नबरात्र और माँ के नौ स्वरुप
तुम भक्तों की रख बाली हो ,दुःख दर्द मिटाने बाली हो
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में
नब रात्रि में भक्त लोग माँ दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा अर्चना करके माँ का आश्रिबाद प्राप्त करतें है।
पहले दिन मां शैलपुत्री की आराधना की जाती है।
वन्दे वांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्।।
मां शैलपुत्री वृषभ पर सवार हैं। इनके दाएं हाथ मेंत्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित हैं। पार्वती एवं हैमवती भीइन्हीं के नाम है। मां शैलपुत्री दुर्गा का महत्व एवं शक्तियां अनंत हैं।नवरात्र पर्व पर प्रथम दिवस इनका पूजन होता है। इस दिन साधक अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करके साधना प्रारम्भ करते हैं। इससे मन निश्छलहोता है और काम-क्रोध आदि शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
मां दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है.
दधानां
करपद्माभ्यामक्ष मालाकमण्डलू.
देवी
प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा..
यहां ‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ तपस्या है. ब्रह्मचारिणी अर्थात तप कीचारिणी-तप का आचरण करने वाली. कहा भी है-वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म-वेद, तत्वऔर तप ‘ब्रह्म’ शब्द के अर्थ हैं. ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्णज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है. इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायेंहाथ में कमण्डल रहता है.
अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री-रूप में उत्पन्न हुई थींतब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर जी को पति-रूप में प्राप्त करनेके लिए अत्यन्त कठिन तपस्या की थी. इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हेंतपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया.
मां दुर्गा जी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्त फल देनेवाला है. इसकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम कीवृद्धि होती है. दुर्गापूजन के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना कीजाती है. इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान’ चक्र में स्थित होता है. इस चक्रमें अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है.
मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम ‘चन्द्रघण्टा’ है.
पिण्डजप्रवरारूढा
चण्डकोपास्त्रकैयरुता.
प्रसादं
तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता..
मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम ‘चन्द्रघण्टा’ है. नवरात्र उपासनामें तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है. इनका यहस्वरूप परम शान्तिदायक और कल्याणकारी है. इनके मस्तक में घण्टे के आकार काअर्धचन्द्र है, इसी कारण से इन्हें चन्द्रघण्टा देवी कहा जाता है.
इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है. इनके दस हाथ हैं. इनके दसोंहाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं. इनका वाहनसिंह है.
नवरात्र की दुर्गा उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है.इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है. मां चन्द्रघण्टा कीकृपा से उसे अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं. मां चन्द्रघण्टा की कृपासे साधक के समस्त पाप और बाधाएं विनष्ट हो जाती हैं. इनकी आराधना सद्य:फलदायी हैं.
हमें निरन्तर उनके पवित्र विग्रह को ध्यान में रखते हुए साधना की ओरअग्रसर होने का प्रयत्न करना चाहिए. उनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोक दोनोंके लिए परमकल्याणकारी और सद्गति को देने वाला है.
मां दुर्गाजी के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।।
अपनी मन्द , हलकी हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रहृाण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है।
जबसृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अन्धकार-ही-अन्धकार परिव्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने अपने 'ईषत्' हास्य से ब्रहृाण्ड की रचना की थी। अत: यहीसृष्टि-आदि की स्वरूपा, आदि शक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमण्डल के भीतर केलोक में है। इनकी आठ भुजाएं हैं। अत: ये अष्टभुजा देवी के नाम से भीविख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियोंको देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।
नवरात्र पूजन के चौथेदिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में अवस्थित होता है। अत: इस दिन उसे अत्यन्त पवित्र और अचलमन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्यमें लगना चाहिए।
मां दुर्गाजी के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है।
सिंहासनगता
नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
ये भगवान् स्कन्द 'कुमार कात्र्तिकेय' की माता है। इन्हीं भगवान्स्कन्द की माता होने के कारण मां दुर्गा जी के इस पांचवें स्वरूप कोस्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। इनकी उपासना नवरात्र-पूजा के पांचवेंदिन की जाती है। इस दिन साधक का मन 'विशुद्ध' चक्र में अवस्थित होता है।
स्कन्दमातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाहिनी तरफ की ऊपर वालीभुजा से भगवान् स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं और दाहिनी तरफ की नीचेवाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी हुई है उसमें कमल-पुष्प है। बायीं तरफ की ऊपरवाली भुजा वर मुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भीकमल-पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णत: शुभ्र है।
ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण से इन्हें पद्मासना देवीभी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है। मां स्कन्दमाता की उपासना से भक्तकी समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस मृत्युलोक में ही उसे परम शान्तिऔर सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वयमेव सुलभ होजाता है
मां दुर्गा के छठवें स्वरूप का नाम कात्यायनी है।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवद्यातिनी।।
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
प्रसिद्धमहर्षि कत के पुत्र ऋषि कात्य के गोत्र में महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुएथे। उन्होंने भगवती पराम्बा की घोर उपासना की और उनसे अपने घर में पुत्रीके रूप में जन्म लेने का आग्रह किया। कहते हैं, महिषासुर का उत्पात बने परब्रहृा, विष्णु, महेश तीनों के तेज के अंश से देवी कात्यायनी महर्षिकात्यायन की पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थीं।
मां कात्यायनीअमोघ फलदायिनी हैं। ये ब्रजमण्डल की अधिष्ठात्री देवी के रूप मेंप्रतिष्ठित हैं। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है। इनकी चारभुजाएं हैं। इनका दाहिना ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में है तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बायें ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प सुशोभित हैं।
इनका वाहन सिंह है। इनकी पूजा के लिए साधक को मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित करना चाहिए।
नवरात्र के सातवें दिन आदिशक्ति मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की उपासना की जाती है.
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।
मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं. इसी कारण इनका एक नाम 'शुभंकरी' भी है.दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की आराधना का विधान है. इस दिनसाधक का मन 'सहस्रर' चक्र में स्थित रहता है. उसके लिए ब्रह्मांड की समस्तसिद्धियों का द्वार खुलने लगता है.मां कालरात्रि के शरीर का रंग घने अंधकार के समान पूरी तरह काला है. सिरके बाल बिखरे हुए और गले में बिजली की तरह चमकने वाली माला है.
मां के तीनों नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं. इनसे बिजली के समानचमकीली किरणें निकलती रहती हैं. नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि कीभयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं. इनका वाहन गर्दभ है.चार भुजाओं वाली मां के ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ से सभी को वर प्रदानकरती हैं. दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है. बायीं तरफ केऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है.मां कालरात्रि की पूजा करने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में सातवें दिन इसका जाप करना चाहिए.
मां दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। इनका वर्ण पूर्णत: गौर है।
श्वेते वृषे
समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी
शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा।।
इस गौरता की उपमा शंख, चन्द्र और कुन्द के फूल से दी गयी है। इनकी आयुआठ वर्ष की मानी गयी है। 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी'। इनके समस्त वस्त्र एवंआभूषण आदि भी श्वेत हैं। इनकी चार भुजाएं है। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपरके दाहिने हाथ में अभय-मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बायें हाथ में डमरू और नीचे के बायें हाथ में वर-मुद्रा है। इनकीमुद्रा अत्यन्त शान्त है।
दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्तिअमोघ और सद्य: फलदायिनी है। मां महागौरी का ध्यान स्मरण, पूजन-आराधन भक्तोंके लिए सर्वविध कल्याणकारी है। हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिए।
मां दुर्गाजी की नवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
येसभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। मार्कण्डेयपुराण के अनुसारअणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व-ये आठसिद्धियां होती हैं।
नव दुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अन्तिमहैं। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा-उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करतेहुए भक्त दुर्गा-पूजा के नवें दिन इनकी उपासना में प्रवृत्त होते हैं। इनसिद्धिदात्री मां की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों कीलौकिक पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।