एकात्म मानववाद !
(विश्लेषणात्मक आलेख)
परिचय :-
एकात्म मानववाद भारतीय दर्शन और राजनीतिक विचारधारा का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ है, जिसे भारतीय जनसॅंघ के सॅंस्थापक पॅंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने 1965 में प्रतिपादित किया था। यह विचारधारा भारतीय समाज, सॅंस्कृति, और परम्पराओं के सन्दर्भ में विकास और समृद्धि के मार्ग को परिभाषित करती है। एकात्म मानववाद व्यक्ति, समाज और प्रकृति के बीच सामन्जस्य पर आधारित है, जो भौतिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओं का सन्तुलन बनाने की बात करती है।
एकात्म मानववाद का सिद्धान्त :-
एकात्म मानववाद का आधार यह मान्यता है कि मनुष्य केवल एक भौतिक शरीर तक सीमित नहीं है, बल्कि वह मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक तत्वों का सॅंगम है। यह दर्शन पश्चिमी उपभोक्तावादी और साम्यवादी विचारधाराओं की आलोचना करते हुए कहता है कि भौतिक प्रगति के साथ-साथ मानसिक और आध्यात्मिक प्रगति भी अनिवार्य है।
इसके चार मुख्य सिद्धान्त इस प्रकार हैं :-
1. समग्र दृष्टिकोण :- एकात्म मानववाद समग्रता की अवधारणा पर आधारित है, जिसमें व्यक्ति, समाज, और प्रकृति को एक ही प्रणाली के अंग मानकर सामन्जस्यपूर्ण
विकास की बात की जाती है।
2. व्यक्ति और समाज का सन्तुलन :- इस विचारधारा में व्यक्ति और समाज के बीच सन्तुलन बनाए रखने पर बल दिया गया है। व्यक्ति का विकास समाज से जुड़ा है, और समाज का विकास व्यक्तियों के योगदान पर निर्भर करता है।
3. स्वदेशी मॉडल :- एकात्म मानववाद भारतीय परम्पराओं और सॉंस्कृतिक मूल्यों पर आधारित विकास का समर्थन करता है, जो पश्चिमी विचारों की नकल करने के के स्थान पर स्वदेशी सोच को महत्व देता है।
4. धार्मिक और आध्यात्मिक विकास :- यह दर्शन मानता है कि केवल भौतिक समृद्धि से समाज का विकास सम्भव नहीं है। आध्यात्मिक विकास और नैतिक मूल्यों को भी विकास प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा माना जाता है।
आर्थिक दृष्टिकोण :-
एकात्म मानववाद आर्थिक विकास के सन्दर्भ में पूॅंजीवाद और समाजवाद दोनों के बीच का एक मार्ग प्रस्तुत करता है। यह न तो पूरी तरह से पूॅंजीवादी अर्थव्यवस्था को अपनाने की बात करता है, जिसमें धनी और निर्धन के बीच की खाई बढ़ती है, और न ही समाजवादी मॉडल को समर्थन देता है, जो व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को सीमित कर सकता है। इसके स्थान पर, यह एक ऐसी अर्थव्यवस्था का पक्ष रखता है जो स्वदेशी उत्पादन, स्थानीय सॅंसाधनों का उपयोग और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देती है।
राजनीतिक दृष्टिकोण :-
राजनीतिक रूप से, एकात्म मानववाद विकेंद्रीकरण और लोकतन्त्र के सिद्धान्तों पर आधारित है। इसमें सरकार और सत्ता के केंद्रीकरण के स्थान पर समाज के विभिन्न वर्गों को स्वशासन का अधिकार देने की बात की गई है। ग्राम स्तर पर लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं को सशक्त बनाना और लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना इसका मुख्य उद्देश्य है।
समाज और सॅंस्कृति :-
एकात्म मानववाद भारतीय समाज और सॅंस्कृति को विशेष महत्व देता है। यह विचारधारा मानती है कि हर समाज की अपनी विशिष्ट सॉंस्कृतिक पहचान होती है, जो उसकी विकास यात्रा को प्रभावित करती है। इस सिद्धान्त के अनुसार, भारतीय समाज के लिए विकास का ऐसा मॉडल अपनाना चाहिए जो उसकी सॉंस्कृतिक विरासत और परम्पराओं के अनुरूप हो। पॅंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने पश्चिमी विचारों और उपभोक्तावादी सॅंस्कृति की आलोचना करते हुए कहा कि भारतीय समाज का विकास भारतीय मूल्यों और सिद्धान्तों पर आधारित होना चाहिए।
समकालीन सन्दर्भ में एकात्म मानववाद :-
वर्तमान समय में जब वैश्वीकरण और उपभोक्तावादी सॅंस्कृति समाज में तेजी से फैल रही हैं, एकात्म मानववाद एक आवश्यक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। यह केवल आर्थिक विकास पर आधारित नहीं है, बल्कि समाज और व्यक्ति के सर्वांगीण विकास पर जोर देता है। एकात्म मानववाद के सिद्धांत आज भी प्रासॅंगिक हैं, विशेष रूप से जब दुनिया में पर्यावरणीय सॅंकट, आर्थिक असमानता, और सॉंस्कृतिक टकराव जैसी चुनौतियाँ उभर रही हैं।
निष्कर्ष :-
एकात्म मानववाद न केवल एक राजनीतिक और सामाजिक विचारधारा है, बल्कि यह एक जीवन दर्शन है जो मनुष्य के सर्वांगीण विकास की बात करता है। यह व्यक्ति, समाज, और प्रकृति के बीच सन्तुलन स्थापित करने का प्रयास करता है और आधुनिक समस्याओं का समाधान भारतीय दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है। पॅंडित दीनदयाल उपाध्याय जी द्वारा प्रतिपादित यह विचारधारा वर्तमान समय में भी उतनी ही प्रासॅंगिक है, जितनी तब थी, जब इसे प्रतिपादित किया गया था। यह एक समग्र और सामन्जस्यपूर्ण विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक एवं मील का पत्थर मानी जाती है।
इंदु भूषण बाली
सॅंरक्षक प्रेस कोर कॉउन्सिल
विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता, लेखक और भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
ज्यौड़ियॉं (जम्मू)
जम्मू और कश्मीर