रचनाकार- मदन मोहन सक्सेना
विधा- गज़ल/गीतिका
मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक २ ,नवम्बर २०१६ में
प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक २ ,नवम्बर २०१६ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .
कौन किसी का खाता है अपनी किस्मत का सब खाते
मिलने पर सब होते खुश हैं ना मिलने पर गाल बजाते
कौन साथ ले जा पाया है रुपया पैसा महल अटारी
धरा ,धरा पर ही रह जाता इस दुनिया से जब हम जाते
इन्सां की अब बातें छोड़ों ,हमसे अच्छे भले परिंदे
मंदिर मस्जिद गुरूदारे में दाना देखा चुगने जाते
अगले पल का नहीं भरोसा जीबन में क्या हो जायेगा
खुद को ग़फ़लत में रखकर सब रुपया पैसा यार कमाते
अपना अपना राग लिए सब अपने अपने घेरे में
सबकी “मदन ” यही कहानी दिन और रात गुजरते जाते
ग़ज़ल ( कौन किसी का खाता है अपनी किस्मत का सब खाते)
मदन मोहन सक्सेना
मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -३ अंक २ ,नवम्बर २०१६ में
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Introduction- मदन मोहन सक्सेना पिता का नाम: श्री अम्बिका प्रसाद सक्सेना संपादन :1. भारतीय सांस्कृतिक समाज पत्रिका २. परमाणु पुष्प , प्रकाशित पुस्तक:१. शब्द सम्बाद (साझा काब्य संकलन)२. कबिता अनबरत 3. मेरी प्रचलित गज़लें 4. मेरी इक्याबन गजलें मेरा फेसबुक पेज : ( 1950 + लाइक्स) https://www.facebook.com/MadanMohanSa
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