
विष्णु प्रभाकर
Vishnu Prabhakar was a Hindi writer who was born on June 21, 1912, in Miranpur, Uttar Pradesh, India. He was the first recipient of the Sahitya Akademi Award from Haryana. He is best known for his short stories, novels, plays, and travelogues. His works have elements of patriotism, nationalism, and social upliftment. Prabhakar's early education was in Miranpur and Hisar. He then went on to study at the Government College in Lahore. After graduating, he worked as a teacher for a few years. In 1938, he married Sushila Prabhakar, who was a great inspiration to him. Prabhakar's first published work was a short story called "Aag" (Fire) in 1935. He went on to write many more short stories, novels, plays, and travelogues. Some of his most famous works include the novels "Dharti Ka Beta" (Son of the Earth), "Saptadashi" (Seventeen), and "Gandhi Akhyan Mala" (Gandhi's Stories); the plays "Mukti" (Freedom) and "Shri Krishna Bal Leela" (The Divine Play of Krishna); and the travelogue "Antar Yatra" (Inner Journey). Prabhakar was awarded the Sahitya Akademi Award in 1993 for his novel "Saptadashi". He was also awarded the Hindi Sevi Samman - Mahapandit Rahul Sankrityayan Award in 1995 and the Padma Bhushan (the third highest civilian honour of India) in 2004. Prabhakar died on April 11, 2009, in New Delhi, at the age of 96. He was survived by his four children. Prabhakar's works are still widely read and appreciated today. He is considered one of the most important Hindi writers of the 20th century. His works continue to inspire and motivate readers with their messages o

आवारा मसीहा
मूल हिंदी में प्रकाशन के समय से 'आवारा मसीहा' तथा उसके लेखक विष्णु प्रभाकर न केवल अनेक पुरस्कारों तथा सम्मानों से विभूषित किए जा चुके हैं, अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद प्रकाशित हो चुका है और हो रहा है। 'सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार' तथा ' पाब्लो नेरुदा

आवारा मसीहा
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धरती अब भी घूम रही है
‘पद्यमभूषण’ से सम्मानित लेखक विष्णु प्रभाकर का यह कहानी-संकलन हिन्दी साहित्य में मील का पत्थर साबित हुआ है। इसमें लेखक ने जिन चुनिंदा सोलह कहानियों को लिया है उनकी दिलचस्प बात यह है कि अपनी हर कहानी से पहले उन्होंने उस घटना का भी उल्लेख किया है जिसने

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देश सेवकों के संस्मरण
देश सेवकों के संस्कार कई भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन और कार्य के बारे में निबंधों का एक संग्रह है। निबंध स्वतंत्रता सेनानियों के साथ प्रभाकर की व्यक्तिगत बातचीत और उनके जीवन और कार्य पर उनके शोध पर आधारित हैं। देश सेवकों के संस्कार में निब

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सप्तदशी
सप्तदशी विष्णु प्रभाकर का एक उपन्यास है, जो 1947 में प्रकाशित हुआ था. यह उपन्यास भारत के विभाजन के दौरान एक परिवार के जीवन का वर्णन करता है. उपन्यास का मुख्य पात्र, जयदेव, एक युवा व्यक्ति है जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल है. ज

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