Ravishankar Singh
अर्थव्यवस्था हमारा विषय नहीं है। तो मुझें इसपर अध्ययन करना पड़ा। मेरे पसंद के अर्थशास्त्री इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बंगलौर के डॉ भरत झुनझुनवाला है। इसी तरह कुछ और भी अर्थशास्त्री है। कृषि की बात है तो हम किसान भी है।
मैं अपने और सबके विचार को सरलता से किसान बिल और आंदोलन पर लिख रहा हूँ।
8 महीने से कोरोनाकाल में सरकार 29 करोड़ लोगों को खाद्दान्न उपलब्ध करा रही है। यह मात्रा 50 लाख टन से उपर है।
इसका अर्थ है भारत के पास अन्न उत्पादन उसकी आवश्यकता से भी अधिक है। निश्चित ही यह तकनीकी , किसानों की मेहनत का परिणाम है।
सरकार न्यूनतम मूल्य निर्धारित किया , किसानों की आय दुगुनी करने का प्रयास किया लेकिन कुछ खास अंतर नहीं पड़ा। सरकार का अगला कदम था ' किसान बिल '।
इस बिल कि आवश्यकता क्यों पड़ी ?
1- न्यूनतम मूल्य के निर्धारण के बाद भी किसानों की उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। हमारे यहां छोटे , मझोले किसान है वह मंडी में आढ़तियों , व्यापारियों का शिकार हो रहे है।
2- अधिकतर किसान परम्परागत खेती कर रहे है। धान , गेंहू , मक्का आदि। यह अन्न अंतराष्ट्रीय बाजार में बहुत सस्ती दर पर उपलब्ध है। निर्यात से लाभ नहीं हो रहा है।
लेकिन किसान की भी गलती नहीं है, यदि वह परम्परागत खेती न करें तो उसके उत्पादन का बाजार नहीं है। मंडिया, किसानों को मजबूर किया है कि वह परम्परागत खेती करें। वह वही खरीदते है।
किसान बिल ! कम्पनियों को यह अधिकार देता है कि वह मंडी से नहीं किसान से उत्पाद खरीदे। इससे किसानों को लाभ भी होगा वह परम्परागत खेती से हट सकते है। जैसे ब्राजील में कम्पनियों ने गन्ना से एथनॉल बनाया , वहां के किसानों के लिये लाभकारी रहा।
3- भारत में शोध बहुत कम होते है। कम्पनियां , अंतराष्ट्रीय बाजार के अनुसार शोध करके , किसानों को बीज उपलब्ध करा सकती है। जैसा कि जापान में होता है। इससे परम्परागत खेती से हटकर फूल , आयुर्वेद वनस्पति , फल , न्यूट्रिएंट्स नट आदि की पैदावार कम क्षेत्रफल में कि जा सकती है। अब खेती मृदा परीक्षण के बाद होती है जो अभी भारत में नहीं है। आपके खेत की मृदा किस फसल के लिये ठीक है यह शोध से ही पता चल सकता है।
किसानों की आय तभी बढ़ेगी जब उनका उत्पाद अंतराष्ट्रीय बाजार में जाय , वह गेंहू , धान से नहीं होगा। आज के युग में लोग पेट भरने के लिये भोजन नहीं करते बल्कि ऐसा भोजन चाहते जो उनकी शारिरिक क्षमता , प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाये। पूरी दुनिया में मांसाहार को अब ठीक नहीं माना जाता। अब लोग समुद्री वनस्पति , नट , फल आदि को पसंद करते है।
जैसे एक किसान 10 बीघे खेत से गेहूं , धान से जितना लाभ पा सकता है। उससे अधिक 2 बीघे मशरूम की खेती करके पा सकता है। लेकिन किसान कि समस्या यह कि मशरूम का बाजार नहीं है। मंडी में बैठा आढ़ती न्यूनतम मूल्य से कम पर गेहूं , धान खरीदकर किसान को लूट रहा है।
यदि कम्पनियां सीधे किसान से उसका उत्पादन खरीदे तो किसान को बाजार उपलब्ध होगा। वह परम्परागत खेती से हटकर , होने वाले परिवर्तनों के आधार पर खेती करेगा। इससे न ही न्यूनतम मूल्य कि आवश्यकता होगी न ही बिचौलियों कि। इस दबाव में मंडी के आढ़ती भी अपनी परम्परागत सोच से निकलकर , प्रतियोगिता करेंगें।
निश्चित ही किसानों का लाभ होगा! तात्कालिक रूप से अवश्य आढ़तियों , मंडियों को नुकसान का अंदेशा है लेकिन इन्होंने किसानों के साथ अत्याचार भी किया है, फिर भी इनको भी दूरगामी लाभ होगा।
जो लोग किसानी को मजबूर , दरिद्र , सर्वहारा बनाये रखने के लिये लालायित है वह परेशान है। बुद्धजीवी बनने का एक वर्ग कम न हो जाय।
आप प्रयोग भी नहीं करना चाहते , बदलाव भी चाहते है। तो क्या यह दूसरे ग्रह से आकर कोई करेगा।
यह आंदोलन अनुचित ही नहीं , दुराग्रही , किसान विरोधी है ।सरकार के अंध विरोधी परम्परा की बैलगाड़ी चलाना चाहते है। जो अब संभव नहीं है।।