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ओशो के बारे में

ओशो रजनीश का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के एक छोटे से भारतीय गांव कुचवाड़ा में बाबूलाल और सरस्वती जैन के ग्यारह बच्चों के रूप में हुआ था. उनका वास्तविक नाम चंद्र मोहन जैन था. उनके पिता एक कपड़ा व्यापारी थे. ओशो ने अपना प्रारंभिक बचपन अपने दादा दादी के साथ बिताया और उनके साथ रहने में काफी स्वतंत्रता का आनंद लिया. उन्होंने अपने भविष्य के जीवन पर एक बड़ा प्रभाव डालने के लिए अपने शुरुआती जीवन के अनुभवों को श्रेय दिया था. ओशो अपने बचपन से ही सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर प्रश्न पूछते रहते थे. वे जबलपुर के हितकारिणी कॉलेज में अध्ययन कर रहे थे और उन्होंने कॉलेज के ही एक प्रशिक्षक के साथ किसी विषय पर बहस की थी जिसके कारण उन्हें वहां से निकाल दिया गया था. जिसके बाद उन्होंने वर्ष 1955 में डी.एन. जैन कॉलेज से फिलोसोफी में B.A. किया. वे छात्र जीवन से ही लोगों को भाषण देते थे. वर्ष 1957 में सागर यूनिवर्सिटी से उन्होंने फिलोसॉफी में डिस्टिंक्शन के साथ M.A. किया. उनका कहना था की सेक्स अध्यात्मिक विकास को प्राप्त करने की दिशा में पहला कदम है. उनकी इस बयान पर काफी आलोचना भी हुई परंतु समाज का एक बड़ा हिस्सा उनकी ओर आकर्षित होने लगा था. भारत के समृद्ध लोग उनकी ओर आकर्षित होकर उनसे परामर्श के लिए उनके पास आने लगे. वर्ष 1962 में जीवन जाग्रति केंद्र आयोजित किए और ध्यान पर केंद्रित शिक्षाओं का प्रचार करने लगे. 1966 तक वह एक अध्यात्मिक गुरु बन गए और उन्होंने आध्यात्मिक शिक्षा के लिए पूरी तरह समर्पित होने के लिए अपनी नौकरी को छोड़ दिया. ओशो बहुत ही खुले दिमाग और स्पष्ट विचारों के व्यक्ति थे और अन्य आध्यात्मिक गुरुओं से अलग थे. वर्ष 1968 में उन्होंने एक सेक्स पर आधारित व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन किया था. जिसे बाद में ‘फ्रॉम सेक्स टू सुपरकोनियनेस’ के रूप में प्रकाश

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ओशो की पुस्तकें

संभोग से समाधि की ओर- ओशो

संभोग से समाधि की ओर- ओशो

'संभोग से समाधि की ओर' ओशो की सबसे चर्चित और विवादित किताब है, जिसमें ओशो ने काम ऊर्जा का विश्लेषण कर उसे अध्यात्म की यात्रा में सहयोगी बताया है। साथ ही यह किताब काम और उससे संबंधित सभी मान्यताओं और धारणाओं को एक सकारात्मक दृष्टिकोण देती है। ओशो कहते

86 पाठक
20 रचनाएँ

निःशुल्क

संभोग से समाधि की ओर- ओशो

संभोग से समाधि की ओर- ओशो

'संभोग से समाधि की ओर' ओशो की सबसे चर्चित और विवादित किताब है, जिसमें ओशो ने काम ऊर्जा का विश्लेषण कर उसे अध्यात्म की यात्रा में सहयोगी बताया है। साथ ही यह किताब काम और उससे संबंधित सभी मान्यताओं और धारणाओं को एक सकारात्मक दृष्टिकोण देती है। ओशो कहते

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मन का दर्पण - ओशो

मन का दर्पण - ओशो

ओशो के मन का दर्पण में जीवन को जीने के तरीके के बारे में बताया गया है। उन्होने बताया कि जीवन मेरे लिए परमात्मा का ही पर्यायवाची है। जीवन का मतलब ही परमात्मा होता है। जीवन और प्रभु अलग-अलग नहीं हैं। अंदर कोई जागा हो तो इसी क्षण अभी यहीं जीवन और प्रभु

49 पाठक
4 रचनाएँ

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मन का दर्पण - ओशो

मन का दर्पण - ओशो

ओशो के मन का दर्पण में जीवन को जीने के तरीके के बारे में बताया गया है। उन्होने बताया कि जीवन मेरे लिए परमात्मा का ही पर्यायवाची है। जीवन का मतलब ही परमात्मा होता है। जीवन और प्रभु अलग-अलग नहीं हैं। अंदर कोई जागा हो तो इसी क्षण अभी यहीं जीवन और प्रभु

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मैं मृत्यु सिखाता हूं - ओशो

मैं मृत्यु सिखाता हूं - ओशो

इस किताब के माध्यम से ओशो समझाते हैं कि जन्म और मृत्यु एक ही सिक्के को दो पहलू हैं। जन्म और मृत्यु को मिलाकर ही पूरा जीवन बनता है। जो अपने जीवन को सही और पूरे ढंग से नहीं जी पाते, वही मृत्यु से घबराते हैं। सच तो यह है ओशो जीवन को पूरे आनंद के साथ जीन

25 पाठक
16 रचनाएँ

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मैं मृत्यु सिखाता हूं - ओशो

मैं मृत्यु सिखाता हूं - ओशो

इस किताब के माध्यम से ओशो समझाते हैं कि जन्म और मृत्यु एक ही सिक्के को दो पहलू हैं। जन्म और मृत्यु को मिलाकर ही पूरा जीवन बनता है। जो अपने जीवन को सही और पूरे ढंग से नहीं जी पाते, वही मृत्यु से घबराते हैं। सच तो यह है ओशो जीवन को पूरे आनंद के साथ जीन

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प्रेम-पंथ ऐसो कठिन

प्रेम-पंथ ऐसो कठिन

प्रेम से बड़ी आग नहीं है दुनिया में, प्रेम है अकेला जो आत्मा को जलाता है और निखारता है 'प्रेम - पंथ ऐसो कठिन' ओशो के प्रश्नोत्तर प्रवचनों का अद्भुत संकलन है यह। इस में प्रेम पर विस्तृत चर्चा की गई है। प्रेम को ओशो निर्मोही मानते हैं। प्रेम न तो कब्जा

24 पाठक
15 रचनाएँ

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प्रेम-पंथ ऐसो कठिन

प्रेम-पंथ ऐसो कठिन

प्रेम से बड़ी आग नहीं है दुनिया में, प्रेम है अकेला जो आत्मा को जलाता है और निखारता है 'प्रेम - पंथ ऐसो कठिन' ओशो के प्रश्नोत्तर प्रवचनों का अद्भुत संकलन है यह। इस में प्रेम पर विस्तृत चर्चा की गई है। प्रेम को ओशो निर्मोही मानते हैं। प्रेम न तो कब्जा

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कृष्ण स्मृति और गीता दर्शन

कृष्ण स्मृति और गीता दर्शन

ओशो द्वारा कृष्ण के बहु-आयामी व्यक्तित्व पर दी गई 21 र्वात्ताओं एवं नव-संन्यास पर दिए गए एक विशेष प्रवचन का अप्रतिम संकलन। यही वह प्रवचनमाला है जिसके दौरान ओशो के साक्षित्व में संन्यास ने नए शिखरों को छूने के लिए उत्प्रेरणा ली और “नव संन्यास अंतर्राष

19 पाठक
21 रचनाएँ

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कृष्ण स्मृति और गीता दर्शन

कृष्ण स्मृति और गीता दर्शन

ओशो द्वारा कृष्ण के बहु-आयामी व्यक्तित्व पर दी गई 21 र्वात्ताओं एवं नव-संन्यास पर दिए गए एक विशेष प्रवचन का अप्रतिम संकलन। यही वह प्रवचनमाला है जिसके दौरान ओशो के साक्षित्व में संन्यास ने नए शिखरों को छूने के लिए उत्प्रेरणा ली और “नव संन्यास अंतर्राष

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ध्यान योग, प्रथम और अंतिम मुक्ति

ध्यान योग, प्रथम और अंतिम मुक्ति

ओशो अपनी किताब ध्यान योग, प्रथम और अंतिम मुक्ति में कहते हैं कि 'ध्यानयोग प्रथम और अंतिम मुक्ति' ओशो द्वारा सृजित अनेक ध्यान विधियों का विस्तृत व प्रायोगिक विवरण है। ध्यान में कुछ अनिवार्य तत्व हैः विधि कोई भी हो, वे अनिवार्य तत्व हर विधि के लिए आवष

16 पाठक
7 रचनाएँ

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ध्यान योग, प्रथम और अंतिम मुक्ति

ध्यान योग, प्रथम और अंतिम मुक्ति

ओशो अपनी किताब ध्यान योग, प्रथम और अंतिम मुक्ति में कहते हैं कि 'ध्यानयोग प्रथम और अंतिम मुक्ति' ओशो द्वारा सृजित अनेक ध्यान विधियों का विस्तृत व प्रायोगिक विवरण है। ध्यान में कुछ अनिवार्य तत्व हैः विधि कोई भी हो, वे अनिवार्य तत्व हर विधि के लिए आवष

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महावीर वाणी - ओशो

महावीर वाणी - ओशो

इन प्रवचनों में महावीर वाणी की व्याख्या करते हुए ओशो ने साधना जगत से जुड़े गूढ़ सूत्रों को समसामयिक ढंग से प्रस्तुत किया है। इन सूत्रों में सम्मिलित हैं--समय और मृत्यु का अंतरबोध, अलिप्तता और अनासक्ति का भावबोध, मुमुक्षा के चार बीज, छह लेश्याएं: चेतन

11 पाठक
49 रचनाएँ

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महावीर वाणी - ओशो

महावीर वाणी - ओशो

इन प्रवचनों में महावीर वाणी की व्याख्या करते हुए ओशो ने साधना जगत से जुड़े गूढ़ सूत्रों को समसामयिक ढंग से प्रस्तुत किया है। इन सूत्रों में सम्मिलित हैं--समय और मृत्यु का अंतरबोध, अलिप्तता और अनासक्ति का भावबोध, मुमुक्षा के चार बीज, छह लेश्याएं: चेतन

11 पाठक
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मैं कौन हूं - ओशो

मैं कौन हूं - ओशो

"मैं कौन हूं?" इसका कोई उत्तर नहीं है; यह उत्तर के पार है। तुम्हारा मन बहुत सारे उत्तर देगा। तुम्हारा मन कहेगा, तुम जीवन का सार हो। तुम अनंत आत्मा हो। तुम दिव्य हो,' और इसी तरह के बहुत सारे उत्तर। इन सभी उत्तरों को अस्वीकृत कर देना है : नेति नेति--तु

7 पाठक
8 रचनाएँ

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मैं कौन हूं - ओशो

मैं कौन हूं - ओशो

"मैं कौन हूं?" इसका कोई उत्तर नहीं है; यह उत्तर के पार है। तुम्हारा मन बहुत सारे उत्तर देगा। तुम्हारा मन कहेगा, तुम जीवन का सार हो। तुम अनंत आत्मा हो। तुम दिव्य हो,' और इसी तरह के बहुत सारे उत्तर। इन सभी उत्तरों को अस्वीकृत कर देना है : नेति नेति--तु

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सत्य की प्यास - ओशो

सत्य की प्यास - ओशो

सत्य का हमारे दृष्टि में मूल्य नहीं है इसलिए हम विश्वासी बने हुए हैं। सत्य का हमारी दृष्टि में मूल्य होगा, तो हम विश्वासी नहीं हो सकते, हम खोजी बनेंगे। हमारी प्यास होगी, हम जानना चाहेंगे। ऐसा ओशो ने कहा है और उनकी इस किताब में आपको सत्य की प्यास क्या

4 पाठक
6 रचनाएँ

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सत्य की प्यास - ओशो

सत्य की प्यास - ओशो

सत्य का हमारे दृष्टि में मूल्य नहीं है इसलिए हम विश्वासी बने हुए हैं। सत्य का हमारी दृष्टि में मूल्य होगा, तो हम विश्वासी नहीं हो सकते, हम खोजी बनेंगे। हमारी प्यास होगी, हम जानना चाहेंगे। ऐसा ओशो ने कहा है और उनकी इस किताब में आपको सत्य की प्यास क्या

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प्रेम-पंथ ऐसो कठिन - ओशो

प्रेम-पंथ ऐसो कठिन - ओशो

शेरो-शायरी और कविताओं से भरपूर ये प्रवचन पंथ की सारी कठिनाई को दूर कर एक नई सुबह की तरह हमें अभिभूत कर लेते हैं। ओशो कहते हैं : 'मैं तो देखता हूं एक नया सूरज, एक नई सुबह, एक नया मनुष्य, एक नई पृथ्वी—वह रोज निखरती आ रही है। अगर हम थोड़े सजग हो जाएं तो

0 पाठक
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प्रेम-पंथ ऐसो कठिन - ओशो

प्रेम-पंथ ऐसो कठिन - ओशो

शेरो-शायरी और कविताओं से भरपूर ये प्रवचन पंथ की सारी कठिनाई को दूर कर एक नई सुबह की तरह हमें अभिभूत कर लेते हैं। ओशो कहते हैं : 'मैं तो देखता हूं एक नया सूरज, एक नई सुबह, एक नया मनुष्य, एक नई पृथ्वी—वह रोज निखरती आ रही है। अगर हम थोड़े सजग हो जाएं तो

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ओशो के लेख

ध्‍यान–सूत्र-(प्रवचन-07)

22 अप्रैल 2022
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शुद्धि और शून्यता से समाधि फलित—(प्रवचन—सातवां) मेरे प्रिय आत्मन्, साधना की भूमिका के परिधि बिंदुओं पर हमने बात की है। अब हम उसके केंद्रीय स्वरूप पर भी विचार करें। शरीर, विचार और भाव, इनकी शुद्धि औ

ध्यान योग-(अध्याय-06)

22 अप्रैल 2022
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साधना – सूत्र यहां प्रस्तुत हैं ओशो के विभिन्न साधकों को संकेत कर व्यक्तिगत रूप से लिखे गए साधना-संबंधी इक्कीस पत्र। ये पत्र “प्रेम के फूल, ढाई आखर प्रेम का, अंतर्वीणा, पद घुंघरू बांध, तत्वमसि तथा ट

ध्यान योग-(अध्याय-05)

22 अप्रैल 2022
0
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प्रवचन – अंश क्या तुम ध्यान करना चाहते हो? क्या तुम ध्यान करना चाहते हो? तो ध्यान रखना कि ध्यान में न तो तुम्हारे सामने कुछ हो, न पीछे कुछ हो। अतीत को मिट जाने दो और भविषय को भी। स्मृति और कल्पना–दो

प्रेम-पंथ ऐसो कठिन-(प्रवचन-15)

22 अप्रैल 2022
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प्रश्न-सार 1—परमात्मा मुझे कहीं भी दिखाई नहीं पड़ता है। मैं क्या करूं? 2–मैं संन्यास के लिए तैयार हूं। लेकिन यह कैसे जानूं कि परमात्मा ने मुझे पुकारा ही है? यह मेरा भ्रम भी तो हो सकता है! 3—कल आपने

प्रेम-पंथ ऐसो कठिन-(प्रवचन-14)

22 अप्रैल 2022
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प्रश्न-सार: 1—क्या मेरे सूखे हृदय में भी उस परम प्यारे की अभीप्सा का जन्म होगा? 2—आप वर्षों से बोल रहे हैं। फिर भी आप जो कहते हैं वह सदा नया लगता है। इसका राज क्या है? 3—मैं संसार को रोशनी दिखाना

प्रेम-पंथ ऐसो कठिन-(प्रवचन-13)

22 अप्रैल 2022
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प्रश्न-सार: 1—यह भाव निरंतर उभर आता है कि हो न हो भगवान बुद्ध ने आप ही के रूप में पुनरावतार लिया है। आप बुद्धक्षेत्र निर्मित कर रहे हैं। या कि आप लाओत्सु हैं, मैत्रेय भी नहीं? 2—मैं सुख को स्वीकार

प्रेम-पंथ ऐसो कठिन-(प्रवचन-12)

22 अप्रैल 2022
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प्रश्न-सार: 1—संन्यास का जन्म इस देश में हुआ, उसे गौरीशंकर जैसी गरिमा मिली, पर आज उसका सम्मान बस ऊपरी रह गया है। संन्यास और संन्यासी की अर्थवत्ता क्यों कर खो गई, कृपा करके समझाएं! 2—मैं क्या करूं?

प्रेम-पंथ ऐसो कठिन-(प्रवचन-11)

22 अप्रैल 2022
0
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प्रश्न-सार 1—तड़प ये दिन-रात की, कसक ये बिन बात की, भला ये रोग है कैसा? सजन, अब तो बता दे! अब तो बता दे, अब तो बता दे! तड़प ये दिन-रात की… 2—प्रेम पाप है? 3—आपका जीवन-दर्शन इतना सरल, सहज और सत्य

प्रेम-पंथ ऐसो कठिन-(प्रवचन-10)

22 अप्रैल 2022
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प्रश्न-सार- 1—बिन मांगे सच्चे रत्नों से झोली भर दी बिन चाहे मेरे जीवन में खुशियां भर दीं ये कैसे क्या कुछ हुआ, इसे कह दो भगवन अनहोनी थी जो बात, उसे होनी कर दी 2—प्रार्थना कैसे और कब जन्मती है? 3

प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-09

22 अप्रैल 2022
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प्रश्न-सार 1—मैं ध्यान करूं या भक्ति? और चूंकि कुछ तय ही नहीं हो पाता है, इसलिए प्रारंभ भी करूं तो कैसे करूं? 2—आपने एक प्रवचन में कहा था कि पुरुष के लिए "मैं-भाव' और स्त्री के लिए "मेरा-भाव' अर्था

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