अपने कालेज के दिनों में मैं अपनी सनक, हालात और घटनाओं का शिकार होकर एक चक्रव्यूह में फंस गया था जिससे निकालना उस समय असंभव सा लगता था। पर परिस्थितियों की समीक्षा और विश्लेषण करके, दृढ़ताऔर आत्मविश्वास के सहारे छोटे-छोटे कदम बढ़ कर मैं ऐसी स्थिति से उबर
वादों से जुड़ा रिश्ता.... एक अटूट बंधन!
एक पिता अपने जीवन के सब सुनहरे पलो को छोड़ देता हैं अपने बच्चों को कामयाब बनता हैं और पिता की कीमत उससे पूछो जिसके पिता नहीं हैं
मेरी जिंदगी है तुझसे मां, तुझ बीन ये जिंदगी है अधुरी मां...❤️
खामोशियां......अल्फाजों की दुनियां..🍁
1.इंसान को कभी भी किसी अवसर का इंतजार नही करना चाहिए, क्योंकि जो आज है वही सबसे बड़ा अवसर होता है। 2.गलत तरीकों से कामयाबी प्राप्त करने से कई गुना बेहतर है, सही तरीके अपनाकर नाकामयाब हो जाना। 3.जिंदगी का हर एक छोटा हिस्सा भी हमारी जिंदगी की काम
विरांगना रानी दुर्गावती का स्वाभिमान
जीवन में घटित कुछ ऐसी घटनाएं जिनके स्मरण मात्र से ही मेरे हृदय में बार-बार दस्तक उठती हो, ऐसी घटनाएं जो मेरे हृदय को झकझोर देती हैं.... (सच्ची घटनाओं पर आधारित पुस्तक)
संसार ने रावण को एक दैत्य के रूप में तो जाना है,पर इस पुस्तक के द्वारा परम शिवभक्त,परम पांडित्य ज्ञाता ,लंकेश ,रावण को एक भिन्न दृष्टि से देखकर अपनी बुद्धि अनुसार लिखने का प्रयास किया हैं। जय श्री राम ॐ नमः शिवाय
इस अफ़साने को लिखने की एक वजह यह भी रही कि मुझे स्माइलियों की भाषा बहुत रोचक जान पड़ी थी। मेरी एक चिंता यह भी थी कि इसके साथ हमारे शब्द, उनमें छुपे एहसास, एहसासों को ज़ाहिर करने के इंसानी तौर-तरीक़े, इंसान का अपना शब्दकोश, ये सब मर तो नहीं रहे हैं। म
माँ ही मंदिर माँ ही कावा शिवाला माँ का नाम ही उत्तम जग में , माँ ही पालन हारा ! माँ ही दुर्गा माँ ही लक्ष्मी माँ ही सृष्टि के रचन हारा माँ से मानव का अस्तित्व है , माँ का नाम जग में निराला ! माँ अस्तित्व है माँ ही धरती माँ ही सवको पाला , म
धनपत राय श्रीवास्तव ३१ जुलाई १८८० – ८अक्टूबर १९३६ जो प्रेमचंद नाम से जाने जाते हैं, वो हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। और उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के नज़दीक लमही गांव में हुआ था। पिता का नाम अजायब र
आम नागरिक की जीवनी के साथ ही उनके कार्य और दिनचर्या के वो किस्से जिनसे ना केवल अपनी तारीफ बल्कि उन सभी कर्तव्य जो एक आम इंसान में होते हो
सभी इच्छायें जहाँ होंगी वहाँ कोई ना कोई जाल मिलेगा, उसमें फँस कर ख़ुश होता इंसानी लाल मिलेगा। ज़रूरतें पूरी हो जाना ही सिर्फ़ काफ़ी नहीं, दूसरों की नक़लों में हरपल बहाता माल मिलेगा। संतुष्ट नहीं होता अपनी हैसियत और हस्ती से, और-और करके हरदम बजाता ग
तिनके तिनको मे जिंदगी 🖤
इसके माध्यम से मैं मेरे जीवन की उन यादों का अपने शब्दों के माध्यम से रचित करना चाह रहा हूं जो मुझे मेरी जिंदगी में हल्की हल्की सी याद आती है। जब उन संस्कारों के खिलाफ कुछ भी होता है तो मुझे उन पलों की यादें आने लगती है और मैं उन समय के लोगों को याद क
यह कहानी एक बेटी की है।जो कम पढ़ी-लिखी है। दुनिया के ताने लगातार उसे कमजोर करते हैं।पर उसने हिम्मत नहीं हारी। और किस तरह से वे अनपढ़, गंवार एक अन्नपूर्णा बनती है यह दिखाया गया है
मैं जब इस किताब को लिखने, अपनी पूरी नासमझी के साथ कश्मीर पहुँचा तो मुझे वहाँ सिर्फ़ सूखा पथरीला मैदान नज़र आया। जहाँ किसी भी तरह का लेखन संभव नहीं था। पर उन ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलते हुए मैंने जिस भी पत्थर को पलटाया उसके नीचे मुझे जीवन दिखा, नमी और
पीयूष मिश्रा जब मंच पर होते हैं तो वहाँ उनके अलावा सिर्फ़ उनका आवेग दिखता है। जिन लोगों ने उन्हें मंडी हाउस में एकल करते देखा है, वे ऊर्जा के उस वलय को आज भी उसी तरह गतिमान देख पाते होंगे। अपने गीत, अपने संगीत, अपनी देह और अपनी कला में आकंठ एकमेक एक
यह मेरी जीवनी है। एक पत्रकार की कहानी। मैंने इस कहानी को जीया है। मैं ही इस कहानी का नायक हूं। मैंने अपने जीवन के 32 बरस पत्रकारिता को दिए हैं। गुजरे इन बरसों में पत्रकारिता ही मेरा धर्म भी रही और जुनून भी। व्यवसाय भी और कर्तव्य भी। लक्ष्य भी और आत्