SANJEEV MISRA
वामपंथी - जनता के लिए लव जिहादी से कम नहीं होते ! देखिये कैसे।
लव जिहाद में अक्सर लड़की को तारीफ़ों से बरगलाया जाता है। गिफ्ट्स दिये जाते हैं। महंगी होटलों में खाना खिलाया जाता है। कुल मिलाकर जब उसे लगाने लगता है कि उसे ज़िंदगी गुजारनी है तो इसी व्यक्ति के साथ, तब उसे भगाया जाता है। उसके बाद उसे वास्तविकता पता चलती है कि उसका प्रेमी जो महंगे कपड़े, शूज, वॉच आदि पहनता था, महंगी बाइक चलाता था, कहाँ रहता है और कैसी अवस्था में रहता है। अब यह तो डोर काट काटकर आ चुकी है, उसके बाद उसका कुछ भी हो सकता है।
आजकल यह भी है कि निकाह के बाद उसे पता चलता है कि उसके पिता की प्रॉपर्टी में हिस्से के लिए या प्रॉपर्टी के लिए ही उसे फंसाया गया था। पैसेवाला होने का स्वांग करने के लिए उसे पैसे कोई और देता था।
वामपंथी और जनता की इससे क्या समानता है ?
वो जनता को बताता है कि हमें सत्ता में रखिए, आप को ये सुविधा मुफ्त मिलेगी, वो सुविधा मुफ्त मिलेगी। और ऊपर से जोड़ेगा कि यह तो आप का हक है। पूछिए कि इतने साल यह हक़ क्यों नहीं मिला तो बताएगा कि अमीरों ने सरकार को जेब में रखा है इसलिए सरकार आपसे पैसे ले कर उनको देती है, आप को फायदा नहीं मिलने देती।
दो सवाल और पूछिए कि जरा विस्तार से समझाओ कि आप पैसे कहाँ से लाएँगे तो अंत में जवाब मिलेगा कि अमीरों पर टैक्स बढ़ाए जाएँगे ताकि गरीब भूखा न रहे।
बड़ा मायावी वाक्य है यह - ताकि गरीब भूखा न रहे। इसपर कोई राजनेता सवाल करने की हिम्मत नहीं करता क्योंकि उसे तुरंत गरीब का शत्रु, लोकशत्रु, गणशत्रु आदि सब कुछ बताया जाएगा। लेकिन पूछिए कि गरीब खाना कमाने के लिए कुछ मेहनत भी करेगा या नहीं ? इसपर वामपंथी तुरंत उस मेहनत और उसके लिए दाम, सरकार की ज़िम्मेदारी बताकर हाथ झटक देता है।
वामपंथी को सुनने के बाद अगर आप उसे पूछे कि भाई, मैं मेहनत कर के अमीर बनना चाहता हूँ, लेकिन क्या मेरे अमीर बनने का मतलब यह होगा कि आप मैं जो कुछ कमाऊँ उसको गरीब के नाम पर टैक्स बताकर ले जाएँगे ?
वा-मियों को सवाल पूछना ही अच्छा लगता है, सवाल सुनना वे गंवारा नहीं करते, और अगर उनकी सत्ता आए तो सवाल करना आप को महंगा पड़ सकता है। इसलिए वे लोकतन्त्र के भी विरोधी होते हैं क्योंकि तय समय के बाद सवाल सुनने पड़ेंगे, जनता को हिसाब देना पड़ेगा। इसलिए उनको सीधा सत्ता में आने में रस नहीं होता जब तक वे सम्पूर्ण सत्ता में आ कर लोकतन्त्र को खत्म ही न कर दें। तब तक समाज को भटकानेवाले संस्थान सुंदर और लुभावने नामों से पैदा कर के सरकार से ही अनुदान की व्यवस्था करते रहेंगे, और सरकार के लिए ही मुसीबतें खड़ी करते रहेंगे।
माता पिता जब बेटी के लिए वर देखते हैं तब कम से कम यह देखते हैं कि बेटी के लिए आर्थिक स्थैर्य रहेगा। पुराना सुभाषित है - कन्या वरयति रूपम्, माता वित्तम्, पिता श्रुतम्। यहाँ " कन्या वरयति रूपम्, माता वित्तम्" इसे ना भूलें। लड़की, लड़के के रूप पर मोहित होगी, लेकिन उसकी माँ देखती है कि वो मेरी बेटी को ठीक से रख पाने के लिए बराबर कमाई करता है या नहीं।
मज़े की बात यही है कि किसी एक व्यक्ति को आप कहें कि उसे किसी परिचित या उसके रिश्तेदार को लूटना है क्योंकि वो उससे अधिक सम्पन्न है, तो वो तैयार नहीं होगा । लेकिन कहो कि अंबानी अदानी को लूटना है तो लश्कर ए वा-मिया में शामिल होने में उसे कोई झिझक नहीं होगी। और यही लश्कर ए वा-मिया है जो उसे अपने रिश्तेदार को भी लूटने को तैयार कर रही है। यह कहकर कि उसे अमीर रहने का कोई हक नहीं अगर उसके रिश्तेदार गरीब हैं।
दुर्भाग्य यह है कि लोगों की गैरत मरने लगी है और यह सोच स्वीकार्य भी होती जा रही है। लेकिन यही लोग यह नहीं सोचते कि बहुत जल्द वे भी किसी और के निशाने पर रखे जाएंगे जिनसे ये बेहतर अवस्था में हैं।
यह तस्वीर देखिये, सोवियत यूनियन के दिनों में ऐसे दृश्य आम थे, लोगों को ब्रेड के लिए भी रोज लाइन लगानी पड़ती थी