दर्द, आँसू, कराह, उनका ग़म
आ गया उनकी याद का मौसम
उनके कहने पे छोड़ दी सिगरट
साँस लेना भी छोड़ दें क्या हम
जिसने झेला है वो बताएगा
कैसा होता है हिज्र का आलम
किस तरह आएगा सुकूँ हम को
ज़ख्म भी हैं वही, वही मरहम
सारे फ़ुर्क़त के ज़ख्म भर जाएं
वो अगर लाएं वस्ल का मरहम
- शिवम् शर्मा गुमनाम