रचनाकार- मदन मोहन सक्सेना
विधा- कविता
कभी मानब
ये सोचकर भ्रम में रहता है
वह कितना सक्षम ,समर्थ तथा शक्तिशाली है
जिसने
समुद्र, चाँद ,पर्बतों पर विजय प्राप्त कर ली है
परमाणु के बिषय में
गहन जानकारी प्राप्त कर ली है
भौतिक समृधि की सभी चीजों को प्राप्त कर लिया है
लेकिन शायद
कभी उसने ये विचार भी किया है
कि वह बास्तब में कितना
असक्षम , असमर्थ , लाचार है
अपने माता पिता
जिनका ब्यक्तित्ब
हमारे आचरण ब्यबहार एबम चरित्र का
मूलाधार होता है
उनके चयन करने में
वह पूरी तरह से असमर्थ होता है
ये मानब के बश में नहीं है
कि अपने माता पिता, परिबार को
अपनी आशानुरूप प्राप्त कर सके
अपना नाम
जो मानब को अक्सर माता पिता से मिलता है
उसकी पसंद नापसंद पर
उसका कोई अधिकार नहीं है
और अपने नाम कि खातिर
ना जानें !सभी क्या क्या करतें हैं
और धर्म
जिसको हम अपना जान लेतें हैं
जिसके सिद्धान्तों , आदर्शों ,परम्पराओं को
मानब मानने के लिए बाध्य है
उसी धरम कि ख़ातिर
ना जानें ? कितनें मंदिर मस्जिद गुरुदारें जलाएं जातें हैं
धर्म का चयन करनें में
किसी मानब कि कुछ भी नहीं चलती है
और ये अपना शरीर
जिसके साथ लगता है ,अपना अटूट सम्बन्ध है
किन्तु उसमें होने बाले
क्रमिक परिबर्तनों को
मानब अपनी आशानुरूप
परबर्तित नहीं कर सकता
ना ही ये शरीर
मानब कि किसी बात को मानने के लिए बाध्य है
मानब मन
जो बर्तमान को छोड़कर
अतीत तथा भबिष्य कि संदिग्ध गलियों में भटकत्ता रहता है
तथा हर पल
अपने को छोड़कर
दूसरों के विषय में ,सोचने में ब्यस्त रहता है
अपनी आँखें
जिनके पास अपनी ओर देखने का वक़्त नहीं है
सिबाय दूसरी ओर देखने के
और इसी में पूरा जीबन ब्यतीत होता है
लेकिन प्रत्येक मानब के मन में
ये भ्रम रहता है कि
मानब कितना
सक्षम ,समर्थ तथा शक्तिशाली है
मदन मोहन सक्सेना
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Introduction- मदन मोहन सक्सेना पिता का नाम: श्री अम्बिका प्रसाद सक्सेना संपादन :1. भारतीय सांस्कृतिक समाज पत्रिका २. परमाणु पुष्प , प्रकाशित पुस्तक:१. शब्द सम्बाद (साझा काब्य संकलन)२. कबिता अनबरत 3. मेरी प्रचलित गज़लें 4. मेरी इक्याबन गजलें मेरा फेसबुक पेज : ( 1980 + लाइक्स) https://www.facebook.com/MadanMohanSa
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