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चलो!लापरवाह बनकर,कुछ!आराम किया जाये।बहुत!थक गये हैं हम तो,अब!परवाह करते-करते।डरता हूं, मैं तुमको खोने से,इसीलिए!थोड़ी दूरी बनाये रहता हूं,नाराज़गी!तेरे प्रति मेरी कत्तई नहीं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी
मुझे!ज्यादा नहीं,समझ सकी,अब तक।तुम्हारी पसंद,शायद!मेरे अलावा,कई! और रहे हों।वक्त का,तकाजा रहा है,तेरे!बदलते,स्वरूप पर,माप तौलकर!निकलते रहे मेरे शब्द।तुम!सोती रही,सुकून भरी,नींद रात भर।शीशे से,आंसुओ के
कुछ अनूठा ही रिश्ता है मेरा उस शख्स सेकभी उसे सोचने से सुकून मिलता है कभी बेचैनी...
इतना मुस्कुराओ जिंदगी में किजिंदगी भी देखकर मुस्कुरा उठे...
🌹 *विचार क्रांति* 🌹 *********************** 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 असफलता, ताने और उपेक्षा के सभी ईट संभाल कर रखो क्योंकि सफलता के शानदार महल इन्ही ईटों से बनते है ।। 🚩 *22 जनवरी* ,
असंभव वह नहीं जो हम नहीं कर पाते! असंभव वह है जो हम करना नहीं चाहते।
बिट्टो ! हां ,यही तो नाम है , उसका...... उसका भी मन करता था कि वह खेल -खिलौनों से खेले , किंतु उसकी मां के पास तो इतने पैसे ही नहीं थे कि वह उसको खिलौने दिलवा सके। एक दिन तो बिट्टो जिद करके ही बैठ ग
निशा का विवाह एक अभियंता से हो जाता है ,जिस पर सम्पूर्ण घर की ज़िम्मेदारियाँ थीं ,निशा ने भी उसका हर सुख -दुःख में सहयोग किया। उसकी हर ज़िम्मेदारी को अपना मानकर चली ,जिस कारण वो अपनी ओर, और अपनी इच्छाओं
जो-न तो,नियंत्रित हुआ,और-न ही,नियंत्रण किया।वह-प्रेम ही है,तो भला!इसे-रोका कैसे?जा सकता।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nbs
माँ हम जिसे पूजते है उसे कई रुपो में मानते है। कोई माँ कहता है कोई ईश्वर कोई परमात्मा कोई भगवान तो कोई अल्लाह कहता है। उस निराकार को लोग दो रुपो में विभाजित करते है एक पुरुष रुप व एक स्त्रैण रुप। इस
प्रणाम आचार्य जी, हाँ यदि हमे स्पष्ट दृष्टि मिल जाए तो हम समझ सकते है। उस दिशा की ओर कदम बढ़ा सकते हैं जो जन कल्याणकारी होगा सत्य की ओर बढ़ सकते है। जब किस
80 वर्षीय रामरति आज दांत दर्द से बेहाल थी उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें । खाना पीना सब कुछ ही हराम था, दांत दर्द कुछ होता ही ऐसा है जो ना तो जीने देता है और ना ही मरने देता है। रामरति का एक बे
प्रणाम सद्गुरू, मनुष्य को अभी तक पता नही है क्या है सुख, क्या है आनन्द। हम अपना बीमा कराते है ताकि परिवार के सदस्यो को आर्थिक संकट से गुजरना न पड़े। मनुष्य कभी हसता है कभी रो
पत्थर मूर्त ही नही ,दिल भी होता है, पिघल जाए शायद यह भ्रम क्यूं होता है।। =/= समझाया था उसे नफ़रत करे और करे जम कर,मगर ध्यान रहे, कि कतार मे खड़ा दुश्मन भी कोई होता है।। =/= मुसाफ़िर था,वह राह का,उसे,
दो अंखियों की अपनी एक कहानी हैएक है मरुथल एक में बहता पानी हैतुमने देखी मरुथल आंखें, कह दिया हैकी मेरा दिल पत्थर है बेमानी है-दिनेश कुमार कीर
आखिर!डरे सहमे,हिरनों ने भी,अंगड़ाई लेकर,बैठक में,निर्णय!ले ही लिया, अपन इतिहास!खुद ही,लिखने का।अब वो,थक गये थे,जंगल के राजा!और शिकारी! का,इतिहास! पढ़ते-पढ़ते।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बश
सच में,अगर ख्वाब!नहीं होते,तब तो-तुमसे मिलना भी,नहीं हो पाता।शुक्र है,खुदा का,जिसने-ख्वाब बनाकर,मुझको मिलाता है तुमसे।वरना!मैं पड़ा रहता,खामोश!तेरी रुह को,सुनाने की,कोशिश में।और तुम-इंतजार!करती रह जात
*विचार क्रांति* 🌹 *********************** 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 आसफलता, ताने और उपेक्षा के सभी ईट संभाल कर रखो क्योंकि सफलता के शानदार महल इन्ही ईटों से बनते है ।। 🚩 *22 जनवरी* , *2024* �
*155वीं बुंदेली दोहा प्रतियोगिता* दिनांक 16.3.2024प्रदत्त शब्द *कूत*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*1*राम नाम के जपे सें,भव सें बेड़ा पार।कूत परत बिलकुल नहीं,छूट जात संसार।। *** -