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कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास

4 अगस्त 2022

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🔴 वेदव्यास कौन थे ?
 ● वेदव्यास की माता सत्यवती थीं। उनके पिता ऋषि पराशर थे, जो ज्योतिष के प्रकांड विद्वान थे।
🔴 वेदव्यास को कृष्ण द्वैपायन क्यों कहा जाता है ?
 ● वेदव्यास का शरीर कृष्णवर्णी था और उनका जन्म यमुना नदी ( चिल्ला बाँदा जनपद ) के द्वीप में हुआ था। इसलिए इन्हे कृष्ण द्वैपायन कहा जाता है।
🔴 "वेदव्यास" नाम क्यों पड़ा ?
 ● ऋषि पराशर की संतान होने के कारण वे जन्मजात उद्भट विद्वान थे। इन्होंने वेदों को व्यवस्थित करने का काम किया, इसलिए इनको "वेदव्यास" या "व्यास" कहा जाता है। ( "विव्यास वेदान यस्मात स तस्माद व्यास इति स्मृतः" ~ महाभारत- 1.63-86 )। वेदों को व्यवस्थित करने के बाद वेदव्यास ने "महाभारत" जैसे अद्वितीय ग्रंथ की रचना की थी।
🔴 माता सत्यवती कौन थीं ?
● सत्यवती की माँ का नाम "अद्रिका" (अदरी) था, जो बाँदा जनपद के चिल्ला क्षेत्र में अदरी गाँव की निवासिनी थीं। वे "चेदि राज्य" के राजा उपरिचर वसु की औरस पुत्री थीं। 
🔴 राजा उपरिचर वसु कौन हैं ?
● उपरिचर वसु चेदि राज्य के प्रतापी राजा थे। वे पुरुवंशी थे और वैद्य उपरिचर वसु के नाम से विख्यात हैं~ ( महाभारत- 1: 63 )। उनकी राजधानी "शुक्तिमती" नगरी थी, जो इसी नाम की "शुक्तिमती" नदी के तट पर स्थित थी~ ( "राजो परिचरेत्येवं नाम तस्याथविश्रुतम"- पुराण विमर्श- पृष्ठ 02 ) + " पुरोपवाहिनी तस्य नदीं शुक्तिमतीं गिरि" - बल्देव उपाध्याय )। राजा उपरिचर वसु आखेट प्रेमी थे।
🔴 माता सत्यवती और चेदि राज्य के राजा उपरिचर वसु का क्या संबंध है ?
● राजा उपरिचर वसु आखेट प्रेमी थे और आखेट के लिए यमुना तट के सघन वन "अद्रिका वन" में आया करते थे। एक बार वन भ्रमण के समय उनकी भेंट "अद्रिका" नामक एक ऐसी नवयुवती से हो गयी, जो अतीव सुन्दर एवं लावण्यमयी थी। राजा उपरिचर वसु उसके रूप सौन्दर्य पर मुग्ध हो गये।। राजा उपरिचर वसु ने अदरी गाँव के निकट ही वसुधरी गाँव में अपना शिविर बना लिया। दोनों का प्रेमालाप बढ़ता रहा। दोनों के समागम से "अद्रिका" गर्भवती हो गई और कालांतर में "अद्रिका" ने युग्म संतानों को जन्म दिया। उनमें एक बालक और दूसरी कन्या थी। 
कालांतर में बालक मत्स्य नाम से प्रसिद्ध हुआ और मत्स्य देश का राजा बना। दूसरी संतान कन्या थी, जो मत्स्यगंधा सत्यवती के नाम से जानी गयी। राजा उपरिचर वसु के कहने पर सत्यवती का पालन-पोषण निषाद शिरोमणि दासराज ने किया, क्योंकि युग्म संतान को जन्म देने के उपरांत "अद्रिका" का निधन हो गया था। सत्यवती के अन्य नाम ~ मत्स्यगंधा, योजनगंधा, काली तथा दाशेयी भी थे। रूप, शील आदि समस्त गुण इस कन्या में थे~ ( "रूपं सत्वसमायुक्ता सर्वैः समुदिता गुणैः/ सातु 'सत्यवती' नाम मत्स्यगंधामि संश्रयात आसीत् सा मत्स्यगन्धैव" -- महाभारत- 1:68-69 )
🔴 निषाद शिरोमणि दासराज कौन थे ?
● निषाद शिरोमणि दास राज बाँदा जनपद के उपनगर चिल्ला में यमुना नदी के तटवर्ती द्वीप के निकट रहते थे और यहीं पर वह चेदि राजा "उपरिचर वस" और "अद्रिका" के संपर्क में आए। "अद्रिका" के निधन के बाद राजा वसु ने "अद्रिका" पुत्री सत्यवती के लालन-पालन का दायित्व निषाद दासराज को सौंप दिया। आगे चलकर सयानी होने पर सत्यवती अपने पिता निषाद राज के व्यवसाय  नौकाचालन में सहयोग करने लगी~ ( "अपत्यं चैतदार्यस्य वो युष्माकं समो गुणैः। / यस्य शुक्रात सत्यवती संभूता वर वर्णिनी॥ / तेन मे बहुशस्तात पिता ते परिकीर्तितः।/ अर्हः सत्यवती वोढ़ुं धर्मज्ञः स नराधिपः॥~ महाभारत- 1:00- 78-80 ) 
🔴 कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास की माता सत्यवती और पराशर मुनि का मिलन कहाँ और कैसे हुआ ?
● एक दिन पराशर मुनि तीर्थाटन के उद्देश्य से यमुना तट पर पहुँचे और यमुना नदी को पार करने के लिए नौका पर आरूढ़ हुए। नौका का चालन सत्यवती कर रही थी। पराशर मुनि सत्यवती के दिव्य रूप और सौंदर्य से आकर्षित हो गए। अपने ज्योतिष ज्ञान के कारण उनको स्पष्ट दिख रहा था कि काल गणना के अनुसार इस समय इस कुँवारी कन्या सत्यवती के साथ संसर्ग  करने से एक महान व्यक्ति और प्रतापी पुरुष तथा प्रकांड विद्वान का जन्म होना है।  ऐसा जानकर पराशर मुनि ने सत्यवती से अपना प्रणय निवेदन किया। पराशर मुनि ने अपने तपोबल से सत्यवती का कौमार्य भी सुरक्षित कर दिया और मत्स्यगंधा सत्यवती को योजनगंधा बना दिया, जिसके रूप सुंदर तथा यौवन की सुगंध अनेक योजन तक व्याप्त हो गई।
🔴 पराशर मुनि और सत्यवती के समागम का क्या परिणाम हुआ ? 
● जैसा कि अब तक स्पष्ट हो गया है कि बाँदा जनपद के चिल्ला क्षेत्र में यमुना नदी के तट पर पराशर मुनि और सत्यवती का मंगल मिलन हुआ। पराशर मुनि के संसर्ग से सत्यवती ने यमुना नदी के द्वीप में एक पुत्र को जन्म दिया। पराशर मुनि ने अपने प्रिय पुत्र को "द्वैपायन" नाम दिया। कृष्णवर्णी शरीर होने के कारण और यमुना नदी के द्वीप में जन्म लेने के कारण इनका नाम "कृष्ण द्वैपायन" पड़ा, जिन्हें कालांतर में "वेदव्यास" के नाम से जाना गया~ ( "पराशरेण संयुक्ता सद्यो गर्भ सुभाष सा। जज्ञे च यमुना द्वीपे पराशर्य स वीर्यवान॥/ एवं द्वैपायनो जज्ञे सत्यवत्यां पराशरात।/ न्यस्तो द्वीपे स यद् बालस्तस्माद द्वैपायनः स्मृतः॥~ महाभारत- 1:- 63-86 )।
● राजा वसु और अद्रिका की कुँवारी कन्या सत्यवती ने पराशर मुनि के संसर्ग से द्वैपायन को जन्म दिया,  इसीलिए लोक मर्यादा और लोक निंदा के भय से माता सत्यवती ने अपने पुत्र द्वैपायन को यमुना दीप में स्थित अपनी माँ अद्रिका के विहार स्थल "अद्रिका वन" में रखा। यही अद्रिका वन "अदरी" गाँव के नाम से विख्यात है। इसी अदरी गाँव के निकट ही "वसुधरी" गाँव है, जहाँ चेदि राज्य के राजा उपरिचर वसु आकर विश्राम करते थे। यह उनका शिविर था। 
🔴 चेदि राज्य का इतिहास क्या है ?
● बाँदा जनपद के उपनगर चिल्ला में यमुना नदी के दक्षिण में स्थित सुंदर और समृद्ध राज्य को चेदि राज्य कहा जाता है। महाभारत के पूर्ववर्ती काल में चेदि राज्य का स्वर्ण युग था। पृथ्वी पर चेदि राज्य सर्वाधिक रमणीय स्थान था और प्रचुर धनधान्य संपन्न, स्वर्ग के समान सुखदाई, समस्त भोग्य पदार्थों से समलंकृत तथा संपूर्ण सुरक्षित राज्य था~ ( "अर्थवान एश देषेति, धनरत्नादिभिर्युतः। वसुपूर्णा च वसुधा वस चेदिषु चेदपि॥"~ महाभारत- 1:63:9 )। महाभारत में चेदि राज्य का उल्लेख विस्तार से है। बौद्ध काल में 16 महाजनपदों में चेदि महाजनपद का उल्लेख है।
● इसके अतिरिक्त डाॅ कन्हैयालाल अग्रवाल की पुस्तक "प्राचीन भारतीय जनपदों में चेदि जनपद" के पृष्ठ 5 पर चेदि राज्य का सविस्तार वर्णन है।
ऐतिहासिक संदर्भों के अनुसार आधुनिक बुंदेलखंड ही सुदूर प्राचीन काल में चेदि राज्य था। चेदि राज्य का ही आधुनिक नाम बुंदेलखंड है, जिसमें बाँदा, हमीरपुर, चित्रकूट, महोबा, ललितपुर, जालौन तथा दतिया, छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, सागर, दमोह आदि जनपद सम्मिलित हैं~ ( विन्ध्य क्षेत्र का ऐतिहासिक भूगोल ~ डाॅ कन्हैयालाल अग्रवाल ~ पृष्ठ-49-50 संस्करण 1987। 
● चेदि राज्य की राजधानी "शुक्तिमती" नगरी थी, जो इसी नाम की "शुक्तिमती" नदी के किनारे स्थित थी~ ( "शुक्तिमती" पुरी का स्थान निर्धारण ~ डाॅ कन्हैयालाल अग्रवाल- पृष्ठ 5 )
🔴 "शुक्तिमती" नदी का इतिहास क्या है ?
● "शुक्तिमती" नदी का उद्गम स्थान कोलाहल पर्वत है, जो संप्रति ऋषवान और विंध्य पर्वत श्रंखला के नाम से विख्यात है। "लक्ष्मी कर्ण कलचुरी" के शासनकाल में शुक्तिमती का नाम "कर्णवती" था। कालांतर में संक्षेप में यह "केन" नदी के रूप में विख्यात हो गई। 
● पार्जिटर डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल और दिनेश चंद्र सरकार आदि विद्वानों के अनुसार उपरोक्त पर्वतमाला से निकलने वाली नदी का आधुनिक नाम "केन" नदी है। यह नदी पन्ना छतरपुर जनपदों का सीमांकन करती हुई उत्तर प्रदेश के बाँदा जनपद में प्रवेश करके चिल्ला नामक गाँव में यमुना नदी से मिल जाती है।
● केन नदी का प्राचीन नाम "शुक्तिमती" भी सार्थक है। "शुक्तिमती" नदी में शूक्तियाँ अर्थात सीपियाँ प्रचुर मात्रा में पाई जाती थीं। इसी विशेषता के कारण इसे "शुक्तिमती" कहा जाता था। आज भी केन नदी में  सीपियों की बहुलता है। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं कि "शुक्तिमती" ही केन नदी है।
🔴 प्राचीन अभिलेख:~~~••
● प्राचीन अभिलेखों से स्पष्ट है कि चेदि राज्य के राजा ऊपरिचर वसु की राजधानी "शुक्तिमती" नगरी थी। यह "शुक्तिमती" नदी के तट पर स्थित थी। "शुक्तिमती" का आधुनिक नाम "केन" नदी है। "शुक्तिमती" नदी अर्थात केन नदी के तट पर स्थित चेदि राज्य की राजधानी "शुक्तिमती" नगरी ही आधुनिक "स्यौंढ़ा" ग्राम है। यह "स्यौंढ़ा" गाँव बाँदा जनपद की नरैनी तहसील में स्थित है, जहाँ पर प्राचीन "शुक्तिमती" नगरी के ध्वंसावशेष आज भी अवलोकनीय हैं। इसी गाँव के अति निकट "शुक्तिमती" नदी अर्थात आधुनिक "केन" नदी आज भी प्रवाहमान है।
🔴 अदरी और वसुधरी :~•
● चेदि राज्य के राजा उपरिचर वसु आखेट प्रेमी थे। आखेट के लिए वे प्रायः केन और यमुना नदी के संगम में स्थित सघन वन में जाया करते थे। दोनों ही नदियों का संगम चिल्ला ग्राम (बाँदा जनपद) में होता है। चिल्ला से लगभग 5 किलोमीटर दूर पर "अदरी" गाँव है, जहाँ पर घनीभूत जंगल में राजा वसु का मंगल मिलन अद्वितीय सुंदरी अद्रिका से हुआ। अपने प्रेम की निरंतरता बनाए रखने के लिए राजा वसु ने अदरी गाँव के समीप ही "वसुधरी" गाँव में अपना शिविर बना लिया और आखेट के लिए आने पर यही विश्राम करते थे। 
🔴 निष्कर्ष:~~~•••
● राजा वसु और अद्रिका के मंगल मिलन से "सत्यवती" का जन्म हुआ। कालांतर में "सत्यवती" और पराशर मुनि के संसर्ग से अद्रिका वन में यमुना नदी के द्वीप में "कृष्ण द्वैपायन" का जन्म हुआ। 
● यह महा संयोग है कि ~ सत्यवती के माता-पिता के मंगल मिलन का साक्षी अद्रिका वन (अदरी गाँव) सत्यवती के प्रिय पुत्र "कृष्ण द्वैपायन- वेदव्यास" की जन्मस्थली के रूप में चिन्हित हो चुका है। 
● उपर्युक्त परिशीलन से स्पष्ट रूप से प्रमाणित है कि ~ "कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास" की जन्मस्थली "अदरी" गाँव है, जो बाँदा जनपद के चिल्ला क्षेत्र में यमुना नदी के तट पर स्थित है। 
🔴 सत्यवती और राजा  शान्तनु:~
● राजा शांतनु के साथ सत्यवती के विवाह की पूर्व संध्या पर सत्यवती के पालक पिता निषाद राज दासराज ने शांतनु पुत्र देवव्रत (भीष्म पितामह) को इस रहस्य से अवगत करा दिया था कि~ "सत्यवती मेरी दत्तक पुत्री है और वह एक आर्य पुरुष की संतान है। वह प्रतिष्ठित राजकुल पुरुवंशी चेदिराज्य के राजा उपरिचर वसु की "औरस पुत्री" हैं। उन्होंने अनेक बार मुझे आपके धर्मज्ञ पिता सम्राट शांतनु के साथ सत्यवती के विवाह का परामर्श दिया था।"
🔴 विश्वव्यापी महत्व:~•••
● विद्वानों ने विश्व के सैकड़ों महाकाव्यों में से 6 महाकाव्यों को विश्व स्तरीय स्वीकार किया है और उनके अंतर्राष्ट्रीय महत्व को रेखांकित किया है। ये 6 महाकाव्य हैं ~ वाल्मीकि रामायण, महाभारत, रामचरितमानस, इलियड, ओडिसी, एनीड शाहनामा। इनमें से तीन महाकाव्य भारतवर्ष की देन हैं और इन तीनों का प्रत्यक्ष संबंध बाँदा- चित्रकूट से है। वाल्मीकि रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का आश्रम आज भी बाँदा इलाहाबाद मार्ग पर चित्रकूट जनपद के लालापुर गाँव की एक पहाड़ी पर स्थित है। महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास की जन्मस्थली बाँदा जनपद के चिल्ला क्षेत्र में यमुना नदी के तट पर अदरी वसुधरी गाँव में है तथा रामचरितमानस के रचयिता संत तुलसीदास की जन्मभूमि चित्रकूट के राजापुर कस्बे में है। ये तीनों स्थान चित्रकूट धाम मंडल बाँदा के अंतर्गत विद्यमान हैं। 
● जहाँ तक महर्षि वेदव्यास का प्रश्न है, तो अध्यात्म ग्रंथों में वर्णित "सप्त चिरंजीवी" में महर्षि वेदव्यास का नाम भी वर्णित है:~ 
"अशवत्थामा बलि व्यास हनुमान च विभीषणः, कृपः परशुराम च सप्तैते चिरंजीविनः ॥" अर्थात ये सातों अजर अमर इस ब्रह्माण्ड में हैं।  
● इस प्रकार बाँदा की धरती का साहित्यिक, सांस्कृतिक, अध्यात्मिक, पौराणिक तथा ऐतिहासिक महत्व विश्व व्यापी है और अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में स्वतः सिद्ध है।
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👁️ प्रस्तुति:~ गोपाल गोयल ~ संपादक 🌻 मुक्ति चक्र
9838625021 / 9910701650
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