#कांग्रेसपार्टी तुम जितना भी किसान आंदोलन कर ले या ट्रेड यूनियन का हड़ताल कर ले लेकिन 26 /11 तुम्हारे माथे पर लिखा हुआ कलंक मिट नहीं सकता
क़िताब पहले से लिख के तैयार थी... कलावा हाथ मे बंधा था, किसी भी हाल में जिंदा ना पकड़े जाने का ऑर्डर था..मुंबई 26/11 को भगवा,हिन्दू आतंकवाद बताने की पूरी स्क्रिप्ट तैयार थी.....पर भारतीय सेना के सेवानिवृत्त जवान, मुंबई पुलिस के असिस्टेंड सब इंस्पेक्टर अमर हुतात्मा स्वर्गीय तुकाराम गोपाल ओंबले जी के साहस ने सारा खेल बिगाड़ दिया ..!छाती छलनी हो गयी गोलियों से पर उन्होंने आख़री साँस तक आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को छोड़ा नहीं....पिछले पांच सौ सालों में शायद ही किसी अकेले शख्स ने हिंदुओं के लिये इतना बड़ा काम किया होगा.....!अमर बलिदानी हुतात्मा तुकाराम ओम्बले आपके बलिदान को शत शत नमन है आप न होते तो हर हिन्दू आतंकवादी कहलाता..😢🙏🏼🚩
#MumbaiTerrorAttack
कितना बड़ा कलेजा चाहिए एक्के सैंतालीस की नली के सामने अपनी छाती कर के सैकड़ों लोगों को मार चुके राक्षस का गिरेबान पकड़ने के लिए... एक गोली,दो गोली,दस गोली,बीस गोली... चालीस गोली... चालीस गोलियां कलेजे के आरपार हो गईं पर हाथ से उस राक्षस की कॉलर नहीं छूटी।प्राण छूट गया,पर अपराधी नहीं छूटा... कर्तव्य निर्वहन का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है यह।स्वर्गीय ओम्बले सेना में नायक थे। सेना से रिटायर होने के बाद उन्होंने मुंबई पुलिस ज्वाइन की थी।चाहते तो पेंशन ले कर आराम से घर रह सकते थे। पर नहीं,वे जन्मे थे लड़ने के लिए,जीतने के लिए... होते हैं कुछ योद्धा, जिनमें लड़ने की जिद्द होती है... वे कभी रिटायर नहीं होते, कभी बृद्ध नहीं होते, मृत्यु के क्षण तक युवा और योद्धा ही रहते हैं.
एक थे कैप्टन विक्रम बत्रा... कारगिल युद्ध में एक चोटी जीत लिए,तो अधिकारियों से जिद्द कर के दूसरी चोटी के युद्ध में निकल गए,दूसरी जीत के बाद तीसरी,तीसरी के बाद चौथी... अधिकारियों ने छुट्टी दी,तो नकार दिए। कहते थे, "ये दिल मांगे मोर.." जबतक मरे नहीं तबतक लड़ते रहे...एक थे बाबू कुंवर सिंह।अस्सी वर्ष की आयु में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े। लड़े तो ऐसे लड़े कि आजतक उनके नाम से गीत गाया जाता है.
एक थे फतेह बहादुर शाही,अंग्रेजों से लगातार चालीस वर्षों तक लड़े,और ऐसे लड़े कि उनकी मृत्यु के बीस वर्षों बाद तक कोई अंग्रेज अधिकारी यह सोच कर नहीं घुसा कि 'कौन जाने कहीं जी रहा हो...'एक थे बिरसा मुंडा!अंग्रेजों से लड़े... तोपों के विरुद्ध तीर ले कर लड़े... वही गुरु गोविंद सिंह जी वाला साहस,सवा लाख से एक लड़ाऊं की जिद्द... इतना लड़े कि लोगों ने उन्हें "भगवान" कहा, बिरसा भगवान...स्वर्गीय ओम्बले उसी श्रेणी के योद्धा थे। कलेजे के ताव से चट्टान तोड़ने की हिम्मत रखने वाले... कर्तव्यपरायणता की परिभाषा लिखने वाले...
कभी-कभी हम सामान्य जन कुछ पुलिस कर्मियों की गलत हरकतों के कारण चिढ़ कर उन्हें भला-बुरा कह देते हैं।मुझे लगता है हजार बुरे एक तरफ, और स्वर्गीय तुकाराम जी जैसा कोई एक, एक तरफ रहे तब भी वे बीस पड़ेंगे।राष्ट्र ऋणी रहेगा ऐसे योद्धाओं का...आज ही कहीं पढ़ रहे थे कि यह देश संबिधान के कारण चल रहा है।मैं कह रहा हूँ यह देश किसी किताब के बल पर नहीं चल रहा, यह देश चल रहा है स्वर्गीय तुकाराम ओम्बले जैसे लोगों की बज्र छातियों के बल पर,जो चालीस गोलियाँ खा कर भी सूत भर नहीं डिगतीं...
ऐसे योद्धाओं की कहानियाँ कही-सुनी जानी चाहिए।भगत सिंह, भगत सिंह इसलिए बने क्योंकि उन्होंने बचपन मे करतार सिंह सराबा की कथा सुनी थी।पण्डित चंद्रशेखर तिवारी,चंद्रशेखर आजाद इसलिए बने क्योंकि उन्होंने राणा और शिवा की कहानियाँ सुनी थीं।अपने बच्चों को तुकाराम ओम्बले की कहानियाँ सुनाना भारत!तभी तुम्हारे बच्चे योद्धा बनेंगे...
मेजर संदीप उन्नीकृष्णन...मुंबई हमलों में बंधकों को बचाने के लिए एनएसजी की जिस टीम को भेजा गया था,उसकी कमान मेजर संदीप के हाथों में थी।सेना के 1995 बैच के अधिकारी संदीप उन्नीकृष्णन अपने 10 कमांडों के साथ होटल ताज की बिल्डिंग में घुसे।इस दौरान आतंकियों की एक गोली उनके एक साथी सुनील यादव को आ लगी।संदीप उनको बचाने के लिए दौड़े और सुनील को कंधे पर डालकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया।पर इस दौरान उनको भी कुछ गोलियां आकर लगी।लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और घायल होने के बाद भी संदीप उन्नीकृष्णन ने 14 निर्दोष लोगो की जान बचायी को।संदीप की जवाबी कार्रवाई के बाद आतंकी जान बचाकर भागने लगे।मेजर संदीप उन भागते आतंकियों को ठिकाने लगाने के लिए ऊपर चढ़े।उन्होंने अपने साथियों से कहा....'ऊपर मत आना....मैं इनसे निपट लूंगा।'उन्होंने कुछ आतंकियों को मार डाला लेकिन एक आतंकवादी ने पीछे से छिपकर संदीप पर हमला कर दिया।आखिरी सांस तक संदीप उन्नीकृष्णन ने पाकिस्तानी आतंकवादियों से डटकर मुकाबला किया.
जब केरल के मुख्यमंत्री ने 26/11 के हमले में अपने प्राण न्योछावर कर देने वाले हुतात्मा के परिवार का अपमान किया था.."तू यदि #संदीप_उन्नीकृष्णन का बाप ना होता तो तेरे घर में कुत्ते भी मूतने ना आते.."ये शब्द थे केरल के तत्कालीन वामपंथी मुख्यमंत्री #वी_एस_अच्युतानंदन के....जो इस 5 वी पास 85 साल के निर्लज्ज और घमंडी बुड्ढे ने 26/11 के हुतात्मा मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के पिताजी,जो इसरो के रिटायर्ड वैज्ञानिक थे,श्री #के_उन्नीकृष्णन के लिये कहे थे.
जय श्री राम🙏🙏