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नारी का सम्मान

10 अक्टूबर 2021

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उठाती है जो जमाने का बोझ उसको कोई समझ न पाता।

परिवार की ख्वाहिश को पूरा करना..... उसके मन को भाता।।

अपने दुःख को पल भर में भूल जाती है....परिवार पर अपनी जान लुटाती है।

कहने को वह निर्वल है....... अपनों पर कोई भी कष्ट तो वही नारी काली बन जाती है।।

ठोकरे खाकर जमाने की...... एक नया कदम बढ़ाती है।

स्वयं का न सोचकर........ अपना हर धर्म निभाती है।।

उस औरत को क्या उसके हिस्से का सम्मान भी नहीं दे सकते तुम जो तुम पर अपनी जान लुटाती है।

वो भी इंसान है मान दो उसको........तुम्हारी तरह वो भी विधाता की संतान है सम्मान दो उसको।।

धन्यवाद 🙏🙏

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