अमिताभ बच्चन को सुपर स्टार, मेगा स्टार, सदी का महानायक घोषित किया जाना मीडिया द्वारा इस देश की सिनेप्रेमी जनता के साथ की गयी सदी की सबसे बड़ी धोखाधड़ी जालसाजी थी.
जानिए क्यों...
भारतीय फ़िल्मों या किसी भी देश की फ़िल्मों में किसी के भी सुपर स्टार होने की दो ही कसौटी होती हैं. पहली अभिनय की कसौटी तथा दूसरी कसौटी यह होती है कि उसकी फ़िल्में कितनी हिट हुईं, अर्थात् उसकी फ़िल्मों ने कितनी कमाई की.
दुर्भाग्य से भारतीय फ़िल्मों में सुपर स्टार होने की कसौटी अभिनय को कभी नहीं माना गया. यदि इस कसौटी पर किसी को भारतीय फ़िल्मों का सुपर स्टार माना जाए तो निर्विवाद रूप से स्व संजीव कुमार को भारतीय फ़िल्मों का सुपर स्टार, महानायक कहा जाता, विशेषकर 70 और 80 के दशक में. लेकिन यह कसौटी भारतीय फ़िल्मों के लिए हमेशा उपेक्षित रही उसे कभी मान्यता नहीं मिली. भारतीय फ़िल्मों का सुपरस्टार हमेशा दूसरी कसौटी के आधार पर ही तय होता रहा है. इसलिए आइए जानते हैं कि सदी का तथाकथित सुपर स्टार, मेगा स्टार, महानायक अमिताभ बच्चन इस कसौटी पर कितना खरा उतरता है.
पिछली पोस्ट में दीवार फिल्म तक के अमिताभ बच्चन के फिल्मी जीवन का विवरण दे चुका हूं. अब आज जानिए उससे आगे की कहानी...
24 जनवरी 1975 को रिलीज हुई दीवार फिल्म के साथ ही मीडिया ने अमिताभ बच्चन को सुपर स्टार घोषित कर दिया था. इसके बाद के अगले छह वर्षो, 12 दिसंबर 1980 को रिलीज हुई फिल्म शान तक के समय को अमिताभ बच्चन के फिल्मी जीवन का वह कालखंड माना जाता है जब अमिताभ बच्चन की लोकप्रियता चरम पर थी. इस दौरान अमिताभ बच्चन की 32 फ़िल्में रिलीज हुई थीं. लेकिन इन 32 फ़िल्मों में से अमिताभ बच्चन की केवल 8 (25%) फ़िल्में कमाई के मामले में साल की टॉप 5 हिट फ़िल्मों में शामिल हुईं थीं. ये फ़िल्में थीं...
1975 में 2, दीवार, शोले
1976 में 00
1977 में 2, अमर अकबर एंथोनी, परवरिश.
1978 में 3, मुकद्दर का सिकंदर, डॉन, त्रिशूल.
1979 में 1, सुहाग
1980 में 00
इन फ़िल्मों के अलावा कमाई के मामले में टॉप 10 अर्थात् नंबर 6 से 10 तक की सूची में अमिताभ बच्चन की केवल 7 और फ़िल्में शामिल हुईं.
1975, में 1, चुपके चुपके
1976 में 2, हेरा फेरी कभी कभी.
1977 में 0
1978 में 0
1979 में 2, नटवर लाल, काला पत्थर
1980 में 2 दोस्ताना, राम बलराम
उपरोक्त सूची बता रही है कि अमिताभ बच्चन के सुपर स्टारडम के 6 वर्ष के चरमकाल के दौरान रिलीज हुई अमिताभ बच्चन की 32 फ़िल्मों में से केवल 8 (26%) फ़िल्में उन 6 वर्षों के दौरान टॉप-5 सूची में शामिल हुईं 30 (हर वर्ष की 5 सर्वाधिक हिट फिल्म) फ़िल्मों की सूची में शामिल हुईं थीं.
1975 से 1980 तक टॉप-10 वाली 60 भारतीय फ़िल्मों की सूची में केवल 15 (25%) फ़िल्में अमिताभ बच्चन की थीं. क्या फ़िल्मों के हिट होने की यह दर और सफ़लता किसी को सुपर स्टार मेगास्टार या महानायक सिद्ध करती है.? लेकिन दिल्ली बंबई की मीडिया हमेशा यही ढोल पीटती रही. जबकि सुपर स्टार मेगा स्टार महानायक क्या होता है इसे इस उदाहरण से समझिए. 27 सितम्बर 1969 को रिलीज हुई आराधना से लेकर 7 मार्च 1975 को रिलीज हुई प्रेम कहानी तक के 6 वर्षों के दौरान वर्ष की टॉप-5 हिट (सर्वाधिक कमाई वाली) 30 फ़िल्मों में 16 (53%) फ़िल्में राजेश खन्ना की थीं. अर्थात् उन 6 वर्षो के दौरान पूरी फिल्म इंडस्ट्री जितनी टॉप-5 हिट फिल्म दे रही थी उससे ज्यादा टॉप-5 हिट अकेले राजेश खन्ना दे रहे थे. इसके अलावा इसी दौरान कमाई के मामले में नंबर 6 से 10 तक की 30 फ़िल्मों की सूची में भी राजेश खन्ना की 10 फ़िल्में शामिल थीं. अर्थात् उन 6 वर्षों के दौरान प्रतिवर्ष टॉप-10 रहीं 60 फ़िल्मों में राजेश खन्ना की 26 (44%) फ़िल्में शामिल थीं. सफ़लता की इस दर के सामने अमिताभ बच्चन की सफ़लता की कहानी कहीं टिकती नहीं. पर बात यहीं खत्म नहीं होती.
अमिताभ बच्चन के 6 वर्ष के उस चरमकाल के दौरान टॉप-10 वाली 60 फ़िल्मों में शामिल हुईं अमिताभ की 15 फ़िल्मों में से केवल 2 फ़िल्में डॉन और नटवर लाल ऐसी फ़िल्में थीं जिनमें अमिताभ बच्चन अकेले हीरो था. शेष 13 फ़िल्मों में विनोद खन्ना, धर्मेन्द्र, शशि कपूर शत्रुघ्न सिन्हा सरीखे उस दौर के कई हिट हीरो में से कोई ना कोई साथ था. जबकि राजेश खन्ना की टॉप-10 रहीं 26 फ़िल्मों में से केवल 2 फ़िल्मों आनंद और नमक हराम में अमिताभ बच्चन साथ था. शेष 24 फ़िल्मों में राजेश खन्ना अकेले हीरो थे. यह तथ्य एक हीरो और अपने दम पर फिल्म हिट कराने वाले एक सुपर स्टार के बीच का फर्क बता देता है.
हद तो यह है कि 1981 से 1985 के बीच की 5 वर्ष की समयावधि के दौरान जब मीडिया अमिताभ बच्चन को महानायक घोषित करने का नगाड़ा पीट रहा था उन 5 वर्षों के दौरान भी प्रत्येक वर्ष टॉप-5 हिट रही 25 फ़िल्मों की सूची में अमिताभ बच्चन की 5 फ़िल्में शामिल थीं. और राजेश खन्ना की 8 फ़िल्में शामिल थीं.
प्रत्येक वर्ष की हिट रही 6 से 10 नंबर तक की 25 फ़िल्मों में अमिताभ बच्चन की केवल एक फिल्म थी और राजेश खन्ना की 7 फ़िल्में थीं. अर्थात् 1981 से 1985 के बीच प्रत्येक वर्ष टॉप-10 की सूची में शामिल हुईं कुल 50 फ़िल्मों में से अमिताभ बच्चन की केवल 6 (12%) फ़िल्में शामिल थीं और राजेश खन्ना की 15 (30%) फ़िल्में शामिल थीं. ध्यान रहे ये वो दौर था जब मीडिया राजेश खन्ना को फ्लॉप एक्टर घोषित कर चुका था और अमिताभ बच्चन के लिए दिल्ली और बंबई का चाटुकार मीडिया सुपर स्टार से ऊपर मेगा स्टार, सदी का महानायक सरीखी बेशर्म उपमाएं गढ़ रह था.
अन्त में बची खुची कसर भी पूरी कर दूं कि 1981-85 वाले इस 5 वर्ष के कालखंड में वर्ष की टॉप-20 सूची में 11वें से 20वें नंबर पर रहीं 50 फ़िल्मों की सूची में अमिताभ बच्चन की कुल 7 फ़िल्में थीं और मीडिया द्वारा फ्लॉप एक्टर घोषित किए जा चुके राजेश खन्ना की 12 फ़िल्में थीं. 1975 से 1980 के मध्य भी इस श्रेणी की 60 फ़िल्मों में अमिताभ बच्चन की केवल 2 फ़िल्में थीं.
अब इससे ज्यादा क्या प्रमाण दूं😊..... कि अमिताभ बच्चन को सुपर स्टार, मेगा स्टार, सदी का महानायक घोषित किया जाना दिल्ली और तत्कालीन बंबई की मीडिया द्वारा इस देश की सिनेप्रेमी जनता के साथ की गयी सदी की सबसे बड़ी धोखाधड़ी जालसाजी थी.
तथ्यों की पुष्टि के लिए कृपया पहला कमेंट देखें.
सतीश चंद्र मिश्रा