प्रफुल्ल नागडा (जैन):
Awadhesh Pratap Singh
वाणिज्य में एक विषय पढ़ाया जाता है , जिसका नाम है - statistics (आँकड़ा विज्ञान ) । इसके प्रस्तावना में ही लिखा हुआ है कि विश्व में तीन तरह के झूठ होते हैं । पहला - झूठ , दूसरा - सफेद झूठ और तीसरा , वह झूठ , जो सबसे ख़तरनाक है , उसको कहते हैं आँकड़े ।
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का पूरा मॉडल एक आँकड़े GDP पर निर्भर है । पूंजीवादी शिक्षा व्यवस्था द्वारा सभी economics के विद्यार्थियों के दिमाग में एक बात कूट-कूट कर भरी जाती है कि अगर देश की जीडीपी बढ़ रही है , तो देश का विकास हो रहा है । जबकि होता इसके बिल्कुल विपरीत है ।
विकास का जीडीपी से कोई लेना देना नहीं है । उदाहरण के लिए अगर Health Sector यानि बड़ी-बड़ी दवा बनाने वाली कंपनियाँ ; जैसे - Cipla , pfizer आदि Grow कर रहा है , तो इसका अर्थ होता है कि आपके देश में बीमारियाँ बढ़ रही हैं , जबकि देश की GDP बढ़ रही होती हैं । आप क्या चाहेंगे - बीमार देश और बढ़ती GDP या स्वस्थ देश और कम वृद्धि वाली GDP ? हेल्थ सेक्टर की ग्रोथ का आपकी सेहत से बिल्कुल ही उल्टा संबंध है । अगर आप अधिक बीमार हो गए , तो देश की हेल्थ सेक्टर की जीडीपी अधिक बढ़ेगी ; लेकिन अगर देश अधिक स्वस्थ हो जाए , तो हेल्थ सेक्टर की ग्रोथ कम हो जाएगी । जिससे हेल्थ सेक्टर की कंपनियों के प्रॉफिट कम हो जाएँगे और शेयर मार्केट गिर जाएगी ।
देश में पूँजीवादी Media द्वारा जीडीपी का शोर मचाया जाता है । देश के 99 प्रतिशत लोगों को जीडीपी का अर्थ ही नहीं मालूम । वह न्यूज़ चैनलों , अखबार वालों के हो हल्ले से प्रभावित होकर सोचने लगते हैं कि जीडीपी कम होने से देश में बेरोजगारी बढ़ेगी । जबकि होता इसके बिल्कुल विपरीत है । जैसे कि मान लो एक शहर में 1000 सब्जी विक्रेता हैं । वह 1 साल में सब्जी बेचकर 2-2 लाख कमा लेते हैं ।लेकिन वे देश की जीडीपी में कोई भी योगदान नहीं देगें क्योंकि उनकी आय सरकार की किसी बही खाते मे दर्ज नहीं होती ।
मान लो अगर उसी शहर में एक Reliance Fresh की दुकान खुलती है , जो कि सब्जी भी बेचती है । धीरे धीरे वह दुकान 1000 सब्जी वालों को खत्म कर देती है और साल में 2000 लाख रुपया कमा लेती है , तो देश की जीडीपी 2000 लाख रुपया बढ़ जाएगी । इस तरह वह 1000 सब्जी वाले तो बेकार हो गए लेकिन देश की जीडीपी 2000 लाख रुपए बढ़ गई । पहले भी आपको सब्जी मिलती थी , अब भी आपको सब्जी ही मिलती है । अब सब्जी के व्यापार पर पूरी तरह कुछ चंद पूँजीपतियों का नियंत्रण हो जाएगा , लेकिन देश की जीडीपी बढ़ जाएगी ।
तीसरा देश की जीडीपी बढ़ने और महंगाई बढ़ने में सीधा तालमेल है । जैसे कि अगर देश का रियल स्टेट सेक्टर ग्रोथ कर रहा है , तो इसका अर्थ है की गरीब और मध्यम वर्ग के लिए जमीन महंगी हो रही है । अगर रियल स्टेट सेक्टर मंदा है यानि कि उसकी जीडीपी घट रही है , तो देश के गरीब और मध्यम वर्ग के लिए जमीन सस्ती उपलब्ध हो रही है ।
इस सारी जानकारी से यह निष्कर्ष निकलता है कि जीडीपी का विकास से कुछ लेना-देना नहीं । जीडीपी के आँकड़ों को पूंजीवादी मीडिया ; जैसे कि न्यूज़ पेपर , टीवी , आईएमएफ , वर्ल्ड बैंक द्वारा जोर-शोर से प्रचारित किया जाता है । आम लोग इस दुष्प्रचार के प्रभाव में आ जाते हैं , इसलिए सरकार को गलत निर्णय लेने पर मजबूर होना पड़ता है । पूँजीवादी मीडिया द्वारा किए गए हो हल्ले से डर कर सरकार बड़े बड़े पूँजीपतियों को विभिन्न तरीके के Stimulus Package दे देती है , जैसे कि ऋण में माफी , विभिन्न तरीके की सब्सिडी , टैक्स रेट में कटौती आदि ।
हमें इस बात को समझना होगा कि जीडीपी केवल और केवल एक आँकड़ा है और कुछ नहीं और यह आँकड़ा भी पूँजीवादी कंपनियों के लाभ के लिए गढ़ा गया है ।
तो प्रश्न यह उठता है कि विकास का पैमाना क्या है या क्या होना चाहिए ? विकास कहते किसे हैं ?
१. अगर आपकी सेहत पहले से अधिक अच्छी हो गई है , तो देश विकास कर रहा है ।
२. अगर आपका पर्यावरण पहले से अधिक सशक्त हो गया है , तो देश विकास कर रहा है ।
३. अगर आपकी हवा पहले से अधिक शुद्ध हो गई है , तो देश विकास कर रहा है ।
४. अगर आपके देश का पानी पहले से अधिक साफ हो गया है , तो आपका देश विकास कर रहा है ।
५. अगर आपकी परिवार व्यवस्था पहले से अधिक मजबूत हो गई है , तो आपका देश विकास कर रहा है ।
६. अगर आपके सिर के ऊपर कर्जा कम हो रहा है , तो आपका देश विकास कर रहा है ।
७. अगर आपके देश के मुद्रा की वैल्यू बढ़ रही है , तो देश का विकास हो रहा है ।
८. अगर आपके आपकी Cost of Living कम हो गई है , तो आपका देश विकास कर रहा है ।
९. अगर सबको त्वरित और निशुल्क न्याय मिलने लगा है , तो आपका देश विकास कर रहा है ।
१०. अगर भोजन पहले से अधिक पौष्टिक , स्वादिष्ट और मिलावट रहित हो गया है , तो आपका देश विकास कर रहा है ।
इन पैमानों को मूल्यांकन करने के लिए आपको किसी आँकड़े की जरूरत नहीं है । इसे आप खुद महसूस क
र सकते हैं ।आप इन आँकड़ों पर अपनी जिंदगी को कस कर देखें कि आप विकास कर रहे हैं कि आपका विनाश हो रहा है ।
इस तरह हमने देखा कि जीडीपी और आपके खुशी का बिल्कुल ही उल्टा संबंध है ।
देश की GDP से अधिक ध्यान अपने स्वास्थ्य और सुख-शांति पर दीजिये ।..अवधेश प्रताप सिंह कानपुर उत्तर प्रदेश