंयहाँ जाति धर्म का भेद नहीं सब मिलजुल करके रहतें हैंगाँधी सुभाष टैगोर तिलक नेहरु का भारत कहतें हैंयहाँ नाम का कोई जिक्र नहीं बस काम ही देखा

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कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है - Open Books Online

4 अगस्त 2016
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कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ हैअँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने परबिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किलख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी हैसमय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किलकहने को तो कह लेते है अपन

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मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : मैं ,शेर और साहित्यपीडिया भाग दो

4 नवम्बर 2016
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हमेशा साथ चलने की दिलासा हमको दी जिसनेबीते कल को हमसे बो अब चुराने की बात करते हैंhttp://wp.me/p7uU2K-U6गीत ग़ज़ल जिसने भी मेरे देखे या सुनेतब से शायर बह हमको बताने लगेहाल देखा मेरा तो दुनिया बाले ये बोलेमदन हमको तो दुनिया से बेगाने लगेhttp://wp.me/p7uU2K-NOमेरे जो भी सपने

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गज़ल (समय ये आ गया कैसा )

22 जुलाई 2016
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 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : गज़ल (समय ये आ गया कैसा )

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ग़ज़ल गंगा: मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक १ ,अक्टूबर २०१६ में प्रकाशित

8 नवम्बर 2016
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ग़ज़ल गंगा: मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक १ ,अक्टूबर २०१६ में प्रकाशित

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ग़ज़ल ( मम्मी तुमको क्या मालूम )

22 जुलाई 2016
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 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल ( मम्मी तुमको क्या मालूम )

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मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ११ ,अगस्त २०१६ में प्रकाशित

5 अगस्त 2016
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मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ११ ,अगस्त २०१६ में प्रकाशितग़ज़ल  (बचपन यार अच्छा था)जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भीबचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता थाबारीकी जमाने की, समझने में उम्र गुज़रीभोले भाले चेहरे में सयानापन समाता थामिलते हाथ हैं लेकिन दिल मिलते नहीं यारों

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ग़ज़ल ( मम्मी तुमको क्या मालूम )

8 जून 2016
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ग़ज़ल ( मम्मी तुमको क्या मालूम )सुबह सुबह अफ़रा तफ़री में फ़ास्ट फ़ूड दे देती माँ तुमटीचर क्या क्या देती ताने , मम्मी तुमको क्या मालूमक्या क्या रूप बना कर आती ,मम्मी तुम जब लेने आतीलोग कैसे किस्से लगे सुनाने , मम्मी तुमको क्या मालूमरोज पापा जाते पैसा पाने , मम्मी तुम घर लगी सजानेपूरी कोशिश से पढ़ते हम , मम

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मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट (जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित)

5 अगस्त 2016
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मेरी पोस्ट (जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित)प्रस्तुत ब्लॉग में मैनें उन ग़ज़लों और रचनाओं को एक जगह संकलित करने का प्रयास किया है , जिन्हें किसी पत्रिका ,मैग्जीन ,अखबार,संस्करण या किसी वेव साइट में शामिल किया गया है। आशा ही नहीं बल्कि पूरा बिश्वास

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ग़ज़ल (हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है )

22 जुलाई 2016
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 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है )

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कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है - Open Books Online

5 अगस्त 2016
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कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ हैअँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने परबिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किलख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी हैसमय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किलकहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हमजुबां से दिल की बात

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समय ये आ गया कैसा

23 जून 2016
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समय ये आ गया कैसा दीवारें ही दीवारें , नहीं दीखते अब घर यारोंबड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले हैंउलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल हैसमय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैंजिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता हैदुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैंजीवन के सफ़र में जो पाया है सहेजा हैखोया ह

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ग़ज़ल गंगा: ( ग़ज़ल ) हर पल याद रहती है निगाहों में बसी सूरत

8 अगस्त 2016
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( ग़ज़ल ) हर पल याद रहती है निगाहों में बसी सूरतसजा  क्या खूब मिलती है किसी   से   दिल  लगाने  की तन्हाई  की  महफ़िल  में  आदत  हो  गयी   गाने  की  हर  पल  याद  रहती  है  निगाहों  में  बसी  सूरत  तमन्ना  अपनी  रहती  है  खुद  को  भूल  जाने  की  उम्मीदों   का  काजल   

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ग़ज़ल (कंक्रीट के जंगल)

22 जुलाई 2016
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 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (कंक्रीट के जंगल)

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कविता ,आलेख और मैं : बहन भाई और रक्षा बंधन

9 अगस्त 2016
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बहन भाई और रक्षा बंधनराखी का त्यौहार आ ही गया ,इस  त्यौहार को मनाने  के लिए या कहिये की मुनाफा कमाने के लिए समाज के सभी बर्गों ने कमर कस ली है। हिन्दुस्थान में राखी की परम्परा काफी पुरानी है . बदले दौर में जब सभी मूल्यों का हास हो रहा हो तो भला राखी का त्यौहार इससे अछ

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ग़ज़ल ( जिंदगी जिंदगी)

3 जून 2016
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ग़ज़ल ( जिंदगी जिंदगी)तुझे पा लिया है जग पा लिया है अब दिल में समाने लगी जिंदगी है कभी गर्दिशों की कहानी लगी थी मगर आज भाने लगी जिंदगी है समय कैसे जाता समझ मैं ना पाता अब समय को चुराने लगी जिंदगी है कभी ख्बाब में तू हमारे थी आती अब सपने सजाने लगी जिंदगी है तेरे प्यार का ये असर हो गया है अब मिलने मिलान

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कविता ,आलेख और मैं : ग़ज़ल(ना जाने कितनी यादों के तोहफे हमको दे डाले)

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  वक़्त  की साजिश समझ कर, सब्र करना सीखियेंदर्द से ग़मगीन वक़्त यूँ  ही गुजर जाता है जीने का नजरिया तो  मालूम है उसी को बस अपना गम भुलाकर जो हमेशा मुस्कराता है अरमानों  के सागर में  छिपे चाहत के मोती को बेगानों की दुनिया में कोई अकेला जान पाता है शरीफों की शरारत का नजारा ह

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ग़ज़ल (अजब गजब सँसार )

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 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (अजब गजब सँसार )

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Hindi Sahitya | Hindi Poems | Hindi Kavita | hindi poems for kids

12 अगस्त 2016
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राखी का त्यौहार आ ही गया ,इस त्यौहार को मनाने के लिए या कहिये की मुनाफा कमाने के लिए समाज के सभी बर्गों ने कमर कस ली है। हिन्दुस्थान में राखी की परम्परा काफी पुरानी है . बदले दौर में जब सभी मूल्यों का हास हो रहा हो तो भला राखी का त्यौहार इससे अछुता कैसे रह सकता है। मुझे

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ग़ज़ल (जिंदगी का ये सफ़र )

27 जून 2016
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कल तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआइक शक्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान हैबीती उम्र कुछ इस तरह की खुद से हम न मिल सकेजिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अनजान हैगर कहोगें दिन को दिन तो लोग जानेगें गुनाहअब आज के इस दौर में दीखते नहीं इन्सान हैइक दर्द का एहसास हमको हर समय मिलता रहाये वक़्त की साजिश है या

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मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : तुम्हारी याद आती है

12 अगस्त 2016
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 तुम्हारी याद आती हैजुदा हो करके के तुमसे अब ,तुम्हारी याद आती हैमेरे दिलबर तेरी सूरत ही मुझको रास आती हैकहूं कैसे मैं ये तुमसे बहुत मुश्किल गुजारा हैभरी दुनियां में बिन तेरे नहीं कोई सहारा हैमुक्कद्दर आज रूठा है और किस्मत आजमाती हैनहीं अब चैन दिल को है न मुझको नींद आती ह

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ग़ज़ल (दुआ)

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 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (दुआ)

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ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल (तुम्हारी याद)

16 अगस्त 2016
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ग़ज़ल (तुम्हारी याद)तुम्हारी याद जब आती तो मिल जाती ख़ुशी हमको जब तुमको पास पायेंगे तो मेरा हाल क्या होगा तुमसे दूर रह करके तुम्हारी याद आती है मेरे पास तुम होगे तो यादों का फिर क्या होगा तुम्हारी मोहनी सूरत तो हर पल आँख में रहतीदिल में जो बसी सूरत उस सूरत का  फिर क्या होगा

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मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ९ ,जून २०१६ में प्रकाशित

8 जून 2016
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प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ९  ,जून  २०१६ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ सुबह हुयी और बोर हो गएजीवन में अब सार नहीं हैरिश्तें अपना मूल्य खो रहेअपनों में वो प्यार नहीं हैजो दादा के दादा ने देखाअब बैसा संसार नहीं

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ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल (तुम्हार साथ जब होगा नजारा ही नया होगा )

17 अगस्त 2016
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तुम्हारी याद जब आती तो मिल जाती ख़ुशी हमको जब तुमको पास पायेंगे तो मेरा हाल क्या होगा तुमसे दूर रह करके तुम्हारी याद आती है मेरे पास तुम होगे तो यादों का फिर क्या होगा तुम्हारी मोहनी सूरत तो हर पल आँख में रहतीदिल में जो बसी सूरत उस सूरत का  फिर क्या होगा अपनी हर ख़ुशी हमक

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ग़ज़ल (सबकी ऐसे गुजर गयी)

22 जुलाई 2016
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 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (सबकी ऐसे गुजर गयी)

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राखी रक्षा बंधन और रिश्तें | जय विजय

18 अगस्त 2016
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राखी का त्यौहार आ ही गया ,इस त्यौहार को मनाने के लिए या कहिये की मुनाफा कमाने के लिए समाज के सभी बर्गों ने कमर कस ली है। हिन्दुस्थान में राखी की परम्परा काफी पुरानी है . बदले दौर में जब सभी मूल्यों का हास हो रहा हो तो भला राखी का त्यौहार इससे अछुता कैसे रह सकता है। मुझे

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बिलकुल तुम पर

21 जुलाई 2016
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 कविता ,आलेख और मैं : (बिलकुल तुम पर)

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कविता ,आलेख और मैं : मेरी पोस्ट , आ गया राखी का पर्ब जागरण जंक्शन में प्रकाशित

18 अगस्त 2016
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http://madansbarc.jagranjunction.com/2016/08/09/%E0%A4%86-%E0%A4%97%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AC/ राखी का त्यौहार आ ही गया ,इस त्यौहार को मनाने के लिए या कहिये की मुनाफा कमाने के लिए समाज

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प्रेम के रिश्ते हों सबसे ,प्यार का संसार हो

22 जुलाई 2016
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 मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : प्रेम के रिश्ते हों सबसे ,प्यार का संसार हो

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मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : ये दुनिया

19 अगस्त 2016
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ये दुनियाये पैसों की दुनिया ये काँटों की दुनियायारों ये दुनिया जालिम बहुत हैअरमानो की माला मैनें जब भी पिरोईहमको ये दुनिया तो माला पिरोने नहीं देती..ये गैरों की दुनियां ये काँटों की दुनियादौलत के भूखों और प्यासों की दुनियासपनो के महल मैंने जब भी संजोये हमको ये दुनिया तो स

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मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : प्यार ही प्यार

19 अगस्त 2016
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रा ये संसार हैप्यार पाने को दुनिया में तरसे सभी, प्यार पाकर के हर्षित हुए हैं सभीप्यार से मिट गए सारे शिकबे गले ,प्यारी बातों पर हमको ऐतबार है प्यार के गीत जब गुनगुनाओगे तुम ,उस पल खार से प्यार पाओगे तुम प्यार दौलत से मिलता नहीं है कभी ,प्यार पर हर किसी का अधिकार है प्यार

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जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा | मैं, लेखनी और जिंदगी

25 जुलाई 2016
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जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा शहर में ठिकाना खोजा पता नहीं जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा | मैं, लेखनी और जिंदगी

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मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : रहमत

19 अगस्त 2016
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रहमत रहमत जब खुदा की हो तो बंजर भी चमन होता खुशिया रहती दामन में और जीवन में अमन होतामर्जी बिन खुदा यारो तो जर्रा हिल नहीं सकताखुदा जो रूठ जाये तो मय्यसर न कफ़न होतामन्नत पूरी करना है खुदा की बंदगी कर लोजियो और जीने दो खुशहाल जिंदगी कर लोमर्जी जब खुदा की हो तो पूरे अपने

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ग़ज़ल (आये भी अकेले थे और जाना भी अकेला है)

21 जुलाई 2016
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कविता ,आलेख और मैं : प्यार तो है सबसे परे ,ना उसका कोई चेहरा है

19 अगस्त 2016
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खुशबुओं की बस्ती में रहता प्यार मेरा है आज प्यारे प्यारे सपनो ने आकर के मुझको घेरा है उनकी सूरत का आँखों में हर पल हुआ यूँ बसेरा हैअब काली काली रातो में मुझको दीखता नहीं अँधेरा है जब जब देखा हमने दिल को ,ये लगता नहीं मेरा है प्यार पाया जब से उनका हमने ,लगता हर पल

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ग़ज़ल (इश्क क्या है

25 जुलाई 2016
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मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : मुक्तक ( यदि पत्थर को समझाते)

23 अगस्त 2016
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मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : मुक्तक ( यदि पत्थर को समझाते)

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हर जगह इक शख्श का मुझे चेहरा नजर आता है

12 जून 2016
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हम आज तक खामोश हैं  और वो भी कुछ कहते नहींदर्द के नग्मों  में हक़ बस मेरा नजर आता है देकर दुआएँ  आज फिर हम पर सितम वो  कर गएअब क़यामत में उम्मीदों का सवेरा नजर आता हैक्यों रोशनी के खेल में अपना आस का पँछी  जलाहमें अँधेरे में हिफाज़त का बसेरा नजर आता हैइस कदर अनजान हैं  हम आज अपने

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अब तो आ कान्हा जाओ, इस धरती पर सब त्रस्त हुए ( कृष्ण जन्माष्टमी बिशेष ) - Sahityapedia

24 अगस्त 2016
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अब तो आ कान्हा जाओ, इस धरती पर सब त्रस्त हुए ( कृष्ण जन्माष्टमी बिशेष )अब तो आ कान्हा जाओ, इस धरती पर सब त्रस्त हुएदुःख सहने को भक्त तुम्हारे आज सभी अभिशप्त हुएनन्द दुलारे कृष्ण कन्हैया ,अब भक्त पुकारे आ जाओप्रभु दुष्टों का संहार करो और प्यार सिखाने आ जाओ एक रोज हम यूँ

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ग़ज़ल ( दिल में दर्द जगाता क्यों हैं )

25 जुलाई 2016
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 ग़ज़ल ( दिल में दर्द जगाता क्यों हैं ) - Sahityapedia

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श्री कृष्णजन्माष्टमी का पर्ब आप सबको मंगलमय हो | मैं, लेखनी और जिंदगी

25 अगस्त 2016
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Posted On 25 Aug, 2016 कविता में उत्थान पतन मेरे भगवन है आज तुम्हारे हाथों मेंप्रभु जीत तुम्हारें हाथों में प्रभु हार तुम्हारें हाथों में मुझमें तुममें है फर्क यही मैं नर हूँ तुम नारायण होमैं खेलूँ जग के हाथों में संसार तुम्हारें हाथों मेंतुम दीनबंध

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ग़ज़ल ( सब कुछ तो ब्यापार हुआ )

21 जुलाई 2016
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 ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल ( सब कुछ तो ब्यापार हुआ )

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कविता ,आलेख और मैं : मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक १२ ,सितम्बर २०१६ में प्रकाशित

6 सितम्बर 2016
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प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक १२ ,सितम्बर २०१६ में प्रकाशितहुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .अपनी जिंदगी गुजारी है ख्बाबों के ही सायें में ख्बाबों में तो अरमानों के जाने कितने मेले हैं भुला पायें

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मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : सांसों के जनाजें को तो सव ने जिंदगी जाना

25 जुलाई 2016
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 मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : सांसों के जनाजें को तो सव ने जिंदगी जाना

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मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल(अब सुबह से शाम तक नाम तेरा है लबों पर)

9 सितम्बर 2016
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जानकर अपना तुम्हें हम हो गए अनजान खुद सेदर्द है क्यों अब तलक अपना हमें माना नहीं हैअब सुबह से शाम तक नाम तेरा है लबों परसाथ हो अपना तुम्हारा और कुछ पाना नहीं हैगर कहोगी रात को दिन दिन लिखा बोला करेंगेग़ज़ल जो तुमको न भाए वो हमें गाना नहीं हैगर खुदा भी रूठ जाय

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ग़ज़ल (माँ का एक सा चेहरा)

6 जून 2016
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ग़ज़ल (माँ का एक सा चेहरा)बदलते बक्त में मुझको दिखे बदले हुए चेहरेमाँ का एक सा चेहरा , मेरे मन में पसर जातानहीं देखा खुदा को है ना ईश्वर से मिला मैं हुँमुझे माँ के ही चेहरे मेँ खुदा यारों नजर आतामुश्किल से निकल आता, करता याद जब माँ कोमाँ कितनी दूर हो फ़िर भी दुआओं में असर आताउम्र गुजरी ,जहाँ देखा, लिया

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मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : देखते है कि आपका मुँह खुलेगा भी या नहीं

12 सितम्बर 2016
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होली के अबसर पर पानी की बर्बादी की बात करने बाले शिवरात्रि पर शिव पर दूध अर्पित करने को कुपोषण से जोड़ने बाले और दूध की कमी का रोने बाले प्रकाश उत्सब पर पर्याबरण की चिंता करने बाले तथाकथित बुद्धिजीबी लोग कल बकरीद आने बाली है हम भी आपके मुख से जीब हत्या और सही क़ुरबानी

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ग़ज़ल (मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी)

26 जुलाई 2016
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मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल ( सच्ची बात किसको आज सुनना अच्छी लगती है)

15 सितम्बर 2016
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1- ब्लॉग पर प्रकाशित रचनाएँ बिना अनुमति के उद्धृत न करें।किसी भी सामग्री को उद्धृत करने के लिए ब्लॉग लेखक की अनुमति अनिवार्य है। अनुमति प्राप्त करने के लिए इसमेल पर सम्पर्क करें-madansaxena1969@gmail.com2- ब्लॉग की किसी भी सामग्री को चुराकर अपने नाम से प्रकाशित

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तुम्हारी याद आती है

22 जुलाई 2016
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 मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : तुम्हारी याद आती है

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कविता ,आलेख और मैं : फिर एक बार

19 सितम्बर 2016
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फिर एक बार फिर एक बार देश ने आंतकी हमला झेला फिर एक बार कई सैनिक शहीद हो गए फिर एक बार परिबारों ने अपनोँ को खोने का दंश झेला फिर एक बार गृह , रक्षा मंत्री ने घटना स्थल का दौरा किया फिर एक बार हाई लेवल मीटिंग की गयी फिर एक बार सभी दलों ने घटना की निंदा की फिर एक बार मीडिय

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मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल ( सपने सजाने लगा आजकल हूँ)

26 जुलाई 2016
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 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल ( सपने सजाने लगा आजकल हूँ)

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ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल ( मुहब्बत है इश्क़ है प्यार है या फिर कुछ और )

23 सितम्बर 2016
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लोग कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती हैहम नजरें भी मिलाते हैं तो चर्चा हो जाती है.दिल पर क्या गुज़रती है जब वह दूर होते हैं पाते पास उनको हैं तो रौनक आ जाती है .आकर के ख्यालों में क्यों नीदें वे चुराते हैंरहते दूर जब हमसे तो हर पल याद आती है.हमको प्यार है उनसे कर

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गज़ल ( सेक्युलर कम्युनल )

13 जून 2016
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गज़ल ( सेक्युलर कम्युनल )जब से बेटे जबान हो गएमुश्किल में क्यों प्राण हो गएकिस्से सुन सुन के संतों केभगवन भी हैरान हो गएआ धमके कुछ ख़ास बिदेशीघर बाले मेहमान हो गएसेक्युलर कम्युनल के चक्कर मेंगाँव गली शमसान हो गएकैसा दौर चला है अब येसदन कुश्ती के मैदान हो गएबिन माँगें सब राय दे दिएकितनों के अहसान हो गए

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ग़ज़ल गंगा: मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक १ ,अक्टूबर २०१६ में प्रकाशित

6 अक्टूबर 2016
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ग़ज़ल गंगा: मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक १ ,अक्टूबर २०१६ में प्रकाशित

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ग़ज़ल गंगा: मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक १० ,जुलाई २०१६ में प्रकाशित

27 जुलाई 2016
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 ग़ज़ल गंगा: मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक १० ,जुलाई २०१६ में प्रकाशित

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कविता ,आलेख और मैं : मेरे दो शेर

7 अक्टूबर 2016
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मेरे दो शेर एक कौन किसी का खाता है अपनी किस्मत का सब खातेमिलने पर सब होते खुश हैं ना मिलने पर गाल बजाते************************************************** दो कौन साथ ले जा पाया है रुपया पैसा महल अटारीधरा ,धरा पर ही रह जाता इस दुनिया से जब हम जातेमदन मोहन सक्सेना कविता ,आल

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जय हिंदी जय हिंदुस्तान

22 जुलाई 2016
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 मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : जय हिंदी जय हिंदुस्तान

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ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल ( कौन साथ ले जा पाया है रुपया पैसा महल अटारी)

10 अक्टूबर 2016
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कौन किसी का खाता है अपनी किस्मत का सब खातेमिलने पर सब होते खुश हैं ना मिलने पर गाल बजातेकौन साथ ले जा पाया है रुपया पैसा महल अटारीधरा ,धरा पर ही रह जाता इस दुनिया से जब हम जातेइन्सां की अब बातें छोड़ों ,हमसे अच्छे भले परिंदेमंदिर मस्जिद गुरूदारे में दाना देखा चुगने जातेअग

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ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल(देकर दुआएँ आज फिर हम पर सितम वो कर गए

27 जुलाई 2016
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 ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल(देकर दुआएँ आज फिर हम पर सितम वो कर गए

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कविता ,आलेख और मैं : परम्पराओं का पालन या अँध बिश्बास का खेल (करबा चौथ )

18 अक्टूबर 2016
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परम्पराओं का पालन या अँध बिश्बास का खेल (करबा चौथ )करवाचौथ के दिनभारतबर्ष में सुहागिनेंअपने पति की लम्बी उम्र के लिएचाँद दिखने तक निर्जला उपबास रखती है .पति पत्नी का रिश्ता समस्तइस धरती पर सबसे जरुरी और पवित्र रिश्ता हैआज के इस दौर में जब सब लोगएक दुसरे की जान लेने पर तु

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ग़ज़ल ( दिल में दर्द जगाता क्यों हैं )

3 जून 2016
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ग़ज़ल ( दिल में दर्द जगाता क्यों हैं )गर दबा नहीं है दर्द की तुझ पेदिल में दर्द जगाता क्यों हैं जो बीच सफर में साथ छोड़ देउन अपनों से मिलबाता क्यों हैं क्यों भूखा नंगा ब्याकुल बचपनपत्थर भर पेट खाता क्यों हैं अपने ,सपने कब सच होतेतन्हाई में डर जाता क्यों हैं चुप रह कर सब जुल्म सह रहेअपनी बारी पर चिल्लात

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कविता ,आलेख और मैं : ऐ दिल है मुश्किल'

21 अक्टूबर 2016
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करण जोहर पाकिस्तानी कलाकार फबाद खान उरी और पठानकोट हमला निर्दोष जबान शहीद सर्जिकल स्ट्राइक देश प्रथम कला और कलाकार अ-राजनैतिक घोषित महेश भट्ट , सलमान खान ,सईद मिर्जा अनुपम खेर , अशोक पंडित , राज ठाकरे मुम्बई पुलिस, गृह मंत्रालय कानून ब्यबस्था , मल्टीप्लेक्स सि

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मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ९ ,जून २०१६ में

27 जुलाई 2016
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 मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ९ ,जून २०१६ में

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मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (रिश्तों के कोलाहल में ये जीवन ऐसे चलता है )

26 अक्टूबर 2016
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किस की कुर्वानी को किसने याद रखा है दुनियाँ में जलता तेल औ बाती है कहतें दीपक जलता है पथ में काँटें लाख बिछे हो मंजिल मिल जाती है उसको बिन भटके जो इधर उधर ,राह पर अपनी चलता हैमिली दौलत मिली शोहरत मिला है यार कुछ क्यों जैसा मौका बैसी बातें ,जो पल पल बात बदलता है छोड़ गया

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मेरी कुछ क्षणिकाएँ

22 जुलाई 2016
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 मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : मेरी कुछ क्षणिकाएँ

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ग़ज़ल गंगा: आज फिर मैंने तेरी याद के दीपक जला लिए

27 अक्टूबर 2016
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आज फिर मैंने तेरी याद के दीपक जला लिएदीवाली का पर्व है फिर अँधेरे में क्यों रहूँ आज फिर मैंने तेरी याद के दीपक जला लिए। दीपोत्सब की अग्रिम शुभकामनायें

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मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट , अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस ( उपयोगिता , सन्दर्भ और प्रासंगिकता , एक बिबेचना ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित

27 जुलाई 2016
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 मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट , अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस ( उपयोगिता , सन्दर्भ और प्रासंगिकता , एक बिबेचना ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित

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मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार - Sahityapedia

27 अक्टूबर 2016
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मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहारजीवन में आती रहे पल पल नयी बहारईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकारलक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..मुझको जो भी मिलना हो ,बह तुमको ही मिले दौलततमन्ना मेरे दिल की है, सदा मिलती रहे शोहरतसदा मिलती रहे शोहरत ,रोशन नाम तेरा होग़मों का न तो स

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प्यार का बंधन

15 जून 2016
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प्यार का बंधनअर्पण आज तुमको हैं जीवन भर की सब खुशियाँपल भर भी न तुम हमसे जीवन में जुदा होनारहना तुम सदा मेरे दिल में दिल में ही खुदा बनकरना हमसे दूर जाना तुम और ना हमसे खफा होना अपनी तो तमन्ना है सदा हर पल ही मुस्काओसदा तुम पास हो मेरे ,ना हमसे दूर हो पाओतुम्हारे साथ जीना है तुम्हारें साथ मरना हैतुम

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मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : मैं उजाला और दीपावली

28 अक्टूबर 2016
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बह हमसे बोले हँसकर कि आज है दीवालीउदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा नहीं तालीमैं कैसें उनसे बोलूँ कि जेब मेरी ख़ालीजब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ तालीबह बोले मुस्कराके धन से क्यों न खेलते तुमदेखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते तुमइन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते ह

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आज हम फिर बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की - Sahityapedia

28 जुलाई 2016
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 आज हम फिर बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की - Sahityapedia

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दिवाली और मेरे शेर by Madan Saxena | Diwali Poem | Diwali Poems in Hindi and English | Deepawali Kavita

28 अक्टूबर 2016
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0 दिवाली और मेरे शेरदिवाली का पर्व है फिर अँधेरे में हम क्यों रहेंचलो हम अपने अहम् को जलाकर रौशनी कर लें*************************************दिवाली का पर्व है अँधेरा अब नहीं भाता मुझेआज फिर मैंने तेरी याद के दीपक जला लिएदीपाबली शुभ हो दिवाली और मेरे शेर by Madan S

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मुक्तक (आदत)

22 जुलाई 2016
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 मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : मुक्तक (आदत)

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ग़ज़ल(मुहब्बत) - Sahityapedia

28 अक्टूबर 2016
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ग़ज़ल(मुहब्बत) नजर फ़ेर ली है खफ़ा हो गया हूँबिछुड़ कर किसी से जुदा हो गया हूँमैं किससे करूँ बेबफाई का शिकबाकि खुद रूठकर बेबफ़ा हो गया हूँबहुत उसने चाहा बहुत उसने पूजामुहब्बत का मैं देवता हो गया हूँबसायी थी जिसने दिलों में मुहब्बतउसी के लिए क्यों बुरा हो गया हूँमेरा नाम अब क्

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ग़ज़ल (मेरे मालिक मेरे मौला ) - Sahityapedia

28 जुलाई 2016
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 ग़ज़ल (मेरे मालिक मेरे मौला ) - Sahityapedia

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ग़ज़ल (इस शहर में ) - Sahityapedia

28 अक्टूबर 2016
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ग़ज़ल (इस शहर में )इन्सानियत दम तोड़ती है हर गली हर चौराहें परईट गारे के सिबा इस शहर में रक्खा क्या है इक नक़ली मुस्कान ही साबित है हर चेहरे परदोस्ती प्रेम ज़ज्बात की शहर में कीमत ही क्या है मुकद्दर है सिकंदर तो सहारे बहुत हैं इस शहर मेंशहर में जो गिर चूका ,उसे बचाने में बच

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सपने सजाने लगा आजकल हूँ

7 जून 2016
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सपने सजाने लगा आजकल हूँ मिलने मिलाने लगा आज कल हूँ हुयी शख्शियत उनकी मुझ पर हाबी खुद को भुलाने लगा आजकल हूँ इधर तन्हा मैं था उधर तुम अकेले किस्मत ,समय ने क्या खेल खेले गीत ग़ज़लों की गंगा तुमसे ही पाई गीत ग़ज़लों को गाने लगा आजकल हूँ जिधर देखता हूँ उधर तू मिला है ये रंगीनियों का गज़ब सिलसिला है नाज क्य

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तुम्हारी याद आती है - Sahityapedia

28 अक्टूबर 2016
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तुम्हारी याद आती हैजुदा हो करके के तुमसे अब ,तुम्हारी याद आती हैमेरे दिलबर तेरी सूरत ही मुझको रास आती हैकहूं कैसे मैं ये तुमसे बहुत मुश्किल गुजारा हैभरी दुनियां में बिन तेरे नहीं कोई सहारा हैमुक्कद्दर आज रूठा है और किस्मत आजमाती हैनहीं अब चैन दिल को है न मुझको नींद आती है

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ग़ज़ल(ये किसकी दुआ है ) - Sahityapedia

28 जुलाई 2016
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 ग़ज़ल(ये किसकी दुआ है ) - Sahityapedia

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मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार - Sahityapedia

28 अक्टूबर 2016
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मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहारजीवन में आती रहे पल पल नयी बहारईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकारलक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..मुझको जो भी मिलना हो ,बह तुमको ही मिले दौलततमन्ना मेरे दिल की है, सदा मिलती रहे शोहरतसदा मिलती रहे शोहरत ,रोशन नाम तेरा होग़मों का न तो स

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परायी दुनिया

22 जुलाई 2016
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 मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : परायी दुनिया

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मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : चलो हम अपने अहम् को जलाकर रौशनी कर लें

28 अक्टूबर 2016
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बह हमसे बोले हँसकर कि आज है दीवालीउदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा नहीं तालीमैं कैसें उनसे बोलूँ कि जेब मेरी ख़ालीजब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ तालीबह बोले मुस्कराके धन से क्यों न खेलते तुमदेखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते तुमइन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते ह

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देकर दुआएँ आज फिर हम पर सितम वो कर गए

28 जुलाई 2016
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Hindi Sahitya Kavya Sanklan provides free publishing opportunity to poets to write their poems in hindi, OR hindi kavita and hindi poems for kids Hindi Sahitya | Hindi Poems | Hindi Kavita | hindi poems for kids

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अब समाचार ब्यापार हो गए - Open Books Online

28 अक्टूबर 2016
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अब समाचार ब्यापार हो गएकिसकी बातें सच्ची जानें अब समाचार ब्यापार हो गएपैसा जब से हाथ से फिसला दूर नाते रिश्ते दार हो गएडिजिटल डिजिटल सुना है जबसे अपने हाथ पैर बेकार हो गएरुपया पैसा बैंक तिजोरी आज जीने के आधार हो गएप्रेम ,अहिंसा ,सत्य , अपरिग्रह बापू क्यों लाचार हो गएसीधा

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हुए दुनिया से बेगाने हम जिनके इक इशारे पर

16 जून 2016
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सजाए मौत का तोहफा हमने पा लिया जिनसे ना जाने क्यों बो अब हमसे कफ़न उधार दिलाने की बात करते हैं हुए दुनिया से बेगाने हम जिनके इक इशारे पर ना जाने क्यों बो अब हमसे ज़माने की बात करते हैं दर्दे दिल मिला उनसे बो हमको प्यारा ही लगता जख्मो पर बो हमसे अब मरहम लगाने की बात करते हैं हमेशा साथ चलने की

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मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : चलो हो गयी दीवाली

31 अक्टूबर 2016
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दीवाली से पहले सोशल मीडिया पर चीनी सामान का बहिष्कार की बातें करने बाले काफी लोग दीवाली पर पहले से रखी लाइट्स का इस्तेमाल करते दिखे ऑनलाइन शॉपिंग पर चीनी सामान खरीदने का लुत्फ़ लेते मिले भले ही अपने नाते रश्तेदारों और पड़ोसियों से दिवाली पर बात न की हो इस बार भी फेसबुक ट्वि

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मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट (सांसों के जनाजें को तो सब ने जिंदगी जाना ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित)

29 जुलाई 2016
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 मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट (सांसों के जनाजें को तो सब ने जिंदगी जाना ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित)

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चित्र संसार : दीपोत्सब के रंग परिबार के संग

2 नवम्बर 2016
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चित्र संसार : दीपोत्सब के रंग परिबार के संग

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चाहें दौलत हो ना हो कि पास अपने प्यार हो

22 जुलाई 2016
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 चाहें दौलत हो ना हो कि पास अपने प्यार हो - Sahityapedia

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गज़ल/गीतिका (समय ये आ गया कैसा) - Sahityapedia

3 नवम्बर 2016
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गज़ल/गीतिका (समय ये आ गया कैसा)दीवारें ही दीवारें , नहीं दीखते अब घर यारोंबड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले हैंउलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल हैसमय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैंजिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता हैदुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैंज

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मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट , ग़ज़ल (दोस्ती आती नहीं है रास अब बहुत ज्यादा पास की)जागरण जंक्शन में प्रकाशित

29 जुलाई 2016
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 मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट , ग़ज़ल (दोस्ती आती नहीं है रास अब बहुत ज्यादा पास की)जागरण जंक्शन में प्रकाशित

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ग़ज़ल गंगा: मेरे तीन शेर

3 नवम्बर 2016
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एकखुदा का नाम लेने में तो मुझ से देर हो जातीखुदा के नाम से पहले हम उनका नाम लेते हैं*********************************************दो पाया है सदा उनको खुदा के रूप में दिल मेंउनकी बंदगी कर के खुदा को पूज लेते हैं********************************************** तीन न मँदिर

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गज़ल (ये कैसा परिवार)

1 जून 2016
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गज़ल  (ये कैसा परिवार)मेरे जिस टुकड़े को  दो पल की दूरी बहुत सताती थीजीवन के चौथेपन में अब ,वह  सात समन्दर पार हुआ   रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करेंसब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या व्यवहार हुआ   दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों सेधर्म देखिये कर्म देखिये सब कुछ तो ब्याप

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खुशबुओं की बस्ती - Sahityapedia

4 नवम्बर 2016
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खुशबुओं की बस्ती खुशबुओं की बस्ती में रहता प्यार मेरा हैआज प्यारे प्यारे सपनो ने आकर के मुझको घेरा हैउनकी सूरत का आँखों में हर पल हुआ यूँ बसेरा हैअब काली काली रातो में मुझको दीखता नहीं अँधेरा है जब जब देखा हमने दिल को ,ये लगता नहीं मेरा हैप्यार पाया जब से उनका

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ग़ज़ल गंगा: मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ११ ,अगस्त २०१६ में प्रकाशित

4 अगस्त 2016
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मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ११ ,अगस्त २०१६ में प्रकाशितग़ज़ल  (बचपन यार अच्छा था)जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भीबचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता थाबारीकी जमाने की, समझने में उम्र गुज़रीभोले भाले चेहरे में सयानापन समाता थामिलते हाथ हैं लेकिन दिल मिलते नहीं यारों

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परायी दुनिया - Sahityapedia

4 नवम्बर 2016
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परायी दुनियाअपना दिल जब ये पूछें की दिलकश क्यों नज़ारे हैंपरायी लगती दुनिया में बह लगते क्यों हमारे हैंना उनसे तुम अलग रहना ,मैं कहता अपने दिल से हूँहम उनके बिन अधूरें है ,बह जीने के सहारे हैंजीबन भर की सब खुशियाँ, उनके बिन अधूरी हैपाकर प्यार उनका हम ,उनसे सब कुछ हारे है

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ग़ज़ल(ये किसकी दुआ है )

22 जुलाई 2016
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 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल(ये किसकी दुआ है )

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गज़ल (बात करते हैं ) - Sahityapedia

4 नवम्बर 2016
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गज़ल (बात करते हैं )सजाए मौत का तोहफा हमने पा लिया जिनसेना जाने क्यों बो अब हमसे कफ़न उधार दिलाने की बात करते हैं हुए दुनिया से बेगाने हम जिनके इक इशारे परना जाने क्यों बो अब हमसे ज़माने की बात करते हैंदर्दे दिल मिला उनसे बो हमको प्यारा ही लगताजख्मो पर बो हमसे अब मरहम

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ग़ज़ल (जिंदगी का ये सफ़र ) - Sahityapedia

5 अगस्त 2016
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ग़ज़ल (जिंदगी का ये सफ़र )कल तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआइक शक्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान हैबीती उम्र कुछ इस तरह की खुद से हम न मिल सकेजिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अनजान हैगर कहोगें दिन को दिन तो लोग जानेगें गुनाहअब आज के इस दौर में दीखते नहीं इन्सान हैइक दर्द का

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कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है - मदन मोहन सक्सेना - Sahityapedia

7 नवम्बर 2016
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रचनाकार- मदन मोहन सक्सेनाविधा- कविताअँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने परबिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किलख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी हैसमय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किलकहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हमजुबां से दिल की बातो को है क

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अब सन्नाटे के घेरे में ,जरुरत भर ही आबाजें

17 जून 2016
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कंक्रीटों के जंगल में नहीं लगता है मन अपनाजमीं भी हो गगन भी हो ऐसा घर बनातें हैंना ही रोशनी आये ,ना खुशबु ही बिखर पायेहालत देखकर घर की पक्षी भी लजातें हैंदीबारें ही दीवारें नजर आये घरों में क्योंपड़ोसी से मिले नजरें तो कैसे मुहँ बनाते हैंमिलने का चलन यारों ना जानें कब से गुम अब हैटी बी और नेट से ही स

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ग़ज़ल (इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर ) - Sahityapedia

5 अगस्त 2016
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ग़ज़ल (इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर )हर सुबह रंगीन अपनी शाम हर मदहोश हैवक़्त की रंगीनियों का चल रहा है सिलसिलाचार पल की जिंदगी में ,मिल गयी सदियों की दौलतजब मिल गयी नजरें हमारी ,दिल से दिल अपना मिलानाज अपनी जिंदगी पर ,क्यों न हो हमको भलाकई मुद्द्दतों के बाद फ

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प्यार ही प्यार

31 मई 2016
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प्यार ही प्यारप्यार रामा में है प्यारा अल्लाह लगे ,प्यार के सूर तुलसी ने किस्से लिखेप्यार बिन जीना दुनिया में बेकार है ,प्यार बिन सूना सारा ये संसार हैप्यार पाने को दुनिया में तरसे सभी, प्यार पाकर के हर्षित हुए हैं सभीप्यार से मिट गए सारे शिकबे गले ,प्यारी बातों पर हमको ऐतबार हैप्यार के गीत जब गुनगु

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हमको कुछ नहीं मालूम

2 जून 2016
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हमको कुछ नहीं मालूमदेखा जब नहीं उनको और हमने गीत नहीं गायाजमाना हमसे ये बोला की बसंत माह क्यों नहीं आयाबसंत माह गुम हुआ कैसे ,क्या तुमको कुछ चला मालूमकहा हमने ज़माने से की हमको कुछ नहीं मालूमपाकर के जिसे दिल में ,हुए हम खुद से बेगानेउनका पास न आना ,ये हमसे तुम जरा पुछोबसेरा जिनकी सूरत का हमेशा आँख मे

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मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ६ ,मार्च २०१६ में प्रकाशित

4 जून 2016
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प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ६ ,मार्च २०१६ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ ग़ज़ल (इस शहर में ) इन्सानियत दम तोड़ती है हर गली हर चौराहें पर ईट गारे के सिबा इस शहर में रक्खा क्या है इक नक़ली मुस्कान ही साबित है हर चेहर

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कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है

9 जून 2016
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अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम जुबां से दिल की बातों को है कह पाना बहुत मुश्किल ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता

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गज़ल (तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा)

21 जुलाई 2016
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 मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : गज़ल (तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा)

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दोस्त अपने आज सब क्यों बेगाने लगते हैं

22 जुलाई 2016
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 कविता ,आलेख और मैं : दोस्त अपने आज सब क्यों बेगाने लगते हैं

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मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : गुनगुनाना चाहता हूँ

19 अगस्त 2016
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गुनगुनाना चाहता हूँगज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँग़ज़ल का ही ग़ज़ल में सन्देश देना चाहता हूँग़ज़ल मरती है नहीं बिश्बास देना चाहता हूँगज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ ग़ज़ल जीवन का चिरंतन प्राण हैया समर्पण का निरापरिमाण है ग़ज़ल पतझड़ है नहीं फूलों भरा मधुमास है तृप्

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