shabd-logo

कविता ,आलेख और मैं : खुद को भुलाने लगा आजकल हूँ

7 दिसम्बर 2017

101 बार देखा गया 101

सपने सजाने लगा आजकल हूँ
मिलने मिलाने लगा आज कल हूँ
हाबी हुयी शख्शियत मुझ पर उनकी
खुद को भुलाने लगा आजकल हूँ

इधर तन्हा मैं था उधर तुम अकेले
किस्मत ,समय ने क्या खेल खेले
गीत ग़ज़लों की गंगा तुमसे ही पाई
गीत ग़ज़लों को गाने लगा आजकल हूँ

जिधर देखता हूँ उधर तू मिला है
ये रंगीनियों का गज़ब सिलसिला है
नाज क्यों ना मुझे अपने जीवन पर हो
तुमसे रब को पाने लगा आजकल हूँ

खुद को भुलाने लगा आजकल हूँ

मदन मोहन सक्सेना

कविता ,आ लेख और मैं : खुद को भुलाने लगा आजकल हूँ

मदन मोहन सक्सेना की अन्य किताबें

1

कविता ,आलेख और मैं : जब बाज़ार जाता हूँ

20 अक्टूबर 2016
0
1
0

पाने की लिये ख़्वाहिश जब बाज़ार जाता हूँलुटने का अजब एहसास दिल मायूस कर देतामदन मोहन सक्सेना

2

मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (मौसम से बदलते हैं रिश्ते इस शहर में आजकल )

4 नवम्बर 2016
0
0
0

इन्सानियत दम तोड़ती है हर गली हर चौराहें पर ईट गारे के सिबा इस शहर में रक्खा क्या है इक नक़ली मुस्कान ही साबित है हर चेहरे पर दोस्ती ,प्रेम ,ज़ज्बात की शहर में कीमत ही क्या है मुकद्दर है सिकंदर तो सहारे बहुत हैं इस शहर में इस शहर में जो गिर चूका ,उसे बचाने में बचा ही क्या

3

कविता ,आलेख और मैं : कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है

4 अगस्त 2016
0
0
0

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ हैअँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल  ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम जुबां से दिल 

4

मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : सब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते हैं

9 सितम्बर 2016
0
0
0

1- ब्लॉग पर प्रकाशित रचनाएँ बिना अनुमति के उद्धृत न करें।किसी भी सामग्री को उद्धृत करने के लिए ब्लॉग लेखक की अनुमति अनिवार्य है। अनुमति प्राप्त करने के लिए इसमेल पर सम्पर्क करें-madansbarc@gmail.com2- ब्लॉग की किसी भी सामग्री को चुराकर अपने नाम से प्रकाशित करना

5

ग़ज़ल (बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम ना मिल सके)

10 अगस्त 2016
0
0
0

Hindi Sahitya | Hindi Poems | Hindi Kavitaकल तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआइक शख्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान हैबीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम ना मिल सकेजिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अनजान हैगर कहोगें दिन को दिन तो लोग जानेगें गुनाहअब आज के इस दौर में दीखते कहा

6

देकर दुआएँ आज फिर हम पर सितम वो कर गए

27 जुलाई 2016
0
0
0

Hindi Sahitya Kavya Sanklan provides free publishing opportunity to poets to write their poems in hindi, OR hindi kavita and hindi poems for kids Hindi Sahitya | Hindi Poems | Hindi Kavita | hindi poems for kids

7

ग़ज़ल( ये जीबन यार ऐसा ही ) - Sahityapedia

28 अक्टूबर 2016
0
0
0

ये जीबन यार ऐसा ही ,ये दुनियाँ यार ऐसी हीसंभालों यार कितना भी आखिर छूट जाना हैसभी बेचैन रहतें हैं ,क्यों मीठी बात सुनने कोसच्ची बात कहने पर फ़ौरन रूठ जाना हैसमय के साथ बहने का मजा कुछ और है प्यारेबरना, रिश्तें काँच से नाजुक इनको टूट जाना हैरखोगे हौसला प्यारे तो हर मुश्किल

8

प्रेम के रिश्ते हों सबसे ,प्यार का संसार हो

22 जुलाई 2016
0
1
0

 मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : प्रेम के रिश्ते हों सबसे ,प्यार का संसार हो मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : प्रेम के रिश्ते हों सबसे ,प्यार का संसार हो

9

मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट (सांसों के जनाजें को तो सब ने जिंदगी जाना ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित)

5 अगस्त 2016
0
0
0

मेरी पोस्ट (सांसों के जनाजें को तो सब ने जिंदगी जाना ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित)प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट , (सांसों के जनाजें को तो सब  ने जिंदगी जाना) जागरण जंक्शन में प्रकाशित हुयी है , बहुत बहुत आभार जागरण जंक्शन टीम। आप भी अपन

10

गज़ल ( अहसास)

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : गज़ल ( अहसास)

11

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : अर्थ का अनर्थ (अब तो आ कान्हा जाओ) जन्माष्टमी बिशेष

23 अगस्त 2016
0
1
0

एक रोज हम यूँ ही बृन्दावन गये भगबान कृष्ण हमें बहां मिल गयेभगवान बोले ,बेटा मदन क्या हाल है ?हमने कहा दुआ है ,सब मालामाल हैं कुछ देर बाद हमने ,एक सवाल कर दिया भगवान बोले तुमने तो बबाल कर दिया सवाल सुन करके बो कुछ लगे सोचने मालूम चला ,लगे कुछ बह खोजने हमने उनसे कहा ,ऐसा तु

12

कविता ,आलेख और मैं : जय हिंदी जय हिंदुस्तान मेरा भारत बने महान

16 अगस्त 2016
0
1
0

गंगा यमुना सी नदियाँ हैं जो देश का मन बढ़ाती हैंसीता सावित्री सी देवी जो आज भी पूजी जाती हैंयहाँ जाति धर्म का भेद नहीं सब मिलजुल करके रहतें हैंगाँधी सुभाष टैगोर तिलक नेहरु का भारत कहतें हैंयहाँ नाम का कोई जिक्र नहीं बस काम ही देखा जाता हैजिसने जब कोई काम किया बह ही सम्मान

13

सांसों के जनाजें को तो सव ने जिंदगी जाना - Sahityapedia

25 जुलाई 2016
0
1
0

 सांसों के जनाजें को तो सव ने जिंदगी जाना - Sahityapedia

14

मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : जिसे देखे हुए हो गया अर्सा मुझे

27 सितम्बर 2016
0
0
0

जिसे देखे हुए हो गया अर्सा मुझे किस ज़माने की बात करते हो रिश्तें निभाने की बात करते होअहसान ज़माने का है यार मुझ पर क्यों राय भुलाने की बात करते होजिसे देखे हुए हो गया अर्सा मुझे दिल में समाने की बात करते होतन्हा गुजरी है उम्र क्या कहिये जज़्बात दबाने की बात करते होगर तेरा

15

प्रीत

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : प्रीत

16

ग़ज़ल गंगा: दिवाली और मेरे शेर

28 अक्टूबर 2016
0
0
0

दिवाली और मेरे शेर दिवाली का पर्व है फिर अँधेरे में हम क्यों रहें चलो हम अपने अहम् को जलाकर रौशनी कर लें *************************************दिवाली का पर्व है अँधेरा अब नहीं भाता मुझे आज फिर मैंने तेरी याद के दीपक जला लिए दीपाबली शुभ हो मदन मोहन सक्सेना ग़ज़ल गंगा:

17

गज़ल (कुदरत) - Sahityapedia

28 जुलाई 2016
0
0
0

 गज़ल (कुदरत) - Sahityapedia

18

चंद शेर आपके लिए - Open Books Online

28 अक्टूबर 2016
0
0
0

चंद शेर आपके लिएएक।दर्द मुझसे मिलकर अब मुस्कराता हैजब दर्द को दबा जानकार पिया मैंनेदो.वक्त की मार सबको सिखाती सबक़ हैज़िन्दगी चंद सांसों की लगती जुआँ हैतीन.समय के साथ बहने का मजा कुछ और है यारोंरिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता हैचार.जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भीब

19

हर एक दल में सत्ता की जुगलबंदी नजर आयें

17 जून 2016
0
2
0

सोचकैसी सोच अपनी है किधर हम जा रहें यारोंगर कोई देखना चाहें बतन मेरे बो आ जाये तिजोरी में भरा धन है मुरझाया सा बचपन हैग़रीबी भुखमरी में क्यों जीबन बीतता जायेना करने का ही ज़ज्बा है ना बातों में ही दम दीखताहर एक दल में सत्ता की जुगलबंदी नजर आयें .कभी बाटाँ धर्म ने है कभी जाति में खो जातेहमारें रह्नु

20

ग़ज़ल (मौका ) - मदन मोहन सक्सेना - Sahityapedia

7 नवम्बर 2016
0
0
0

रचनाकार- मदन मोहन सक्सेनाविधा- गज़ल/गीतिकाग़ज़ल (मौका )मिली दौलत ,मिली शोहरत,मिला है मान उसको क्योंमौका जानकर अपनी जो बात बदल जाता है .किसी का दर्द पाने की तमन्ना जब कभी उपजेजीने का नजरिया फिर उसका बदल जाता है ..चेहरे की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा हैतन्हाई के आलम में ये अक्स

21

ग़ज़ल(मुहब्बत)

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल(मुहब्बत)

22

मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (रिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता है )

8 अगस्त 2016
0
1
0

ग़ज़ल (रिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता है )  मुसीबत यार अच्छी है पता तो यार चलता है कैसे कौन कब कितना,  रंग अपना बदलता है किसकी कुर्बानी को किसने याद रक्खा है दुनियाँ  में जलता तेल और बाती है कहते दीपक जलता है मुहब्बत को बयाँ करना किसके यार बश में है उसकी यादों का दिया

23

ग़ज़ल(मुहब्बत)

24 जून 2016
0
2
1

 ग़ज़ल(मुहब्बत)    नजर फ़ेर ली है खफ़ा हो गया हूँबिछुड़ कर किसी से जुदा हो गया हूँ मैं किससे करूँ बेबफाई का शिकबाकि खुद रूठकर बेबफ़ा हो गया हूँ  बहुत उसने चाहा बहुत उसने पूजामुहब्बत का मैं देवता हो गया हूँ  बसायी थी जिसने दिलों में मुहब्बतउसी के लिए क्यों बुरा हो गया हूँ  मेरा नाम अब क्यों तेरे लब पर भी आ

24

मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट , ( ग़ज़ल )हर पल याद रहती है निगाहों में बसी सूरत जागरण जंक्शन में प्रकाशित

12 अगस्त 2016
0
0
0

 http://madansbarc.jagranjunction.com/2016/08/08/%EF%BB%BF-%E0%A5%9A%E0%A5%9B%E0%A4%B2-%E0%A4%B9%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A4%B2-%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6-%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%97/सजा क्या खूब मिलती है किसी से

25

मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल ( प्यारे पापा डैड हो गए )

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल ( प्यारे पापा डैड हो गए )

26

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : खुशबुओं की बस्ती

19 अगस्त 2016
0
0
0

खुशबुओं की बस्ती खुशबुओं की बस्ती में रहता प्यार मेरा है आज प्यारे प्यारे सपनो ने आकर के मुझको घेरा है उनकी सूरत का आँखों में हर पल हुआ यूँ बसेरा हैअब काली काली रातो में मुझको दीखता नहीं अँधेरा है जब जब देखा हमने दिल को ,ये लगता नहीं मेरा है प्यार पाया जब से उनक

27

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : हम आप और रक्षा बंधन

18 अगस्त 2016
0
0
0

राखी का त्यौहार आ ही गया ,इस त्यौहार को मनाने के लिए या कहिये की मुनाफा कमाने के लिए समाज के सभी बर्गों ने कमर कस ली है। हिन्दुस्थान में राखी की परम्परा काफी पुरानी है . बदले दौर में जब सभी मूल्यों का हास हो रहा हो तो भला राखी का त्यौहार इससे अछुता कैसे रह सकता है। मुझे

28

गुनगुनाना चाहता हूँ

25 जुलाई 2016
0
0
0

Hindi Sahitya Kavya Sanklan provides free publishing opportunity to poets to write their poems in hindi, OR hindi kavita and hindi poems for kids Hindi Sahitya | Hindi Poems | Hindi Kavita | hindi poems for kids

29

ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल ( क्या जज्बात की कीमत चंद महीने के लिए है )

6 सितम्बर 2016
0
0
0

दर्द को अपने से कभी रुखसत ना कीजियेक्योंकि दर्द का सहारा तो जीने के लिए है पी करके मर्जे इश्क़ में बहका ना कीजियेख़ामोशी की मदिरा तो सिर्फ पीने के लिए है फूल से अलगाब की खुशबु ना लीजिये क्या प्यार की चर्चा केबल मदीने के लिए है टूटे हैं दिल , टूटा भरम और ख्बाब भी

30

शिब और शिबरात्रि (धार्मिक मान्यताएँ )

21 जुलाई 2016
0
0
0

 कविता ,आलेख और मैं : शिब और शिबरात्रि (धार्मिक मान्यताएँ )

31

मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : दिखाए कैसे कैसे रँग मुझे अब आज जीबन है

15 सितम्बर 2016
0
0
0

कभी अपनों से अनबन है कभी गैरों से अपनापनदिखाए कैसे कैसे रँग मुझे अब आज जीबन हैना रिश्तों की ही कीमत है ना नातें अहमियत रखतेंरिश्तें हैं उसी से आज जिससे मिल सके धन हैसियासत में नहीं युबा , बुढ़ापा काम पा जातासमय ये आ गया कैसा दिल में आज उलझन हैसच्ची बात किसको आज सुनना अच्छ

32

मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : गज़ल (शून्यता)

26 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : गज़ल (शून्यता)

33

मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : नबरात्र और माँ के नौ स्वरुप

10 अक्टूबर 2016
0
0
0

नबरात्र और माँ के नौ स्वरुप तुम भक्तों की रख बाली हो ,दुःख दर्द मिटाने बाली हो तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों मेंनब रात्रि में भक्त लोग माँ दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा अर्चना करके माँ का आश्रिबाद प्राप्त करतें है।पहले दिनमां शैलपुत्री की आराधना की

34

सही चुपचाप रहता है और झूठा चीखता क्यों है

14 जून 2016
0
1
2

जिसे चाहा उसे छीना , जो पाया है सहेजा है                  उम्र बीती है लेने में ,मगर फिर शून्यता क्यों हैं सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देनादेने में ख़ुशी जो है, कोई बिरला  सीखता क्यों है  कहने को तो , आँखों से नजर आता सभी को हैअक्सर प्यार में ,मन से मुझे फिर दीखता क्यों है दिल भी यार पागल ह

35

कविता ,आलेख और मैं : कहतें दीपक जलता है

26 अक्टूबर 2016
0
0
0

किस की कुर्वानी को किसने याद रखा है दुनियाँ मेंजलता तेल औ बाती है कहतें दीपक जलता हैपथ में काँटें लाख बिछे हो मंजिल मिल जाती है उसकोबिन भटके जो इधर उधर ,राह पर अपनी चलता हैमिली दौलत मिली शोहरत मिला है यार सब कुछ क्योंजैसा मौका बैसी बातें , जो पल पल बात बदलता हैछोड़ गया

36

मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट , ग़ज़ल ( जीबन के रंग ) जागरण जंक्शन में लगातार दूसरे हफ्ते प्रकाशित

27 जुलाई 2016
0
0
0

 मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट , ग़ज़ल ( जीबन के रंग ) जागरण जंक्शन में लगातार दूसरे हफ्ते प्रकाशित

37

ग़ज़ल (जिंदगी का ये सफ़र ) - Sahityapedia

28 अक्टूबर 2016
0
0
0

कल तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआइक शक्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान हैबीती उम्र कुछ इस तरह की खुद से हम न मिल सकेजिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अनजान हैगर कहोगें दिन को दिन तो लोग जानेगें गुनाहअब आज के इस दौर में दीखते नहीं इन्सान हैइक दर्द का एहसास हमको हर समय मिलता

38

प्यार का बंधन

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : प्यार का बंधन

39

दिवाली और मेरे शेर - Sahityapedia

28 अक्टूबर 2016
0
0
0

दिवाली और मेरे शेरदिवाली का पर्व है फिर अँधेरे में हम क्यों रहेंचलो हम अपने अहम् को जलाकर रौशनी कर लें *************************************दिवाली का पर्व है अँधेरा अब नहीं भाता मुझेआज फिर मैंने तेरी याद के दीपक जला लिए दीपाबली शुभ होPost Views- 1मदन मोहन सक्सेनाPosts- 1

40

मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट (जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित)

29 जुलाई 2016
0
0
0

 मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट (जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित)

41

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : अमाबस की अंधेरी में ज्यों चाँद निकल आया है

2 नवम्बर 2016
0
0
0

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : अमाबस की अंधेरी में ज्यों चाँद निकल आया है

42

क़यामत से क़यामत तक हम इंतजार कर लेगें

8 जून 2016
0
3
2

बोलेंगे जो भी हमसे बह ,हम ऐतवार कर लेगें जो कुछ भी उनको प्यारा है ,हम उनसे प्यार कर लेगें बह मेरे पास आयेंगे ये सुनकर के ही सपनो में क़यामत से क़यामत तक हम इंतजार कर लेगें मेरे जो भी सपने है और सपनों में जो सूरत है उसे दिल में हम सज़ा करके नजरें चार कर लेगें जीवन भर की सब खुशियाँ ,उनके

43

ग़ज़ल (लाचारी ) - Sahityapedia

4 नवम्बर 2016
0
0
0

ग़ज़ल (लाचारी )कुछ इस तरह से हमने अपनी जिंदगी गुजारी हैजीने की तमन्ना है न मौत हमको प्यारी हैलाचारी का दामन आज हमने थाम रक्खा हैउनसे किस तरह कह दें की उनकी सूरत प्यारी हैनिगाहों में बसी सूरत फिर उनको क्यों तलाशे हैना जाने ऐसा क्यों होता और कैसी बेकरारी हैबादल बेरुखी के द

44

खुशबुओं की बस्ती - Sahityapedia

5 अगस्त 2016
0
0
0

खुशबुओं की बस्ती - Sahityapediaखुशबुओं की बस्तीखुशबुओं की बस्ती में रहता प्यार मेरा हैआज प्यारे प्यारे सपनो ने आकर के मुझको घेरा हैउनकी सूरत का आँखों में हर पल हुआ यूँ बसेरा हैअब काली काली रातो में मुझको दीखता नहीं अँधेरा है जब जब देखा हमने दिल को ,ये लगता नही

45

ग़ज़ल (सपनें खूब मचलते देखे) - Sahityapedia

5 अगस्त 2016
0
0
0

ग़ज़ल (सपनें खूब मचलते देखे)सपनीली दुनियाँ मेँ यारों सपनें खूब मचलते देखेरंग बदलती दूनियाँ देखी ,खुद को रंग बदलते देखासुबिधाभोगी को तो मैनें एक जगह पर जमते देख़ाभूखों और गरीबोँ को तो दर दर मैनें चलते देखादेखा हर मौसम में मैनें अपने बच्चों को कठिनाई मेंमैनें टॉमी डॉगी शेरू को

46

दिल की बातें

19 जून 2016
0
3
1

<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves></w:TrackMoves> <w:TrackFormatting></w:TrackFormatting> <w:PunctuationKerning></w:PunctuationKerning> <w:ValidateAgainstSchemas></w:ValidateAgainstSchemas> <w:Sav

47

मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट " जिंदगी जिंदगी" ओपन बुक्स ऑनलाइन वेव साईट में

5 अगस्त 2016
0
0
0

मेरी पोस्ट " जिंदगी जिंदगी" ओपन बुक्स ऑनलाइन वेव साईट मेंप्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत हर्ष हो रहा है कि मेरी पोस्ट  " जिंदगी जिंदगी " ओपन बुक्स ऑनलाइन    वेव साईट में शामिल की गयी है।  आप सब अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएं करायें। लिंक नीचे दिया गया है।Your blog po

48

ग़ज़ल (इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर )

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर )

49

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : आ गया राखी का पर्ब

9 अगस्त 2016
0
1
0

आ गया राखी का पर्बराखी का त्यौहार आ ही गया ,इस  त्यौहार को मनाने  के लिए या कहिये की मुनाफा कमाने के लिए समाज के सभी बर्गों ने कमर कस ली है। हिन्दुस्थान में राखी की परम्परा काफी पुरानी है . बदले दौर में जब सभी मूल्यों का हास हो रहा हो तो भला राखी का त्यौहार इससे अछुता कैस

50

ठीक उसी तरह जैसे

8 जून 2016
0
2
1

ठीक उसी तरह जैसेअपने अनुभबों,एहसासों ,बिचारों कोयथार्थ रूप मेंअभिब्यक्त करने के लिएजब जब मैनें लेखनी का कागज से स्पर्श कियाउस समय मुझे एक बिचित्र प्रकार केसमर से आमुख होने का अबसर मिलालेखनी अपनी परम्परा प्रतिष्टा मर्यादा के लिए प्रतिबद्ध थीजबकि मैं यथार्थ चित्रण के लिए बाध्य थाइन दोनों के बीच कागज म

51

कविता ,आलेख और मैं : हम आप और रक्षा बंधन

12 अगस्त 2016
0
0
0

राखी का त्यौहार आ ही गया ,इस  त्यौहार को मनाने  के लिए या कहिये की मुनाफा कमाने के लिए समाज के सभी बर्गों ने कमर कस ली है। हिन्दुस्थान में राखी की परम्परा काफी पुरानी है . बदले दौर में जब सभी मूल्यों का हास हो रहा हो तो भला राखी का त्यौहार इससे अछुता कैसे रह सकता है। मुझे

52

ग़ज़ल (वक़्त की रफ़्तार)

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (वक़्त की रफ़्तार)

53

मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : दो दिन के बाद स्वतंत्रता दिवस है यानि की १५ अगस्त

12 अगस्त 2016
0
0
0

दो दिन के बाद स्वतंत्रता दिवस है यानि की १५ अगस्त सरकारी अमला जोर शोर से तैयारी कर रहा हैस्कूल के बच्चे और टीचर अपने तरह से जुटे हुए हैं  पर्ब मनाने के लिएकुछ लोग छुट्टी जाकरलॉन्ग वीकेंड को मनाने को लेकर उत्साहित हैंछोटी मुनिया , छोटूये सोच कर बहु खुश है किपेपर और प्लास्ट

54

बचपन

20 जुलाई 2016
0
0
0

55

कविता ,आलेख और मैं : खेल ओलंपिक और हम

17 अगस्त 2016
0
1
0

      बीसबीं सदी के पुर्बाध में भूतकाल के शुष्क धरातल पर जब हमारें पुर्बजों ने भबिष्य की आबश्यक्तायों की   पूर्ति के लिए अपने देश में   आयत करके भ्रष्टाचार का एक बीज रोपा था इस बिश्बास के साथ किआगे आने बाले समय  में नयी पीढ़ियों का जीवन सुखद सरल एबम सफल होगा किन्तु इस आशं

56

ग़ज़ल (हक़ीकत)

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (हक़ीकत)

57

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : हे ईश्वर

19 अगस्त 2016
0
0
0

हे ईश्वर आखिर तू ऐसा क्यूँ करता है अशिक्षित ,गरीब ,सरल लोग तो अपनी ब्यथा सुनाने के लिए तुझसे मिलने के लिए ही आ रहे थे बे सुनाते भी तो भला किस को आखिर कौन उनकी सुनता ?और सुनता भी तो कौन उनके कष्टों को दूर करता ?उन्हें बिश्बास था कि तू तो रहम करेगा किन्तु सुनने की बात तो द

58

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : मुक्तक (किस्मत)

19 अगस्त 2016
0
0
0

मुक्तक (किस्मत)रोता नहीं है कोई भी किसी और के लिएसब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते हैंप्यार की दौलत को कभी छोटा न समझना तुमहोते है बदनसीब ,जो पाकर इसे खोते हैं मुक्तक प्रस्तुति:मदन मोहन सक्सेना मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : मुक्तक (किस्मत)

59

गज़ल (तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा)

25 जुलाई 2016
0
0
0

 मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : गज़ल (तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा)

60

ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल( समय से कौन जीता है समय ने खेल खेले हैं)

22 अगस्त 2016
0
0
0

ग़ज़ल(समय से कौन जीता है समय ने खेल खेले हैं)अपनी जिंदगी गुजारी है ख्बाबों के ही सायें में ख्बाबों में तो अरमानों के जाने कितने मेले हैं भुला पायेंगें कैसे हम ,जिनके प्यार के खातिर सूरज चाँद की माफिक हम दुनिया में अकेले हैं महकता है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत ही मुहब

61

ग़ज़ल (ये कैसा परिवार )

21 जुलाई 2016
0
1
0

 गज़ल (ये कैसा परिवार) | जय विजय

62

श्री कृष्णजन्माष्टमी का पर्ब आप सबको मंगलमय हो - Sahityapedia

25 अगस्त 2016
0
0
0

उत्थान पतन मेरे भगवन है आज तुम्हारे हाथों मेंप्रभु जीत तुम्हारें हाथों में प्रभु हार तुम्हारें हाथों में मुझमें तुममें है फर्क यही मैं नर हूँ तुम नारायण होमैं खेलूँ जग के हाथों में संसार तुम्हारें हाथों मेंतुम दीनबंधु दुखहर्ता हो तुम जग के पालन करता होइस मुर्ख खल और क

63

ग़ज़ल (पहचान)

25 जुलाई 2016
0
2
0

 ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल (पहचान)

64

मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (निगाहों में बसी सूरत फिर उनको क्यों तलाशे है)

7 सितम्बर 2016
0
0
0

कुछ इस तरह से हमने अपनी जिंदगी गुजारी है ना जीने की तमन्ना है ना मौत हमको प्यारी हैलाचारी का दामन आज हमने थाम रक्खा है उनसे किस तरह कह दें कि उनकी सूरत प्यारी हैनिगाहों में बसी सूरत फिर उनको क्यों तलाशे हैना जाने ऐसा क्यों होता और कैसी बेकरारी हैबादल बेरुखी के दिखने प

65

इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर

13 जून 2016
0
1
1

इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबरहर सुबह रंगीन अपनी शाम हर मदहोश हैवक़्त की रंगीनियों का चल रहा है सिलसिलाचार पल की जिंदगी में ,मिल गयी सदियों की दौलतजब मिल गयी नजरें हमारी ,दिल से दिल अपना मिलानाज अपनी जिंदगी पर ,क्यों न हो हमको भलाकई मुद्द्दतों के बाद फिर अरमानों का पत्ता हिलाइश्क क्या

66

कविता ,आलेख और मैं : हम आप और हिंदी ( १४ सितम्बर )

14 सितम्बर 2016
0
0
0

हिंदी दिवस की आप सबको शुभ कामनाएं लिखो जज्बात हिंदी में करो हर बात हिंदी में हम भी बोले हिंदी में तुम भी बोलो हिंदी में जय हिंदी जय हिंदुस्तान मै भारत बने महान हम आप और हिंदी ( १४ सितम्बर )मदन मोहन सक्सेना कविता ,आलेख और मैं : हम आप और हिंदी ( १४ सितम्बर )

67

ग़ज़ल (मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी)

26 जुलाई 2016
0
3
0

 ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल (मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी)

68

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : आखिर कब तक

20 सितम्बर 2016
0
0
0

आखिर कब तक फिर एक बार देश ने आंतकी हमला झेलाफिर एक बार कई सैनिक शहीद हो गए फिर एक बार परिबारों ने अपनोँ को खोने का दंश झेला फिर एक बार गृह , रक्षा मंत्री ने घटना स्थल का दौरा कियाफिर एक बार मंत्रियों ने प्रधान मंत्री को रिपोर्ट दीफिर एक बार हाई लेवल मीटिंग की गयी फिर एक

69

मुक्तक (जान)

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : मुक्तक (जान)

70

कविता ,आलेख और मैं : सब एक जैसे

6 अक्टूबर 2016
0
0
0

सब एक जैसेआमिर शाहरुख़ सलमान सब एक जैसे सिर्फ चिंता अपनी फिल्मों की

71

ग़ज़ल गंगा: मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ६ ,मार्च २०१६ में

27 जुलाई 2016
0
0
0

 ग़ज़ल गंगा: मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ६ ,मार्च २०१६ में

72

मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : पति पत्नी और करबाचौथ

18 अक्टूबर 2016
0
0
0

कल यानि १९ अक्टूबर के दिन करवाचौथ पर भारतबर्ष में सुहागिनें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए चाँद दिखने तक निर्जला उपबास रखती है . पति पत्नी का रिश्ता समस्त उतार चदाबों के साथ इस धरती पर सबसे जरुरी और पवित्र रिश्ता है .आज के इस दौर में जब सब लोग एक दुसरे की जान लेने पर तु

73

ग़ज़ल ( प्यारे पापा डैड हो गए )

7 जून 2016
0
3
2

ग़ज़ल ( प्यारे पापा डैड हो गए )माता मम्मी अम्मा कहकर बच्चे प्यार जताते थेमम्मी अब तो ममी हो गयीं प्यारे पापा डैड हो गएपिज्जा बर्गर कोक भा गया नए ज़माने के लोगों कोदही जलेबी हलुआ पूड़ी सब के सब क्यों  बैड हो गएगौशाला में गाय नहीं है ,दिखती अब चौराहों मेंघर घर कुत्ते राज कर रहें  मालिक उनके मैड हो गएकैसे

74

ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल(चार पल की जिंदगी में चंद साँसों का सफर)

21 अक्टूबर 2016
0
1
0

क्या गुल खिलाया आजकल वक़्त की रफ़्तार नेदर्द हमसे हमसफ़र बनकर के मिला करते हैंइश्क का तो दर्द से रिश्ता ही कुछ ऐसा रहा फूल भी खारों के बीच अक्सर खिला करतें हैं डर किसे कहतें हैं हमको उस समय मालूम चला जब कभी भूले से हम खुद से मिला करतें हैंअंदाज बदला दोस्ती का इस तरह से आज

75

मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ८ ,मई २०१६ में प्रकाशित

27 जुलाई 2016
0
0
0

 मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ८ ,मई २०१६ में प्रकाशित

76

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार

27 अक्टूबर 2016
0
0
0

मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहारजीवन में आती रहे पल पल नयी बहारईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकारलक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..मुझको जो भी मिलना हो ,बह तुमको ही मिले दौलततमन्ना मेरे दिल की है, सदा मिलती रहे शोहरतसदा मिलती रहे शोहरत ,रोशन नाम तेरा होग़मों का न तो स

77

सपनो में सूरत

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : सपनो में सूरत

78

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : चलो हम अपने अहम् को जलाकर रौशनी कर लें

28 अक्टूबर 2016
0
1
0

बह हमसे बोले हँसकर कि आज है दीवालीउदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा नहीं तालीमैं कैसें उनसे बोलूँ कि जेब मेरी ख़ालीजब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ तालीबह बोले मुस्कराके धन से क्यों न खेलते तुमदेखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते तुमइन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते ह

79

ग़ज़ल (चार पल) - Sahityapedia

28 जुलाई 2016
0
0
0

 ग़ज़ल (चार पल) - Sahityapedia

80

गज़ल/गीतिका (समय ये आ गया कैसा) - Sahityapedia

28 अक्टूबर 2016
0
0
0

गज़ल/गीतिका (समय ये आ गया कैसा)दीवारें ही दीवारें , नहीं दीखते अब घर यारोंबड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले हैंउलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल हैसमय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैंजिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता हैदुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैंज

81

खुशबुओं की बस्ती

16 जून 2016
0
2
2

खुशबुओं  की   बस्ती खुशबुओं  की   बस्ती में  रहता  प्यार  मेरा  है आज प्यारे प्यारे सपनो ने आकर के मुझको घेरा है उनकी सूरत का आँखों में हर पल हुआ यूँ बसेरा हैअब काली काली रातो में मुझको दीखता नहीं अँधेरा है  जब जब देखा हमने दिल को ,ये लगता नहीं मेरा है प्यार पाया जब से उनका हमने ,लगता हर पल ही सुनहर

82

मैं उजाला और दीपावली - Sahityapedia

28 अक्टूबर 2016
0
0
0

बह हमसे बोले हँसकर कि आज है दीवालीउदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा नहीं तालीमैं कैसें उनसे बोलूँ कि जेब मेरी ख़ालीजब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ तालीबह बोले मुस्कराके धन से क्यों न खेलते तुमदेखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते तुमइन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते ह

83

अपनी ढपली, राग भी अपना - Sahityapedia

28 जुलाई 2016
0
0
0

 अपनी ढपली, राग भी अपना - Sahityapedia

84

ग़ज़ल गंगा: दिवाली और मेरे शेर

28 अक्टूबर 2016
0
1
0

दिवाली और मेरे शेर दिवाली का पर्व है फिर अँधेरे में हम क्यों रहें चलो हम अपने अहम् को जलाकर रौशनी कर लें *************************************दिवाली का पर्व है अँधेरा अब नहीं भाता मुझे आज फिर मैंने तेरी याद के दीपक जला लिए दीपाबली शुभ हो मदन मोहन सक्सेना ग़ज़ल गंगा:

85

बिनती

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : बिनती

86

मैं , शेर और साहित्यपीडिया

2 नवम्बर 2016
0
0
0

महकता है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत हीमुहब्बत को निभाने में फिर क्यों सारे झमेले हैं http://wp.me/p7uU2K-1L5 गज़ब हैं रंग जीबन के गजब किस्से लगा करते जबानी जब कदम चूमे बचपन छूट जाता है http://wp.me/p7uU2K-1Bt हर पल याद रहती है निगाहों में बसी सूरत तमन्ना अपनी रहती है खुद क

87

मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट , ग़ज़ल (मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी)जागरण जंक्शन में प्रकाशित

29 जुलाई 2016
0
0
0

 मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट , ग़ज़ल (मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी)जागरण जंक्शन में प्रकाशित

88

कविता ,आलेख और मैं : जिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता

3 नवम्बर 2016
0
0
0

दीवारें ही दीवारें , नहीं दीखते अब घर यारोंबड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले हैंउलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल हैसमय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैंजिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता हैदुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैंजीवन के सफ़र में जो पाया है सहेज

89

सफर (घर से मरघट तक )

3 जून 2016
0
6
1

आँख से अब नहीं दिख रहा है जहाँ ,आज क्या हो रहा है मेरे संग यहाँ .माँ का रोना नहीं अब मैं सुन पा रहा ,कान मेरे ये दोनों क्यों बहरें हुए.उम्र भर जिसको अपना मैं कहता रहा ,दूर जानो को बह मुझसे बहता रहा.आग होती है क्या आज मालूम चला,जल रहा हूँ मैं चुपचाप ठहरे हुए.शाम ज्यों धीरे धीरे सी ढलने लगी, छोंड तनहा

90

जय हिंदी जय हिंदुस्तान मेरा भारत बने महान - Sahityapedia

4 नवम्बर 2016
0
0
3

जय हिंदी जय हिंदुस्तान मेरा भारत बने महानगंगा यमुना सी नदियाँ हैं जो देश का मन बढ़ाती हैंसीता सावित्री सी देवी जो आज भी पूजी जाती हैंयहाँ जाति धर्म का भेद नहीं सब मिलजुल करके रहतें हैंगाँधी सुभाष टैगोर तिलक नेहरु का भारत कहतें हैंयहाँ नाम का कोई जिक्र नहीं बस काम ही देखा

91

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है - Open Books Online

4 अगस्त 2016
0
0
0

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ हैअँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने परबिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किलख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी हैसमय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किलकहने को तो कह लेते है अपन

92

मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : मैं ,शेर और साहित्यपीडिया भाग दो

4 नवम्बर 2016
0
1
0

हमेशा साथ चलने की दिलासा हमको दी जिसनेबीते कल को हमसे बो अब चुराने की बात करते हैंhttp://wp.me/p7uU2K-U6गीत ग़ज़ल जिसने भी मेरे देखे या सुनेतब से शायर बह हमको बताने लगेहाल देखा मेरा तो दुनिया बाले ये बोलेमदन हमको तो दुनिया से बेगाने लगेhttp://wp.me/p7uU2K-NOमेरे जो भी सपने

93

गज़ल (समय ये आ गया कैसा )

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : गज़ल (समय ये आ गया कैसा )

94

ग़ज़ल गंगा: मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक १ ,अक्टूबर २०१६ में प्रकाशित

8 नवम्बर 2016
0
0
0

ग़ज़ल गंगा: मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक १ ,अक्टूबर २०१६ में प्रकाशित

95

ग़ज़ल ( मम्मी तुमको क्या मालूम )

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल ( मम्मी तुमको क्या मालूम )

96

मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ११ ,अगस्त २०१६ में प्रकाशित

5 अगस्त 2016
0
0
0

मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ११ ,अगस्त २०१६ में प्रकाशितग़ज़ल  (बचपन यार अच्छा था)जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भीबचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता थाबारीकी जमाने की, समझने में उम्र गुज़रीभोले भाले चेहरे में सयानापन समाता थामिलते हाथ हैं लेकिन दिल मिलते नहीं यारों

97

ग़ज़ल ( मम्मी तुमको क्या मालूम )

8 जून 2016
0
4
0

ग़ज़ल ( मम्मी तुमको क्या मालूम )सुबह सुबह अफ़रा तफ़री में फ़ास्ट फ़ूड दे देती माँ तुमटीचर क्या क्या देती ताने , मम्मी तुमको क्या मालूमक्या क्या रूप बना कर आती ,मम्मी तुम जब लेने आतीलोग कैसे किस्से लगे सुनाने , मम्मी तुमको क्या मालूमरोज पापा जाते पैसा पाने , मम्मी तुम घर लगी सजानेपूरी कोशिश से पढ़ते हम , मम

98

मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट (जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित)

5 अगस्त 2016
0
1
0

मेरी पोस्ट (जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित)प्रस्तुत ब्लॉग में मैनें उन ग़ज़लों और रचनाओं को एक जगह संकलित करने का प्रयास किया है , जिन्हें किसी पत्रिका ,मैग्जीन ,अखबार,संस्करण या किसी वेव साइट में शामिल किया गया है। आशा ही नहीं बल्कि पूरा बिश्वास

99

ग़ज़ल (हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है )

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है )

100

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है - Open Books Online

5 अगस्त 2016
0
0
0

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ हैअँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने परबिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किलख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी हैसमय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किलकहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हमजुबां से दिल की बात

101

समय ये आ गया कैसा

23 जून 2016
0
2
0

समय ये आ गया कैसा दीवारें ही दीवारें , नहीं दीखते अब घर यारोंबड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले हैंउलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल हैसमय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैंजिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता हैदुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैंजीवन के सफ़र में जो पाया है सहेजा हैखोया ह

102

ग़ज़ल गंगा: ( ग़ज़ल ) हर पल याद रहती है निगाहों में बसी सूरत

8 अगस्त 2016
0
3
0

( ग़ज़ल ) हर पल याद रहती है निगाहों में बसी सूरतसजा  क्या खूब मिलती है किसी   से   दिल  लगाने  की तन्हाई  की  महफ़िल  में  आदत  हो  गयी   गाने  की  हर  पल  याद  रहती  है  निगाहों  में  बसी  सूरत  तमन्ना  अपनी  रहती  है  खुद  को  भूल  जाने  की  उम्मीदों   का  काजल   

103

ग़ज़ल (कंक्रीट के जंगल)

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (कंक्रीट के जंगल)

104

कविता ,आलेख और मैं : बहन भाई और रक्षा बंधन

9 अगस्त 2016
0
2
0

बहन भाई और रक्षा बंधनराखी का त्यौहार आ ही गया ,इस  त्यौहार को मनाने  के लिए या कहिये की मुनाफा कमाने के लिए समाज के सभी बर्गों ने कमर कस ली है। हिन्दुस्थान में राखी की परम्परा काफी पुरानी है . बदले दौर में जब सभी मूल्यों का हास हो रहा हो तो भला राखी का त्यौहार इससे अछ

105

ग़ज़ल ( जिंदगी जिंदगी)

3 जून 2016
0
1
0

ग़ज़ल ( जिंदगी जिंदगी)तुझे पा लिया है जग पा लिया है अब दिल में समाने लगी जिंदगी है कभी गर्दिशों की कहानी लगी थी मगर आज भाने लगी जिंदगी है समय कैसे जाता समझ मैं ना पाता अब समय को चुराने लगी जिंदगी है कभी ख्बाब में तू हमारे थी आती अब सपने सजाने लगी जिंदगी है तेरे प्यार का ये असर हो गया है अब मिलने मिलान

106

कविता ,आलेख और मैं : ग़ज़ल(ना जाने कितनी यादों के तोहफे हमको दे डाले)

12 अगस्त 2016
0
0
0

  वक़्त  की साजिश समझ कर, सब्र करना सीखियेंदर्द से ग़मगीन वक़्त यूँ  ही गुजर जाता है जीने का नजरिया तो  मालूम है उसी को बस अपना गम भुलाकर जो हमेशा मुस्कराता है अरमानों  के सागर में  छिपे चाहत के मोती को बेगानों की दुनिया में कोई अकेला जान पाता है शरीफों की शरारत का नजारा ह

107

ग़ज़ल (अजब गजब सँसार )

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (अजब गजब सँसार )

108

Hindi Sahitya | Hindi Poems | Hindi Kavita | hindi poems for kids

12 अगस्त 2016
0
1
0

राखी का त्यौहार आ ही गया ,इस त्यौहार को मनाने के लिए या कहिये की मुनाफा कमाने के लिए समाज के सभी बर्गों ने कमर कस ली है। हिन्दुस्थान में राखी की परम्परा काफी पुरानी है . बदले दौर में जब सभी मूल्यों का हास हो रहा हो तो भला राखी का त्यौहार इससे अछुता कैसे रह सकता है। मुझे

109

ग़ज़ल (जिंदगी का ये सफ़र )

27 जून 2016
0
0
0

कल तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआइक शक्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान हैबीती उम्र कुछ इस तरह की खुद से हम न मिल सकेजिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अनजान हैगर कहोगें दिन को दिन तो लोग जानेगें गुनाहअब आज के इस दौर में दीखते नहीं इन्सान हैइक दर्द का एहसास हमको हर समय मिलता रहाये वक़्त की साजिश है या

110

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : तुम्हारी याद आती है

12 अगस्त 2016
0
0
0

 तुम्हारी याद आती हैजुदा हो करके के तुमसे अब ,तुम्हारी याद आती हैमेरे दिलबर तेरी सूरत ही मुझको रास आती हैकहूं कैसे मैं ये तुमसे बहुत मुश्किल गुजारा हैभरी दुनियां में बिन तेरे नहीं कोई सहारा हैमुक्कद्दर आज रूठा है और किस्मत आजमाती हैनहीं अब चैन दिल को है न मुझको नींद आती ह

111

ग़ज़ल (दुआ)

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (दुआ)

112

ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल (तुम्हारी याद)

16 अगस्त 2016
0
0
0

ग़ज़ल (तुम्हारी याद)तुम्हारी याद जब आती तो मिल जाती ख़ुशी हमको जब तुमको पास पायेंगे तो मेरा हाल क्या होगा तुमसे दूर रह करके तुम्हारी याद आती है मेरे पास तुम होगे तो यादों का फिर क्या होगा तुम्हारी मोहनी सूरत तो हर पल आँख में रहतीदिल में जो बसी सूरत उस सूरत का  फिर क्या होगा

113

मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ९ ,जून २०१६ में प्रकाशित

8 जून 2016
0
3
0

प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ९  ,जून  २०१६ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ सुबह हुयी और बोर हो गएजीवन में अब सार नहीं हैरिश्तें अपना मूल्य खो रहेअपनों में वो प्यार नहीं हैजो दादा के दादा ने देखाअब बैसा संसार नहीं

114

ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल (तुम्हार साथ जब होगा नजारा ही नया होगा )

17 अगस्त 2016
0
0
0

तुम्हारी याद जब आती तो मिल जाती ख़ुशी हमको जब तुमको पास पायेंगे तो मेरा हाल क्या होगा तुमसे दूर रह करके तुम्हारी याद आती है मेरे पास तुम होगे तो यादों का फिर क्या होगा तुम्हारी मोहनी सूरत तो हर पल आँख में रहतीदिल में जो बसी सूरत उस सूरत का  फिर क्या होगा अपनी हर ख़ुशी हमक

115

ग़ज़ल (सबकी ऐसे गुजर गयी)

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (सबकी ऐसे गुजर गयी)

116

राखी रक्षा बंधन और रिश्तें | जय विजय

18 अगस्त 2016
0
0
0

राखी का त्यौहार आ ही गया ,इस त्यौहार को मनाने के लिए या कहिये की मुनाफा कमाने के लिए समाज के सभी बर्गों ने कमर कस ली है। हिन्दुस्थान में राखी की परम्परा काफी पुरानी है . बदले दौर में जब सभी मूल्यों का हास हो रहा हो तो भला राखी का त्यौहार इससे अछुता कैसे रह सकता है। मुझे

117

बिलकुल तुम पर

21 जुलाई 2016
0
1
0

 कविता ,आलेख और मैं : (बिलकुल तुम पर)

118

कविता ,आलेख और मैं : मेरी पोस्ट , आ गया राखी का पर्ब जागरण जंक्शन में प्रकाशित

18 अगस्त 2016
0
1
0

http://madansbarc.jagranjunction.com/2016/08/09/%E0%A4%86-%E0%A4%97%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AC/ राखी का त्यौहार आ ही गया ,इस त्यौहार को मनाने के लिए या कहिये की मुनाफा कमाने के लिए समाज

119

प्रेम के रिश्ते हों सबसे ,प्यार का संसार हो

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : प्रेम के रिश्ते हों सबसे ,प्यार का संसार हो

120

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : ये दुनिया

19 अगस्त 2016
0
0
0

ये दुनियाये पैसों की दुनिया ये काँटों की दुनियायारों ये दुनिया जालिम बहुत हैअरमानो की माला मैनें जब भी पिरोईहमको ये दुनिया तो माला पिरोने नहीं देती..ये गैरों की दुनियां ये काँटों की दुनियादौलत के भूखों और प्यासों की दुनियासपनो के महल मैंने जब भी संजोये हमको ये दुनिया तो स

121

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : प्यार ही प्यार

19 अगस्त 2016
0
0
0

रा ये संसार हैप्यार पाने को दुनिया में तरसे सभी, प्यार पाकर के हर्षित हुए हैं सभीप्यार से मिट गए सारे शिकबे गले ,प्यारी बातों पर हमको ऐतबार है प्यार के गीत जब गुनगुनाओगे तुम ,उस पल खार से प्यार पाओगे तुम प्यार दौलत से मिलता नहीं है कभी ,प्यार पर हर किसी का अधिकार है प्यार

122

जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा | मैं, लेखनी और जिंदगी

25 जुलाई 2016
0
1
0

जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा शहर में ठिकाना खोजा पता नहीं जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा | मैं, लेखनी और जिंदगी

123

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : रहमत

19 अगस्त 2016
0
0
0

रहमत रहमत जब खुदा की हो तो बंजर भी चमन होता खुशिया रहती दामन में और जीवन में अमन होतामर्जी बिन खुदा यारो तो जर्रा हिल नहीं सकताखुदा जो रूठ जाये तो मय्यसर न कफ़न होतामन्नत पूरी करना है खुदा की बंदगी कर लोजियो और जीने दो खुशहाल जिंदगी कर लोमर्जी जब खुदा की हो तो पूरे अपने

124

ग़ज़ल (आये भी अकेले थे और जाना भी अकेला है)

21 जुलाई 2016
0
0
0

Hindi Sahitya Kavya Sanklan provides free publishing opportunity to poets to write their poems in hindi, OR hindi kavita and hindi poems for kids Hindi Sahitya | Hindi Poems | Hindi Kavita | hindi poems for kids

125

कविता ,आलेख और मैं : प्यार तो है सबसे परे ,ना उसका कोई चेहरा है

19 अगस्त 2016
0
0
0

खुशबुओं की बस्ती में रहता प्यार मेरा है आज प्यारे प्यारे सपनो ने आकर के मुझको घेरा है उनकी सूरत का आँखों में हर पल हुआ यूँ बसेरा हैअब काली काली रातो में मुझको दीखता नहीं अँधेरा है जब जब देखा हमने दिल को ,ये लगता नहीं मेरा है प्यार पाया जब से उनका हमने ,लगता हर पल

126

ग़ज़ल (इश्क क्या है

25 जुलाई 2016
0
0
0

Hindi Sahitya Kavya Sanklan provides free publishing opportunity to poets to write their poems in hindi, OR hindi kavita and hindi poems for kids Hindi Sahitya | Hindi Poems | Hindi Kavita | hindi poems for kids

127

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : मुक्तक ( यदि पत्थर को समझाते)

23 अगस्त 2016
0
1
0

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : मुक्तक ( यदि पत्थर को समझाते)

128

हर जगह इक शख्श का मुझे चेहरा नजर आता है

12 जून 2016
0
3
2

हम आज तक खामोश हैं  और वो भी कुछ कहते नहींदर्द के नग्मों  में हक़ बस मेरा नजर आता है देकर दुआएँ  आज फिर हम पर सितम वो  कर गएअब क़यामत में उम्मीदों का सवेरा नजर आता हैक्यों रोशनी के खेल में अपना आस का पँछी  जलाहमें अँधेरे में हिफाज़त का बसेरा नजर आता हैइस कदर अनजान हैं  हम आज अपने

129

अब तो आ कान्हा जाओ, इस धरती पर सब त्रस्त हुए ( कृष्ण जन्माष्टमी बिशेष ) - Sahityapedia

24 अगस्त 2016
0
0
0

अब तो आ कान्हा जाओ, इस धरती पर सब त्रस्त हुए ( कृष्ण जन्माष्टमी बिशेष )अब तो आ कान्हा जाओ, इस धरती पर सब त्रस्त हुएदुःख सहने को भक्त तुम्हारे आज सभी अभिशप्त हुएनन्द दुलारे कृष्ण कन्हैया ,अब भक्त पुकारे आ जाओप्रभु दुष्टों का संहार करो और प्यार सिखाने आ जाओ एक रोज हम यूँ

130

ग़ज़ल ( दिल में दर्द जगाता क्यों हैं )

25 जुलाई 2016
0
0
0

 ग़ज़ल ( दिल में दर्द जगाता क्यों हैं ) - Sahityapedia

131

श्री कृष्णजन्माष्टमी का पर्ब आप सबको मंगलमय हो | मैं, लेखनी और जिंदगी

25 अगस्त 2016
0
0
0

Posted On 25 Aug, 2016 कविता में उत्थान पतन मेरे भगवन है आज तुम्हारे हाथों मेंप्रभु जीत तुम्हारें हाथों में प्रभु हार तुम्हारें हाथों में मुझमें तुममें है फर्क यही मैं नर हूँ तुम नारायण होमैं खेलूँ जग के हाथों में संसार तुम्हारें हाथों मेंतुम दीनबंध

132

ग़ज़ल ( सब कुछ तो ब्यापार हुआ )

21 जुलाई 2016
0
0
0

 ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल ( सब कुछ तो ब्यापार हुआ )

133

कविता ,आलेख और मैं : मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक १२ ,सितम्बर २०१६ में प्रकाशित

6 सितम्बर 2016
0
0
0

प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक १२ ,सितम्बर २०१६ में प्रकाशितहुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .अपनी जिंदगी गुजारी है ख्बाबों के ही सायें में ख्बाबों में तो अरमानों के जाने कितने मेले हैं भुला पायें

134

मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : सांसों के जनाजें को तो सव ने जिंदगी जाना

25 जुलाई 2016
0
0
0

 मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : सांसों के जनाजें को तो सव ने जिंदगी जाना

135

मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल(अब सुबह से शाम तक नाम तेरा है लबों पर)

9 सितम्बर 2016
0
0
0

जानकर अपना तुम्हें हम हो गए अनजान खुद सेदर्द है क्यों अब तलक अपना हमें माना नहीं हैअब सुबह से शाम तक नाम तेरा है लबों परसाथ हो अपना तुम्हारा और कुछ पाना नहीं हैगर कहोगी रात को दिन दिन लिखा बोला करेंगेग़ज़ल जो तुमको न भाए वो हमें गाना नहीं हैगर खुदा भी रूठ जाय

136

ग़ज़ल (माँ का एक सा चेहरा)

6 जून 2016
0
6
2

ग़ज़ल (माँ का एक सा चेहरा)बदलते बक्त में मुझको दिखे बदले हुए चेहरेमाँ का एक सा चेहरा , मेरे मन में पसर जातानहीं देखा खुदा को है ना ईश्वर से मिला मैं हुँमुझे माँ के ही चेहरे मेँ खुदा यारों नजर आतामुश्किल से निकल आता, करता याद जब माँ कोमाँ कितनी दूर हो फ़िर भी दुआओं में असर आताउम्र गुजरी ,जहाँ देखा, लिया

137

मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : देखते है कि आपका मुँह खुलेगा भी या नहीं

12 सितम्बर 2016
0
1
0

होली के अबसर पर पानी की बर्बादी की बात करने बाले शिवरात्रि पर शिव पर दूध अर्पित करने को कुपोषण से जोड़ने बाले और दूध की कमी का रोने बाले प्रकाश उत्सब पर पर्याबरण की चिंता करने बाले तथाकथित बुद्धिजीबी लोग कल बकरीद आने बाली है हम भी आपके मुख से जीब हत्या और सही क़ुरबानी

138

ग़ज़ल (मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी)

26 जुलाई 2016
0
0
0

Hindi Sahitya Kavya Sanklan provides free publishing opportunity to poets to write their poems in hindi, OR hindi kavita and hindi poems for kids Hindi Sahitya | Hindi Poems | Hindi Kavita | hindi poems for kids

139

मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल ( सच्ची बात किसको आज सुनना अच्छी लगती है)

15 सितम्बर 2016
0
0
0

1- ब्लॉग पर प्रकाशित रचनाएँ बिना अनुमति के उद्धृत न करें।किसी भी सामग्री को उद्धृत करने के लिए ब्लॉग लेखक की अनुमति अनिवार्य है। अनुमति प्राप्त करने के लिए इसमेल पर सम्पर्क करें-madansaxena1969@gmail.com2- ब्लॉग की किसी भी सामग्री को चुराकर अपने नाम से प्रकाशित

140

तुम्हारी याद आती है

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : तुम्हारी याद आती है

141

कविता ,आलेख और मैं : फिर एक बार

19 सितम्बर 2016
0
2
0

फिर एक बार फिर एक बार देश ने आंतकी हमला झेला फिर एक बार कई सैनिक शहीद हो गए फिर एक बार परिबारों ने अपनोँ को खोने का दंश झेला फिर एक बार गृह , रक्षा मंत्री ने घटना स्थल का दौरा किया फिर एक बार हाई लेवल मीटिंग की गयी फिर एक बार सभी दलों ने घटना की निंदा की फिर एक बार मीडिय

142

मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल ( सपने सजाने लगा आजकल हूँ)

26 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल ( सपने सजाने लगा आजकल हूँ)

143

ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल ( मुहब्बत है इश्क़ है प्यार है या फिर कुछ और )

23 सितम्बर 2016
0
0
1

लोग कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती हैहम नजरें भी मिलाते हैं तो चर्चा हो जाती है.दिल पर क्या गुज़रती है जब वह दूर होते हैं पाते पास उनको हैं तो रौनक आ जाती है .आकर के ख्यालों में क्यों नीदें वे चुराते हैंरहते दूर जब हमसे तो हर पल याद आती है.हमको प्यार है उनसे कर

144

गज़ल ( सेक्युलर कम्युनल )

13 जून 2016
0
2
0

गज़ल ( सेक्युलर कम्युनल )जब से बेटे जबान हो गएमुश्किल में क्यों प्राण हो गएकिस्से सुन सुन के संतों केभगवन भी हैरान हो गएआ धमके कुछ ख़ास बिदेशीघर बाले मेहमान हो गएसेक्युलर कम्युनल के चक्कर मेंगाँव गली शमसान हो गएकैसा दौर चला है अब येसदन कुश्ती के मैदान हो गएबिन माँगें सब राय दे दिएकितनों के अहसान हो गए

145

ग़ज़ल गंगा: मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक १ ,अक्टूबर २०१६ में प्रकाशित

6 अक्टूबर 2016
0
1
1

ग़ज़ल गंगा: मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक १ ,अक्टूबर २०१६ में प्रकाशित

146

ग़ज़ल गंगा: मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक १० ,जुलाई २०१६ में प्रकाशित

27 जुलाई 2016
0
0
0

 ग़ज़ल गंगा: मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक १० ,जुलाई २०१६ में प्रकाशित

147

कविता ,आलेख और मैं : मेरे दो शेर

7 अक्टूबर 2016
0
0
0

मेरे दो शेर एक कौन किसी का खाता है अपनी किस्मत का सब खातेमिलने पर सब होते खुश हैं ना मिलने पर गाल बजाते************************************************** दो कौन साथ ले जा पाया है रुपया पैसा महल अटारीधरा ,धरा पर ही रह जाता इस दुनिया से जब हम जातेमदन मोहन सक्सेना कविता ,आल

148

जय हिंदी जय हिंदुस्तान

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : जय हिंदी जय हिंदुस्तान

149

ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल ( कौन साथ ले जा पाया है रुपया पैसा महल अटारी)

10 अक्टूबर 2016
0
0
0

कौन किसी का खाता है अपनी किस्मत का सब खातेमिलने पर सब होते खुश हैं ना मिलने पर गाल बजातेकौन साथ ले जा पाया है रुपया पैसा महल अटारीधरा ,धरा पर ही रह जाता इस दुनिया से जब हम जातेइन्सां की अब बातें छोड़ों ,हमसे अच्छे भले परिंदेमंदिर मस्जिद गुरूदारे में दाना देखा चुगने जातेअग

150

ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल(देकर दुआएँ आज फिर हम पर सितम वो कर गए

27 जुलाई 2016
0
1
0

 ग़ज़ल गंगा: ग़ज़ल(देकर दुआएँ आज फिर हम पर सितम वो कर गए

151

कविता ,आलेख और मैं : परम्पराओं का पालन या अँध बिश्बास का खेल (करबा चौथ )

18 अक्टूबर 2016
0
0
2

परम्पराओं का पालन या अँध बिश्बास का खेल (करबा चौथ )करवाचौथ के दिनभारतबर्ष में सुहागिनेंअपने पति की लम्बी उम्र के लिएचाँद दिखने तक निर्जला उपबास रखती है .पति पत्नी का रिश्ता समस्तइस धरती पर सबसे जरुरी और पवित्र रिश्ता हैआज के इस दौर में जब सब लोगएक दुसरे की जान लेने पर तु

152

ग़ज़ल ( दिल में दर्द जगाता क्यों हैं )

3 जून 2016
0
1
2

ग़ज़ल ( दिल में दर्द जगाता क्यों हैं )गर दबा नहीं है दर्द की तुझ पेदिल में दर्द जगाता क्यों हैं जो बीच सफर में साथ छोड़ देउन अपनों से मिलबाता क्यों हैं क्यों भूखा नंगा ब्याकुल बचपनपत्थर भर पेट खाता क्यों हैं अपने ,सपने कब सच होतेतन्हाई में डर जाता क्यों हैं चुप रह कर सब जुल्म सह रहेअपनी बारी पर चिल्लात

153

कविता ,आलेख और मैं : ऐ दिल है मुश्किल'

21 अक्टूबर 2016
0
2
0

करण जोहर पाकिस्तानी कलाकार फबाद खान उरी और पठानकोट हमला निर्दोष जबान शहीद सर्जिकल स्ट्राइक देश प्रथम कला और कलाकार अ-राजनैतिक घोषित महेश भट्ट , सलमान खान ,सईद मिर्जा अनुपम खेर , अशोक पंडित , राज ठाकरे मुम्बई पुलिस, गृह मंत्रालय कानून ब्यबस्था , मल्टीप्लेक्स सि

154

मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ९ ,जून २०१६ में

27 जुलाई 2016
0
0
0

 मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ९ ,जून २०१६ में

155

मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल (रिश्तों के कोलाहल में ये जीवन ऐसे चलता है )

26 अक्टूबर 2016
0
1
0

किस की कुर्वानी को किसने याद रखा है दुनियाँ में जलता तेल औ बाती है कहतें दीपक जलता है पथ में काँटें लाख बिछे हो मंजिल मिल जाती है उसको बिन भटके जो इधर उधर ,राह पर अपनी चलता हैमिली दौलत मिली शोहरत मिला है यार कुछ क्यों जैसा मौका बैसी बातें ,जो पल पल बात बदलता है छोड़ गया

156

मेरी कुछ क्षणिकाएँ

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : मेरी कुछ क्षणिकाएँ

157

ग़ज़ल गंगा: आज फिर मैंने तेरी याद के दीपक जला लिए

27 अक्टूबर 2016
0
0
0

आज फिर मैंने तेरी याद के दीपक जला लिएदीवाली का पर्व है फिर अँधेरे में क्यों रहूँ आज फिर मैंने तेरी याद के दीपक जला लिए। दीपोत्सब की अग्रिम शुभकामनायें

158

मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट , अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस ( उपयोगिता , सन्दर्भ और प्रासंगिकता , एक बिबेचना ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित

27 जुलाई 2016
0
0
0

 मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट , अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस ( उपयोगिता , सन्दर्भ और प्रासंगिकता , एक बिबेचना ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित

159

मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार - Sahityapedia

27 अक्टूबर 2016
0
1
0

मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहारजीवन में आती रहे पल पल नयी बहारईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकारलक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..मुझको जो भी मिलना हो ,बह तुमको ही मिले दौलततमन्ना मेरे दिल की है, सदा मिलती रहे शोहरतसदा मिलती रहे शोहरत ,रोशन नाम तेरा होग़मों का न तो स

160

प्यार का बंधन

15 जून 2016
0
3
2

प्यार का बंधनअर्पण आज तुमको हैं जीवन भर की सब खुशियाँपल भर भी न तुम हमसे जीवन में जुदा होनारहना तुम सदा मेरे दिल में दिल में ही खुदा बनकरना हमसे दूर जाना तुम और ना हमसे खफा होना अपनी तो तमन्ना है सदा हर पल ही मुस्काओसदा तुम पास हो मेरे ,ना हमसे दूर हो पाओतुम्हारे साथ जीना है तुम्हारें साथ मरना हैतुम

161

मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : मैं उजाला और दीपावली

28 अक्टूबर 2016
0
0
0

बह हमसे बोले हँसकर कि आज है दीवालीउदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा नहीं तालीमैं कैसें उनसे बोलूँ कि जेब मेरी ख़ालीजब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ तालीबह बोले मुस्कराके धन से क्यों न खेलते तुमदेखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते तुमइन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते ह

162

आज हम फिर बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की - Sahityapedia

28 जुलाई 2016
0
0
0

 आज हम फिर बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की - Sahityapedia

163

दिवाली और मेरे शेर by Madan Saxena | Diwali Poem | Diwali Poems in Hindi and English | Deepawali Kavita

28 अक्टूबर 2016
0
0
0

0 दिवाली और मेरे शेरदिवाली का पर्व है फिर अँधेरे में हम क्यों रहेंचलो हम अपने अहम् को जलाकर रौशनी कर लें*************************************दिवाली का पर्व है अँधेरा अब नहीं भाता मुझेआज फिर मैंने तेरी याद के दीपक जला लिएदीपाबली शुभ हो दिवाली और मेरे शेर by Madan S

164

मुक्तक (आदत)

22 जुलाई 2016
0
1
0

 मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : मुक्तक (आदत)

165

ग़ज़ल(मुहब्बत) - Sahityapedia

28 अक्टूबर 2016
0
0
0

ग़ज़ल(मुहब्बत) नजर फ़ेर ली है खफ़ा हो गया हूँबिछुड़ कर किसी से जुदा हो गया हूँमैं किससे करूँ बेबफाई का शिकबाकि खुद रूठकर बेबफ़ा हो गया हूँबहुत उसने चाहा बहुत उसने पूजामुहब्बत का मैं देवता हो गया हूँबसायी थी जिसने दिलों में मुहब्बतउसी के लिए क्यों बुरा हो गया हूँमेरा नाम अब क्

166

ग़ज़ल (मेरे मालिक मेरे मौला ) - Sahityapedia

28 जुलाई 2016
0
0
0

 ग़ज़ल (मेरे मालिक मेरे मौला ) - Sahityapedia

167

ग़ज़ल (इस शहर में ) - Sahityapedia

28 अक्टूबर 2016
0
0
0

ग़ज़ल (इस शहर में )इन्सानियत दम तोड़ती है हर गली हर चौराहें परईट गारे के सिबा इस शहर में रक्खा क्या है इक नक़ली मुस्कान ही साबित है हर चेहरे परदोस्ती प्रेम ज़ज्बात की शहर में कीमत ही क्या है मुकद्दर है सिकंदर तो सहारे बहुत हैं इस शहर मेंशहर में जो गिर चूका ,उसे बचाने में बच

168

सपने सजाने लगा आजकल हूँ

7 जून 2016
0
1
1

सपने सजाने लगा आजकल हूँ मिलने मिलाने लगा आज कल हूँ हुयी शख्शियत उनकी मुझ पर हाबी खुद को भुलाने लगा आजकल हूँ इधर तन्हा मैं था उधर तुम अकेले किस्मत ,समय ने क्या खेल खेले गीत ग़ज़लों की गंगा तुमसे ही पाई गीत ग़ज़लों को गाने लगा आजकल हूँ जिधर देखता हूँ उधर तू मिला है ये रंगीनियों का गज़ब सिलसिला है नाज क्य

169

तुम्हारी याद आती है - Sahityapedia

28 अक्टूबर 2016
0
0
0

तुम्हारी याद आती हैजुदा हो करके के तुमसे अब ,तुम्हारी याद आती हैमेरे दिलबर तेरी सूरत ही मुझको रास आती हैकहूं कैसे मैं ये तुमसे बहुत मुश्किल गुजारा हैभरी दुनियां में बिन तेरे नहीं कोई सहारा हैमुक्कद्दर आज रूठा है और किस्मत आजमाती हैनहीं अब चैन दिल को है न मुझको नींद आती है

170

ग़ज़ल(ये किसकी दुआ है ) - Sahityapedia

28 जुलाई 2016
0
0
0

 ग़ज़ल(ये किसकी दुआ है ) - Sahityapedia

171

मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार - Sahityapedia

28 अक्टूबर 2016
0
0
0

मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहारजीवन में आती रहे पल पल नयी बहारईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकारलक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..मुझको जो भी मिलना हो ,बह तुमको ही मिले दौलततमन्ना मेरे दिल की है, सदा मिलती रहे शोहरतसदा मिलती रहे शोहरत ,रोशन नाम तेरा होग़मों का न तो स

172

परायी दुनिया

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : परायी दुनिया

173

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : चलो हम अपने अहम् को जलाकर रौशनी कर लें

28 अक्टूबर 2016
0
0
0

बह हमसे बोले हँसकर कि आज है दीवालीउदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा नहीं तालीमैं कैसें उनसे बोलूँ कि जेब मेरी ख़ालीजब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ तालीबह बोले मुस्कराके धन से क्यों न खेलते तुमदेखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते तुमइन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते ह

174

देकर दुआएँ आज फिर हम पर सितम वो कर गए

28 जुलाई 2016
0
1
0

Hindi Sahitya Kavya Sanklan provides free publishing opportunity to poets to write their poems in hindi, OR hindi kavita and hindi poems for kids Hindi Sahitya | Hindi Poems | Hindi Kavita | hindi poems for kids

175

अब समाचार ब्यापार हो गए - Open Books Online

28 अक्टूबर 2016
0
0
0

अब समाचार ब्यापार हो गएकिसकी बातें सच्ची जानें अब समाचार ब्यापार हो गएपैसा जब से हाथ से फिसला दूर नाते रिश्ते दार हो गएडिजिटल डिजिटल सुना है जबसे अपने हाथ पैर बेकार हो गएरुपया पैसा बैंक तिजोरी आज जीने के आधार हो गएप्रेम ,अहिंसा ,सत्य , अपरिग्रह बापू क्यों लाचार हो गएसीधा

176

हुए दुनिया से बेगाने हम जिनके इक इशारे पर

16 जून 2016
0
1
0

सजाए मौत का तोहफा हमने पा लिया जिनसे ना जाने क्यों बो अब हमसे कफ़न उधार दिलाने की बात करते हैं हुए दुनिया से बेगाने हम जिनके इक इशारे पर ना जाने क्यों बो अब हमसे ज़माने की बात करते हैं दर्दे दिल मिला उनसे बो हमको प्यारा ही लगता जख्मो पर बो हमसे अब मरहम लगाने की बात करते हैं हमेशा साथ चलने की

177

मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : चलो हो गयी दीवाली

31 अक्टूबर 2016
0
0
0

दीवाली से पहले सोशल मीडिया पर चीनी सामान का बहिष्कार की बातें करने बाले काफी लोग दीवाली पर पहले से रखी लाइट्स का इस्तेमाल करते दिखे ऑनलाइन शॉपिंग पर चीनी सामान खरीदने का लुत्फ़ लेते मिले भले ही अपने नाते रश्तेदारों और पड़ोसियों से दिवाली पर बात न की हो इस बार भी फेसबुक ट्वि

178

मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट (सांसों के जनाजें को तो सब ने जिंदगी जाना ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित)

29 जुलाई 2016
0
0
0

 मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट (सांसों के जनाजें को तो सब ने जिंदगी जाना ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित)

179

चित्र संसार : दीपोत्सब के रंग परिबार के संग

2 नवम्बर 2016
0
1
0

चित्र संसार : दीपोत्सब के रंग परिबार के संग

180

चाहें दौलत हो ना हो कि पास अपने प्यार हो

22 जुलाई 2016
0
0
0

 चाहें दौलत हो ना हो कि पास अपने प्यार हो - Sahityapedia

181

गज़ल/गीतिका (समय ये आ गया कैसा) - Sahityapedia

3 नवम्बर 2016
0
0
0

गज़ल/गीतिका (समय ये आ गया कैसा)दीवारें ही दीवारें , नहीं दीखते अब घर यारोंबड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले हैंउलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल हैसमय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैंजिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता हैदुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैंज

182

मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट , ग़ज़ल (दोस्ती आती नहीं है रास अब बहुत ज्यादा पास की)जागरण जंक्शन में प्रकाशित

29 जुलाई 2016
0
2
1

 मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी पोस्ट , ग़ज़ल (दोस्ती आती नहीं है रास अब बहुत ज्यादा पास की)जागरण जंक्शन में प्रकाशित

183

ग़ज़ल गंगा: मेरे तीन शेर

3 नवम्बर 2016
0
1
0

एकखुदा का नाम लेने में तो मुझ से देर हो जातीखुदा के नाम से पहले हम उनका नाम लेते हैं*********************************************दो पाया है सदा उनको खुदा के रूप में दिल मेंउनकी बंदगी कर के खुदा को पूज लेते हैं********************************************** तीन न मँदिर

184

गज़ल (ये कैसा परिवार)

1 जून 2016
0
2
0

गज़ल  (ये कैसा परिवार)मेरे जिस टुकड़े को  दो पल की दूरी बहुत सताती थीजीवन के चौथेपन में अब ,वह  सात समन्दर पार हुआ   रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करेंसब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या व्यवहार हुआ   दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों सेधर्म देखिये कर्म देखिये सब कुछ तो ब्याप

185

खुशबुओं की बस्ती - Sahityapedia

4 नवम्बर 2016
0
0
0

खुशबुओं की बस्ती खुशबुओं की बस्ती में रहता प्यार मेरा हैआज प्यारे प्यारे सपनो ने आकर के मुझको घेरा हैउनकी सूरत का आँखों में हर पल हुआ यूँ बसेरा हैअब काली काली रातो में मुझको दीखता नहीं अँधेरा है जब जब देखा हमने दिल को ,ये लगता नहीं मेरा हैप्यार पाया जब से उनका

186

ग़ज़ल गंगा: मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ११ ,अगस्त २०१६ में प्रकाशित

4 अगस्त 2016
0
0
0

मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ११ ,अगस्त २०१६ में प्रकाशितग़ज़ल  (बचपन यार अच्छा था)जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भीबचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता थाबारीकी जमाने की, समझने में उम्र गुज़रीभोले भाले चेहरे में सयानापन समाता थामिलते हाथ हैं लेकिन दिल मिलते नहीं यारों

187

परायी दुनिया - Sahityapedia

4 नवम्बर 2016
0
0
0

परायी दुनियाअपना दिल जब ये पूछें की दिलकश क्यों नज़ारे हैंपरायी लगती दुनिया में बह लगते क्यों हमारे हैंना उनसे तुम अलग रहना ,मैं कहता अपने दिल से हूँहम उनके बिन अधूरें है ,बह जीने के सहारे हैंजीबन भर की सब खुशियाँ, उनके बिन अधूरी हैपाकर प्यार उनका हम ,उनसे सब कुछ हारे है

188

ग़ज़ल(ये किसकी दुआ है )

22 जुलाई 2016
0
0
0

 मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल(ये किसकी दुआ है )

189

गज़ल (बात करते हैं ) - Sahityapedia

4 नवम्बर 2016
0
0
0

गज़ल (बात करते हैं )सजाए मौत का तोहफा हमने पा लिया जिनसेना जाने क्यों बो अब हमसे कफ़न उधार दिलाने की बात करते हैं हुए दुनिया से बेगाने हम जिनके इक इशारे परना जाने क्यों बो अब हमसे ज़माने की बात करते हैंदर्दे दिल मिला उनसे बो हमको प्यारा ही लगताजख्मो पर बो हमसे अब मरहम

190

ग़ज़ल (जिंदगी का ये सफ़र ) - Sahityapedia

5 अगस्त 2016
0
0
0

ग़ज़ल (जिंदगी का ये सफ़र )कल तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआइक शक्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान हैबीती उम्र कुछ इस तरह की खुद से हम न मिल सकेजिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अनजान हैगर कहोगें दिन को दिन तो लोग जानेगें गुनाहअब आज के इस दौर में दीखते नहीं इन्सान हैइक दर्द का

191

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है - मदन मोहन सक्सेना - Sahityapedia

7 नवम्बर 2016
0
0
0

रचनाकार- मदन मोहन सक्सेनाविधा- कविताअँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने परबिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किलख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी हैसमय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किलकहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हमजुबां से दिल की बातो को है क

192

अब सन्नाटे के घेरे में ,जरुरत भर ही आबाजें

17 जून 2016
0
4
2

कंक्रीटों के जंगल में नहीं लगता है मन अपनाजमीं भी हो गगन भी हो ऐसा घर बनातें हैंना ही रोशनी आये ,ना खुशबु ही बिखर पायेहालत देखकर घर की पक्षी भी लजातें हैंदीबारें ही दीवारें नजर आये घरों में क्योंपड़ोसी से मिले नजरें तो कैसे मुहँ बनाते हैंमिलने का चलन यारों ना जानें कब से गुम अब हैटी बी और नेट से ही स

193

ग़ज़ल (इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर ) - Sahityapedia

5 अगस्त 2016
0
0
0

ग़ज़ल (इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर )हर सुबह रंगीन अपनी शाम हर मदहोश हैवक़्त की रंगीनियों का चल रहा है सिलसिलाचार पल की जिंदगी में ,मिल गयी सदियों की दौलतजब मिल गयी नजरें हमारी ,दिल से दिल अपना मिलानाज अपनी जिंदगी पर ,क्यों न हो हमको भलाकई मुद्द्दतों के बाद फ

194

प्यार ही प्यार

31 मई 2016
0
2
2

प्यार ही प्यारप्यार रामा में है प्यारा अल्लाह लगे ,प्यार के सूर तुलसी ने किस्से लिखेप्यार बिन जीना दुनिया में बेकार है ,प्यार बिन सूना सारा ये संसार हैप्यार पाने को दुनिया में तरसे सभी, प्यार पाकर के हर्षित हुए हैं सभीप्यार से मिट गए सारे शिकबे गले ,प्यारी बातों पर हमको ऐतबार हैप्यार के गीत जब गुनगु

195

हमको कुछ नहीं मालूम

2 जून 2016
0
2
0

हमको कुछ नहीं मालूमदेखा जब नहीं उनको और हमने गीत नहीं गायाजमाना हमसे ये बोला की बसंत माह क्यों नहीं आयाबसंत माह गुम हुआ कैसे ,क्या तुमको कुछ चला मालूमकहा हमने ज़माने से की हमको कुछ नहीं मालूमपाकर के जिसे दिल में ,हुए हम खुद से बेगानेउनका पास न आना ,ये हमसे तुम जरा पुछोबसेरा जिनकी सूरत का हमेशा आँख मे

196

मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ६ ,मार्च २०१६ में प्रकाशित

4 जून 2016
0
1
0

प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ६ ,मार्च २०१६ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ ग़ज़ल (इस शहर में ) इन्सानियत दम तोड़ती है हर गली हर चौराहें पर ईट गारे के सिबा इस शहर में रक्खा क्या है इक नक़ली मुस्कान ही साबित है हर चेहर

197

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है

9 जून 2016
0
4
0

अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम जुबां से दिल की बातों को है कह पाना बहुत मुश्किल ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता

198

गज़ल (तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा)

21 जुलाई 2016
0
0
0

 मैं , लेखनी और ज़िन्दगी : गज़ल (तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा)

199

दोस्त अपने आज सब क्यों बेगाने लगते हैं

22 जुलाई 2016
0
0
0

 कविता ,आलेख और मैं : दोस्त अपने आज सब क्यों बेगाने लगते हैं

200

मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : गुनगुनाना चाहता हूँ

19 अगस्त 2016
0
0
0

गुनगुनाना चाहता हूँगज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँग़ज़ल का ही ग़ज़ल में सन्देश देना चाहता हूँग़ज़ल मरती है नहीं बिश्बास देना चाहता हूँगज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ ग़ज़ल जीवन का चिरंतन प्राण हैया समर्पण का निरापरिमाण है ग़ज़ल पतझड़ है नहीं फूलों भरा मधुमास है तृप्

Loading ...