हिंदुओं के साथ समस्या यह है कि वे अल्पकालिक सोचते हैं, 2019, 2024 में मोदी को सत्ता में लाना और फिर इसके बाद वे संतुष्ट हैं।
क्रिस्लामिस्ट दीर्घकालिक सोचते हैं, उनके उद्देश्य उनके मन मस्तिष्क मे स्पष्ट है जिसकी प्राप्ति हेतु वे निरंतर प्रयासरत हैं, इन 5-10 वर्षों में उनका धर्मांतरण का एजेंडा धीमा हो सकता है, किन्तु वे जानते हैं कि कोई भी सत्ता सदैव के लिए नहीं होती, इन 5-10 वर्षों के कालखंड में वे अपनी जनसंख्या बढ़ाकर अपनी शक्ति बढ़ाने पर केंद्रित हैं, ताकि जब अगली सरकार आए, तो वे अपने संख्याबल द्वारा उसपर दबाव बनाकर उस सरकार से अपने पक्ष में नीतियों का निर्माण करवाकर हिंदू भूमि को क्रिस्लामिस्ट भूमि में परिवर्तित करना तीव्र गति से जारी रख सकें, और उन्होंने अतीत में भी ठीक ऐसा ही किया है।
अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, म्यांमार, भूटान, श्रीलंका, बांग्लादेश, थाईलैंड, कंबोडिया, मलेशिया में कभी हिंदू बसते थे, परन्तु क्या आपने सोचा कि इन क्षेत्रों में अब हिंदू धर्म कहाँ है, वहां के हिन्दू निवासी आज कहाँ गायब हो गए ?
उन देशों के हिंदुओं को भी ऐसा लगता था कि "हम बहुमत में हैं, हमें हमारी इस भूमि से कभी हटाया अथवा समाप्त नहीं किया जा सकता", उन देशों के हिंदुओं ने भी यही सोचा था कि "हर धर्म एक जैसा होता है और मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है।"
किंतु अब ? अब उन हिंदुओं के क्रिस्लामिस्ट वंशज गर्व से "अल्लाहूअकबर" चिल्लाते हैं और खुलकर हिन्दुफोबिक मानसिकता का प्रदर्शन करते हैं, और वे अब अपने हिन्दू पूर्वजों की तरह मानवता को विश्व का सबसे बड़ा धर्म नहीं मानते।
इसलिए कहते हैं कि पंथों के युद्ध सदैव दीर्घकाल तक
लड़े जाते हैं और दीर्घावधि में ही जीते जाते हैं,
एक समय था जब सभ्यता के रूप में हिंदू धर्म अपने अस्तित्व, विरासत संस्कृति और धर्म कि रक्षा हेतु सर्वस्व दांव पर लगाकर रणभूमि में उतरने को तत्पर था, हर हिंदू अपने धर्म को बचाने के लिए लड़ने को सहर्ष तैयार था, इसलिए इतने लंबे समय तक हिंदू सभ्यता जीवित रह सकी, अब वह जीवटता कम होती दिख रही है इसलिए हिंदू धर्म को इस प्रकार विवश और संघर्षशील परिस्थिती का सामना करना पड़ रहा है,
आज हिंदू अपने अधिकारों के लिए भी लड़ने सड़कों पर नहीं आते जबकि क्रिस्लामिस्ट सही/गलत छोटी छोटी बातों पर भी ऐसा करने से नही हिचकते, इसलिए उन्हें न केवल उनके अधिकार मिले बल्कि वे आज देश मे प्रथम श्रेणी के विशेषाधिकार प्राप्त नागरिक भी है, उनकी इसी प्रवित्ति के कारण कोई भी उनके साथ अन्याय करने की हिम्मत नहीं करता, यहां तक कि कई हिंदू भी अपनी मूर्खतापूर्ण उदारता, आत्मघाती प्रवित्ति व् सद्गुण विकृति दोष के कारण उनकी उचित अनुचित मांगों के समर्थन में बिना सोचे समझे उनके संग जा खड़े होते हैं, जिस कारण से हिंदु सभ्यता के लिए भविष्य पहले से भी अधिक संघर्षशील और कठिन होने जा रहा है, क्योंकि क्रिस्लामिस्ट अपनी आबादी बढ़ा रहे हैं, वे अपनी कौम के संग अन्याय तो दूर की बात अपितु हिंदुओं के हित में बनने वाली प्रत्येक नीति और प्रत्येक निर्णय के विरुद्ध भी मुखरता से सड़कों पर उतरकर हिंसक प्रदर्शन करने से नहीं चूकते,
क्रिस्लामिस्ट रणनीतिक दीर्घकालिक योजनाबद्ध तरीके से अपने उद्देश्य की प्राप्ति हेतु आगे बढ़ रहे हैं और अधिकांश हिन्दू सभ्यता इस कड़वे यथार्थ से या तो अनभिज्ञ है अथवा इस कड़वे सत्य को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं है, और अपनी युवा पीढ़ी को सहिष्णुता, धर्मनिपेक्षता, सर्व धर्म सम्भाव, "मानवता ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है" वाली शिक्षा से पूरी तरह भर देते हैं
वहीं दूसरी ओर क्रिस्लामिस्ट अपने बच्चों को उनके धार्मिक कट्टरवाद की शिक्षा देते हैं ताकि उनकी लड़ाई उनके बाद भी जारी रहे, अतः यह समझना मुश्किल नहीं है कि पंथों के संघर्ष व् अस्तित्व के इस युद्ध के लिए कौन अधिक समर्पित, सुसज्जित व् बेहतर स्थिति में है।
Rohan sharma