दोस्तों ,
आप सबको मेरा प्रेम भरा नमस्कार !
दोस्तों मैं इतना विद्वान नहीं की आप सबसे तर्क करु । लेकिन इतना कायर भी नहीं की किसी के सामने से दिये हुए चुनौती से मुंह मोड़ कर , पीठ दिखाकर चल दूं । आज मैं बात कर रहा हूं , केंद्र की बीजेपी सरकार द्वारा संसद में लायी गई एससी एसटी एक्ट की । सुन कर कितना अटपटा लग रहा है न । बहुत लोग अब सोच रहे होंगे , कि कमल का फूल हमारी भूल तो नहीं । सबकी अपनी अपनी सोच है , अपनी अपनी अभिव्यक्ति है , और सब इसके लिए स्वतंत्र हैं । लेकिन मेरा विचार सबसे अलग है क्योंकि बचपन में मेरे पिताजी हरदम मुझसे कहते थे कि नियत अगर अच्छी हो , तो शत्रु भी फूल बिछाते हैं ! मन अगर पाक-साफ हो , तो घर में मथुरा काशी है । अब आप सबसे मैं अतीत में चलने को कहता हूं , क्योंकि पूर्वजों ने कहा है , जो अपने अतीत को भूल जाते हैं । उनका वर्तमान तो व्यथित होता ही है , उनका भविष्य भी नष्ट हो जाता है । मनुस्मृति जिसमें साफ साफ और स्पष्ट भाषा में लिखा गया है , कि जन्म से सब शुद्र है । अपने कर्मो द्वारा सिद्ध करना है कि हम क्या है ? मतलब हमारा वर्ण क्या है ? लेकिन विचार करें विवाद नहीं । पूर्वजों ने क्या किया ? क्या नहीं किया ? इस मसलें पर आप सबको विचार करना चाहिए , क्योंकि पुत्र का ये कर्त्तव्य है । अपने पूर्वजों की विचारों से चिंतन कर अपना मार्ग बना आगे बढ़े , और समाज में उनका मान सम्मान बरकरार रखते हुए अपनी उपयोगिता साबित करें । इतिहास गवाह है कि बाबा साहेब आंबेडकर ने समाज में फैली पकड़ने की प्रवृत्तियों के लिए मनुस्मृति को दोषी मान , जलाने के लिए सबको आगे किया और जला दिया , जिसकी पुनरावृत्ति आज भी होती रहती है । मैं इसके लिए बाबा साहेब आंबेडकर को गाली देते हुए , कुंठित मानसिकता में जाने के बजाय , अपनी खामियों और समाज में पनपी कुरुतियों पर ध्यान केंद्रित और आकर्षित करना चाहता हूं । क्योंकि मेरे भाई बुद्धिजीवी वहीं होता है , जो अपनी गलतियों को सुधार कर मार्ग बना आगे बढ़ जाय ।
बाबासाहेब आंबेडकर ने वही किया , जब उन्होंने ने अपनी किताब लिखा शुद्र कौन ? उसमें उन्होंने मनुस्मृति पर से अपने सारे आरोप का खंडन करते हुए , लिखा कि जो मनुस्मृति में शुद्र की बात कही गई है , दलित वो नहीं है ।
और दलित का परिभाषा देते हुए कहा कि , दलित वही है जो समाज से कटा हो , जो अशिक्षित हो , जो गरीब हो , जो समाज में अपनी सामर्थ्य सिद्ध करने में असमर्थ हो , जिसको समाज में सम्मान न हो । और इस हिसाब से संविधान में लोगों को दो भागों में बांटने की कोशिश की , सवर्ण और दलित । लेकिन समाज उस समय कुछ स्वार्थी प्रवृतियों से ग्रसित व्यक्तियों के कारण , पकड़ने वाले प्रवृतियों से ग्रसित हो कर अनगिनत जातियों में विभाजित हो गया था । मजबूरन संविधान में जातियों का संबोधन कर दिया गया । कांग्रेस की सरकार थी , उसने अपनी सत्ता के लिए स्वार्थी तत्वों को बहुत बढ़ावा दिया । इसके प्रमाण भी बाबा साहेब आंबेडकर की १९४९ की संसद सभा का वो भाषण है जिसमें उन्होंने आरक्षण का विरोध करते हुए कहा कि आरक्षण बैसाखी है लेकिन कांग्रेस की सत्ता लोलुपता ने इसको सीढ़ी बना दिया । मिला क्या समाज कुंठित मानसिकता का शिकार हो कर अपने स्वार्थी महत्त्वाकांक्षाओं में खो गया । आज की हकीकत आपके सामने है । दोस्तों कांग्रेस की हकीकत और उसकी उत्पत्ति किसी से छुपी नहीं है । और उसका सर्वार्थ भी किसी से छुपा नहीं है कि गद्दी के सिवा उसे कुछ नहीं प्यारा है । इसमें कोई दो राय नहीं , कि स्वार्थी आदमी ही समाज में स्वार्थी तत्वों की उत्पत्ति करता है , कि कोई उस पर उंगली उठा कर उसे दुत्कारने का साहस ना करें । हमको पता है कि इस एक्ट का कितना दुरुपयोग होता है । मैंने दो घटनाएं आज तक के जीवन में अपने आंखों से देखे हैं । पहली घटना बिहार के मेरे जन्मभूमि की है तथा दूसरी मेरी विधवा बहन के गांव की है जिसको आज भी मैं झेल रहा हूँ । लेकिन इन दोनों घटनाओं में मैंने देखा , कि एक सवर्ण ही दुसरे सवर्ण को निचा दिखाने के लिए , तथा उसके सम्पत्तियों को कब्जा करने के लिए दलित का सहारा लेकर प्रताड़ित करने की कोशिश करता है । मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सरकार इसको और कड़ा करें । मैं तो शुक्रगुजार हूं बीजेपी का कि उसने हमें एहसास कराते हुए सामने से चुनौती दिया । अपनी योग्यता अपने कर्मों द्वारा साबित करो , कि तुम उस चाणक्य के वंशज हो जिसने अखंड भारत की कल्पना की । तुम उस आजाद के वंशज हो जो अपने गरीबी , अपने भूखे माता पिता की परवाह ना कर , मां भारती के स्वाभिऊ और आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी । तुम साबित करों , कि तुम उस वीर सावरकर के वंशज हो जिसने काले पानी की सजा काटते हुए अपने भाभी को खत लिखा करते थे कि , इस धरा पर अनेक पुष्प उत्पन्न होते हैं । लेकिन अमर वही होते जो भगवान के चरणों में चढ़ जाते हैं । तुम उस महाराणा प्रताप के वंशज हो जिसने घास की रोटियां खा कर जंगल जंगल भटके लेकिन अपनी स्वाभिमान को तिलांजलि नहीं दिया , तुम उस शिवाजी के वंशज हो जिसने अंत तक हार नहीं मानी । दोस्तों ऐसे बहुत अनगिनत नाम हैं । उन सवर्ण समाज के हमारे पूर्वजों के जो इस देश और समाज के लिए अपने कर्मों द्वारा अपनी योग्यता साबित किया है । और हमेशा इसपर खरा उतर कर ऐ साबित किया है , कि हम चुनौतियों को स्वीकार करने में पीछे नहीं हटते । आजादी के ७० साल बाद हमें किसी ने चुनौती देने की साहस की है , और हम बेकल बेहाल हो गए , अरे मेरे भाईयो ऐ तो बड़े सौभाग्य की बात है , गर्व से सीना चौड़ा कर आगे बढ़े , और आगे बढ़ कर इसका स्वागत करें । सवर्ण उपेक्षित है , इसका रट लगा कर अपने कायरता से अपने पूर्वजों के बलिदानों को कलंकित ना करें । थोड़ा संयम , सहनशीलता , आपसी सहमति और सहयोग , अपनी विद्वत्ता और अपने क्षमताओं के द्वारा अपने गरीब भाईयों की सहायता और उन्हें सामर्थ्यवान बना कर इस चुनौती से निवृत्त हुआ जा सकता है । भले ही आप सब मुझे गाली दे , लेकिन ऐ तो कड़वा सच है , कि बाप दादाओं के द्वारा लगाए गए पेड़ों की शक्ति अब क्षीण हो रही है । वो हमसे अपने लहू द्वारा सींचने के लिए गुहार लगा रही है । अपनी कर्मठता दिखाने के लिए प्रेरित कर रही है । अपने कर्मो द्वारा अपनी योग्यता और उपयोगिता साबित करने को ललकार रही है । और हम सब आज भी अपने पकड़ने की प्रवृति से निवृत्त नहीं हो पा रहे हैं । ऐ मेरे दोस्तों मैं आपको शब्दों में नहीं उलझा रहा हूँ , मैं अपनी उन पूर्वजों के बलिदान और त्याग , कर्मठता और हिम्मत की गाथा आपके सामने अपनी छोटी ज्ञान से रख कर आव्हान कर रहा हूं । आप भी जब विचार करेंगे तो , यही सच्चाई आपके सामने प्रस्तुत होगी । मेरे भाई हमेशा याद रखना लाठी डंडे और पत्थर उन्हीं पेड़ों पर चलते हैं जो फलदार होते हैं । इनमें बढ़ोतरी और हो जाती है जिसके फल मीठे और स्वादिष्ट होते हैं । यहां बात मैं पौधों की इसके लिए कह रहा हूं , क्योंकि हम लोग भी सिर्फ जड़ हो चुके हैं । मेरे भाई जो संविधान द्वारा निर्मित सवर्ण की कैटेगरी में आते हैं तो बिकल बेहाल हो कर बिखरे नहीं । आओ मिलकर सरकार द्वारा दी हुई चुनौती को स्वीकार कर अपने कर्मों द्वारा अपने आप को स्थापित कर , अपने पूर्वजों के विश्वास को कायम रख उनका मान और सम्मान बढाये । ताकि अपने पूर्वजों को आंखों से आंसू न बहे हम सबको सरकार से अपने अस्तित्व के लिए गुहार लगाते देख कर । विचार है , आप सब आमंत्रित हैं , मेरे भाई , मेरे बंधुओं आओ मिल बैठकर एक दूसरे को सहयोग कर अपनी योग्यता साबित करें ।🤔
आप सबका भाई 🙏
धन्यवाद 🙏
___संजय निराला ✍