भाजपा का मीडिया मैनेजमेंट कांग्रेस की तुलना में उन्नीस ही रहेगा, चाहे वे किसी को भी इसकी जिम्मेवारी सौंप दे...!
भाजपा समर्थको की एक शिकायत बहुधा पढ़ने को मिलती है कि भाजपा का मीडिया मैनेजमेंट ठीक नही है...!
मेरा मत है कि आप किसी को भी भाजपा का मीडिया प्रभारी बना दे, मैनेजमेंट "ठीक" नहीं हो सकता, कमी मीडिया मैनेजर में नहीं है, बल्कि अधिकतर मीडिया ही पूर्वाग्रह से ग्रस्त है...!
उदाहरण के लिए, 26 दिसंबर को 20 लाख से अधिक व्यक्तियों ने अयप्पा ज्योति जलाकर सबरीमाला मंदिर की प्रथाओं का समर्थन किया, यह समाचार अधिकतर अखबारों से गायब था या अंदर के पेज में एक छोटी सी स्टोरी के रूप में था, इसके विपरीत पहली जनवरी को केरल सरकार द्वारा सबरीमाला मंदिर में सभी महिलाओ के प्रवेश के समर्थन में बनायी गयी "दीवार" की सभी अखबारों में फोटो के साथ स्टोरी छपी थी, चूंकि मैं टीवी न्यूज़ नहीं देखता, अतः इसकी कवरेज के बारे में नहीं पता...!
यह तो भला हो सोशल मीडिया का कि अयप्पा ज्योति के बारे में विस्तार से पता चला, दर्ज़नो फोटो देखने को मिली, इसी प्रकार सोशल मीडिया से ही पता चला कि बुर्के में ढकी हुई मुस्लिम महिलाओ ने केरल सरकार के सहयोग से ब्राह्मण आधिपत्य के विरुद्ध रोष जताया, समाचार पत्रों में इन मुस्लिम महिलाओ की एक भी फोटो नहीं छपी थी, यद्यपि वे अल्पसंख्यक समुदाय के प्रदर्शनों की फोटो बड़-चढ़कर छापते है...!
क्या कभी मीडिया ने जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पक्षधर है, क्या वे वही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओ के देना चाहेंगे...?
क्या वे कोख पे महिलाओ के अधिकार को स्वीकारेंगे...?
जब वे अल्पसंख्यक अधिकारों की बात करते है, तो कैसे वे उन्ही अल्पसंख्यको के द्वारा अपने ही समुदाय के अन्य अल्पसंख्यको (महिलाओ) के अधिकारों के हनन की अवहेलना कर देते है...?
जब वह मानवाधिकारों की बात करते है, तो वे उसी मानवाधिकार का अभिन्न अंग जेंडर इक्वलिटी या स्त्री-पुरुष समानता को अनदेखा क्यों कर देते है...?
इसी प्रकार, हर उस मुद्दे को जिसे भाजपा जोर-शोर से उठाती है या फिर कांग्रेस पे अटैक करती है, वे मीडिया से लगभग गायब है. क्या नेशनल हेराल्ड स्कैम के बारे में कुछ छप रहा है...?
या फिर हेलीकाप्टर स्कैम जिसका आरोपी मिशेल हिरासत में है...?
सभी समाचारपत्र राहुल के आरोपों को बिना आलोचनात्मक टिपण्णी के साथ छाप रहे है...!
लेकिन क्या रफाल पे राहुल की बेवकूफियों के बारे में सम्पादकीय निकल रहे है...?
क्या किसी भी पत्रकार ने राहुल की प्रेस कांफ्रेंस में पूछा की अकेले अनिल अम्बानी को 30000 करोड़ रुपये का ऑफसेट प्रोजेक्ट कैसे मिल सकता है जब ऑफसेट के तहत कुल 29000 करोड़ रूपये के प्रोजेक्ट विभिन्न कंपनियों को मिलने है...?
कोई एक पत्रकार तो यह प्रश्न पूछे कि सोनिया सरकार ने रफाल डील को क्यों नहीं फाइनल किया...?
यहाँ तक कि प्रधानमंत्री के इंटरव्यू पर उठाये गए मुद्दों पे बहस की जगह कई पत्रकारों ने स्मिता प्रकाश पे ही एक पक्षपाती इंटरव्यू लेने का दोष मड़ दिया उनके चरित्र पे कांग्रेस समर्थित महिला "बुद्धिजीविओं" ने देह बेचने के भद्दे आरोप लगाए...!
अतः भाजपा का मीडिया मैनेजमेंट कांग्रेस की तुलना में उन्नीस ही रहेगा, चाहे वे किसी को भी इसकी जिम्मेवारी सौंप दे, यह प्रयास सोशल मीडिया से जुड़े लोगो को करना होगा कि वे प्रधानमंत्री के प्रयासों को सामने लाये और देश तोड़क शक्तियों को बेनक़ाब करे वैसे आप के पास मीडिया मैनेजमेंट के क्या सुझाव है और कैसे आप उसे पूरा करेंगे...?
यह मत बोलियेगा कि मीडिया समूहों के विरूद्ध कार्यवाई की जाये क्योकि उसके दिन अब कम से कम भारत जैसे लोकतान्त्रिक राष्ट्र में लद गए है...!
भानु प्रताप सिंह