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वो तस्वीर

27 सितम्बर 2024

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"तुम भी कैसी बेकार की बात कर रही हो !!......"

"बेकार की बात !! मैंने अपनी आंखों से देखा तब कह रही हूं,, नई-नवेली दुल्हन,कमरे में जब अकेली थी तो किसी का फोटो हाथ में लिए उसे मुस्कुरा कर देखे जा रही थी!!

सुमित कमरे में नहीं था ,, मैंने कमरे की देहरी पर जाकर पुकारा तो मुझे देखते ही हाथ की फोटो अपने पीछे छुपाते हुए सकपका कर उठते हुए बोली --"जी मां जी!!"
रामेश्वरी देवी क्रोध से भरी बोल रही थीं।

रामेश्वरी देवी जिनका नाम तो रमा था मगर ससुराल में आकर ईश्वरी साहब ने उनके नाम के आगे अपना नाम भी जोड़कर उन्हें रामेश्वरी देवी बना दिया था.....।


"अच्छा!!!!........"
इसका अर्थ क्या ये है कि..... ........क्या सुमित को ये बताना सही होगा !! नहीं-नहीं -- अभी-अभी तो उसका ब्याह हुआ है,, और उसके वैवाहिक जीवन में इस बात की नीम घोलना सही न होगा,, 



ईश्वरी साहब सोचते ही रह गए थे और रामेश्वरी देवी ने जाकर अपने सुपुत्र के कानों में बात डाल दी थी--" तू लुट गया!!बरबाद हो गया,,, कुलक्षिणी बहू घर आ गई जिसका किसी के साथ चक्कर है ....!!
जब तू कमरे में नहीं होता है तब उसे टुकुर-टुकुर देखकर मुस्कुराती रहती है!!......"

"क्या मां आप भी!!......."सुमित ने अपनी मां को झिड़क दिया था और अपने कमरे में चला गया था मगर मां की बात को जांचने हेतु उसने भी छुप कर देखा था कि जब वो कमरे में नहीं होता है तब उसकी पत्नी किसी की फोटो लेकर उसे देखते हुए मुस्कुराती रहती है....।

इसका अर्थ मां सच कह रही थीं !! सुमित का गुस्से से सिर भन्ना गया था।

"अरे आ गए आप ...." नजरें झुकाए हुए लजाकर स्वनिका ने कहा।


"नहीं,, मैं अभी  कहां आया !!..... व्यंग्य से कहते हुए सुमित बिस्तर पर पसर गया था।

"आपके लिए कुछ लाऊं...."मुस्कुरा कर स्वनिका बिस्तर पर उसके समीप बैठ गई थी।

" शादी से पहले तुम्हारा कोई यार था !!....." सुमित ने स्वनिका का साड़ी का पल्लू पकड़ कर उसके कोने को अपनी उंगलियों से ऐंठते हुए सीधे-सीधे पूछ लिया था।

मितभाषी और समझदार स्वनिका ने भी सिर झुकाए हुए तकिया का कवर चढा़ते हुए हल्का मुस्कुराते हुए कहा -" हां एक नहीं बहुत थे ,, किस किस का नाम गिनाऊं!!....."

स्वनिका का कहना था और...चटाआआक,,, उसके गाल पर थप्पड़ जड़ते हुए सुमित कमरे से दनदनाते हुए निकल गया था।

स्वनिका के गालों पर आंसूओं की बूंदे लुढ़क आई थीं‌।

सुमित जब भी अपने कमरे के बाहर छुपकर स्वनिका को देखता ,तो वो उसे किसी की तस्वीर को निहारते, मुस्कुराते हुए मिलती और जब कभी वो कमरे में दाखिल होता तो वो सकपका कर हाथ में ली तस्वीर को अपने पीछे छुपा लेती थी ।

"कब तक ऐसे छुप-छुपकर देखकर अपना खून जलाता रहेगा!!....." एक रात पीछे से आकर रामेश्वरी देवी ने सुमित को चौंका दिया था।

"हां मां अब पानी सिर से ऊपर हो गया है,, ससुर जी को बुलाना  ही पड़ेगा...." गुस्से से सुमित स्वनिका के पिता को फोन लगाने लगा था।

ईश्वरी साहब भी मन ही मन सोचने लगे थे कि बेटे के गले बदचलन लड़की बंध गई...

अगली सुबह स्वनिका के पिता पधार गए थे। स्वनिका तब मंदिर गई हुई थी।

स्वनिका के पिता के सामने सुमित ने सारी बात रख दी और उसे वापस सदा के लिए अपने साथ ले जाने के लिए खरे शब्दों में कह दिया।
ईश्वरी साहब, रामेश्वरी देवी और सुमित तीनों के सामने बैठे हुए स्वनिका के पिता के कानों में जैसे किसी ने गर्म लावा डाल दिया हो !! 
"नहीं, नहीं,, ऐसा मत कहिए,,, आप लोगों को अवश्य कोई गलतफहमी हुई है,, मुझे अपनी परवरिश पर पूरा भरोसा है,, मेरी बेटी ऐसा कुछ नहीं कर सकती है,,, मैं आप लोगों के आगे हाथ जोड़ता हूं,, इतनी कठोर सजा उसे मत दीजिए,, वो भी उस अपराध की जो उसने किया ही नहीं!!..."अपने स्थान से उठकर तीनों के सामने भूमि पर घुटनों के बल बैठ कर वे गिड़गिड़ाने लगे थे।

सजा आपकी बेटी को हम दे रहे हैं या हमें जाने किस अपराध की सजा मिली जो ऐसी लड़की हमारे सुमित के पल्ले बांध दी आपने जिसका किसी के साथ.....राम राम राम राम मुझे तो कहते हुए भी .....आप कृपा करके अपनी बेटी को यहां से सदा के लिए ले जाइए....." ईश्वरी साहब ने दो टूक शब्दों में कहा।

" ऐसा मत कहिए,, विवाह कोई गुड्डे-गुड़ियों का खेल नहीं है,, अवश्य कोई गलतफहमी हुई है,,आप आपस में..... बाबाआआ .... स्वनिका के पिता अपनी बात पूरी करते इसके पहले मंदिर से आई स्वनिका ने बरामदे में पिता को पाकर खुश होकर कहा और अगले ही क्षण उसे बरामदे में अपना सामान पैक किया रखा दिखा ।

"स्वनिका मेरी बच्ची,,, ये मैं क्या सुन रहा हूं,,, दामाद बाबू, समधी जी,ये सब क्या कह रहे हैं!!......" स्वनिका के पिता उठकर घर के दरवाजे पर खड़ी स्वनिका के पास जाकर अश्रुपूरित नेत्रों से पूछने लगे थे वहीं स्वनिका को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसका सामान बांध कर यहां क्यों रख दिया गया है और बाबा किस बारे में बात कर रहे हैं!!

"आ गई कुलक्षिणी,, अब आप इसको लेकर यहां से तशरीफ ले जा सकते हैं"रामेश्वरी देवी ने क्रोध में भरकर स्वनिका की ओर देखकर कहा।

" ये सब क्या है!! मुझसे क्या अपराध हुआ है!!....." स्वनिका ने सुमित के पैरों में बैठकर पूछा।

"ओहहह ज्यादा भोली बनने का प्रयास मत करो,, तुम्हें मुझसे विवाह नहीं करना था तो स्पष्ट मना कर देतीं अपने बाप से !! पर नहीं,, विवाह मुझसे किया और अपने यार की तस्वीर लेकर आईं और जब कमरे में अकेले होती हो तब उसे देखकर मुस्कुराया करती हो !! 
जब से विवाह हुआ तब से मेरी तरफ तो तुमने कभी नजर उठाकर देखा तक नहीं!! सारी बातें, हंसना बोलना सब निगाहें नीची करके !! हां भाई तुम्हारा यार मुझसे ज्यादा हैंडसम होगा ना!! उसके आगे मेरी क्या बिसात!!......."सुमित क्रोध से बोले जा रहा था और स्वनिका उठकर खड़ी हो गई थी,,, अवाक रह गई थी वो....

"अब अपने बाप के साथ निकलती है या धक्के मारकर निकालूं!!...." सुमित चीखा ।

घर का मुख्य द्वार खुला होने के कारण आसपास के लोग बाहर खड़े होकर सब देखते हुए आपस में कानाफूसी करने लगे थे।

"स्वनिका तू अपनी सफाई में कुछ कहती क्यों नहीं!!....कह दो कि ये सब झूठ है!!...."उसके पिता का कहते हुए स्वर रुंध गया था।

"नहीं बाबा ,, सच को किसी सफाई की आवश्यकता नहीं होती है,, वो प्रकट हो ही जाता है,,आज नहीं तो कल ....." कहकर वो सामान उठाकर अपने बाबा के साथ घर के बाहर निकलते हुए बार बार पलटकर घर को आंसू भरी आंखों से देख रही थी।

रामेश्वरी देवी से रहा न गया और उन्होंने उसे आगे बढ़कर पीछे से धक्का दे कर दरवाजे से बाहर कर दिया और सुमित ने मुख्य द्वार बंद कर लिया।

"अब जाकर सुकून मिला,, कुलक्षिणी घर से गई..... रामेश्वरी देवी ग्लास में पानी लेकर गटकने लगी थीं और सुमित अपने कमरे में चला गया।

कुछ दिन बीते।

एक दिन सुमित को बिस्तर का चादर बदलते हुए गद्दे के नीचे एक लिफाफा दबा दिखा ।

ये क्या है!! लगता है अपने यार की तस्वीर यहीं छोड़ गई है !! सोचते हुए सुमित ने लिफाफे से तस्वीर निकाली ....... सुमित का चेहरा सफेद पड़ गया था....... क्योंकि वो तस्वीर किसी और की नहीं बल्कि उसी की थी ,,,, विवाह तय होने के समय जो स्वनिका के यहां भेजी गई थी.....।
सुमित धम्म से बिस्तर पर गिर सा गया और उसके हाथ से तस्वीर छूट कर उलट कर गिर गई थी।

सुमित की नजर गई.... तस्वीर के पीछे लिखा था --- पतिदेव मुझे बहुत लाज आती है आपकी आंखों में आंखें डालकर देखने में,,, इसलिए तो आपकी तस्वीर को जी भरकर मुस्कुरा कर देख लेती हूं ,, ...........।

सुमित की आंखों के आगे जैसे अंधेरा छा गया ।

"अरे सुमित!! इतनी हड़बड़ी में दरवाजा खोलकर कहां जा रहा है!!....." रामेश्वरी देवी ने सुमित को हाथ में कुछ लिए हुए तेजी से घर के बाहर जाते हुए देखकर पूछा --और ये तेरे हाथ में क्या है!!

"मां आप भी चलिए,, पापा को भी साथ ले आइए,,, हमसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है,अगर अभी हमने उसे नहीं सुधारा तो हम जीवन भर अपनी करनी के लिए पछताएंगे....." कहते हुए सुमित तेजी से बाहर बढ़ चला था।

"अरे पर जा कहां रहा है!!बात क्या है,, सुन तो !!......." रामेश्वरी देवी जल्दी से चप्पल पहनने लगी थीं और ईश्वरी साहब भी कमरे की खूंटी से कुर्ता उठाकर पहनते हुए धर्मपत्नी के साथ सुमित के पीछे चले गए थे।

सुमित स्वनिका के घर पहुंचा।

दरवाजा स्वनिका ने ही खोला और वो आगे सुमित,उसके हाथ में तस्वीर और पीछे सास-ससुर को खड़ा देखकर समझ गई थी कि इन्हें सच का पता चल चुका है।

सुमित ने रास्ते में मां पापा को सारी बात बता दी थी।

"स्वनिका,,हमसे बहुत बड़ा अपराध हो गया,,, हम गलतफहमी का शिकार हो गए...... सुमित हाथ जोड़े हुए आंखों में आंसू भरे हुए स्वनिका से कह रहा था और वो दरवाजे पर ही पीठ लगाए उदास,रोआसी चुपचाप उसे सुन रही थी।

उसके पिता भी दरवाजे तक आकर इन तीनों को देखकर वहीं खड़े रह गए थे।

.... स्वनिका गलती मेरी थी , मुझे तुम्हारे हाथ से तस्वीर लेकर देख लेना चाहिए था मगर...... स्वनिका हमें क्षमा कर घर चलो 
आइंदा तुमपर कभी अविश्वास नहीं करूंगा,,, "

"बहू तेरी वास्तविक अपराधिनी तो मैं हूं जिसने बिना सच जाने सुमित के मन में शक का बीज डाल दिया,,, जो सजा देनी हो मुझे दे मगर मेरे सुमित के लिए घर चल ....."लगभग रो पड़ी थीं रामेश्वरी देवी और सुमित अपराधबोध से ग्रस्त एक याचक की भांति खड़ा स्वनिका की आंखों में अपने लिए क्षमा के भाव खोज रहा था।

"मां जी,आप बड़ी हैं , क्षमा मांगकर शर्मिंदा न करें ....."स्वनिका हाथ जोड़कर बोली ।

" स्वनिका तुम्हें वापस ले जाने आया हूं, तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊंगा,, चलो ना....."सुमित ने स्वनिका का हाथ पकड़कर कहा।

स्वनिका की आंसुओं की वृष्टि ने सुमित और सास-ससुर की इस गलती को धो दिया था और वो ससुराल जाने के लिए सामान उठाने भीतर चली गई थी......।

समाप्त।
प्रभा मिश्रा 'नूतन '




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मेरी ये कहानी पूर्णतः काल्पनिक है । मैंने इस कहानी में ये बताने का प्रयास किया है कि पति-पत्नी के रिश्ते की नीव विश्वास पर ही टिकी होती है और इस रिश्ते को निभाने के लिए विश्वास करना चाहिए।

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