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भाग -9

7 जून 2022

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तीन दिन नहीं बल्कि पाँच दिन तक मेहमानी का आनन्द लूट कर आज प्रभाकर सिंह उस अद्भुत खोह के बाहर निकले हैं। इन पाँच दिनों के अन्दर उन्होंने क्या-क्या देखा-सुना, किस-किस स्थान की सैर की, किस-किस से मिले-जुले, सो हम यहाँ पर कुछ भी न कहेंगे सिवाय इसके कि वे इंदुमति को बिमला और कला के पास छोड़ गए हैं और इस काम से बहुत प्रसन्न भी हैं। साथ ही इसके यह भी कह देना उचित जान पड़ता है कि अब उनके विचारों में बहुत बड़ा परिवर्तन हो गया है।

दिन पहर भर से कुछ कम बाकी है। प्रभाकर सिंह सिर झुकाए कुछ सोचते हुए पहाड़ के किनारे भूतनाथ की घाटी की तरफ धीरे-धीरे चले जा रहे हैं। वे जानते हैं कि भूतनाथ की घाटी का दरवाजा अब दूर नहीं है तथा उन्हें यह भी गुमान है कि भूतनाथ या गुलाबसिंह ताज्जुब नहीं कि बाहर ही मिल जाएँ। इसलिए वे धीरे-धीरे दम उठाते हैं, इधर-इधर चौकन्ने होकर देखते हैं और कभी-कभी पत्थर की किसी सुन्दर चट्टान पर बैठ जाते हैं।

प्रभाकर सिंह का सोचना बहुत ठीक निकला। वे एक पत्थर की चट्टान पर बैठकर कुछ सोच रहे थे कि भूतनाथ ने उन्हें देख लिया और तेजी के साथ लपक कर इनके पास आया, मगर इन्हें सुस्त और उदास देखकर उसे ताज्जुब और दुःख हुआ क्योंकि जिस तपाक् के साथ वह प्रभाकर सिंह से मिलना चाहता था उस तपाक के साथ प्रभाकर सिंह उससे नहीं मिले, न तो उसका इस्तकबाल किया और न उसे आवभगत के साथ लिया। हाँ, इतना जरूर किया कि भूतनाथ को देख उठ खड़े हुए और एक लंबी साँस लेकर बोले, “बस भूतनाथ! तुमसे मुलाकात हो गई अब केवल गुलाबसिंह से मिलने की अभिलाषा है! इसके बाद फिर कोई भी मुझे प्रभाकर सिंह की सूरत में नहीं देख सकेगा!!”

भूतनाथ : (आश्चर्य से) क्यों-क्यों, सो क्यों?

प्रभाकर सिंह : तुम जानते हो कि इस दुनिया में मेरा कोई भी नहीं है, एक इंदुमति थी सो वह भी ऐसे ठिकाने पहुंच गई, जहाँ कोई भी जाकर उससे मिल भी नहीं सकता।

भूतनाथ : नहीं-नहीं प्रभाकर सिंह, ये शब्द बहादुरों के मुँह से निकलने योग्य नहीं हैं! क्या इंदुमति का कुछ हाल आपको मालूम हुआ?

प्रभाकर सिंह : कुछ क्या बल्कि बहुत।

भूतनाथ : किस रीति से?

प्रभाकर सिंह : आश्चर्यजनक रीति से।

भूतनाथ : किसकी जुबानी?

प्रभाकर सिंह : एक निर्जीव मूरत की जबानी।

भूतनाथ : बस इस पहेली से तो काम नहीं चलता, खुलासा कहिए नहीं तो…

प्रभाकर सिंह : अच्छा बैठो और सुनो।

दोनों बैठ गए और तब भूतनाथ ने प्रभाकर से पूछा-

भूतनाथ : अच्छा अब कहिए कि क्या हुआ और किसी जुबानी आपको इंदमति का हाल मालूम हुआ?

प्रभाकर सिंह : मैं कह चुका हूँ कि एक निर्जीव मूरत की जुबानी मुझे बहुत कुछ हाल मालूम हुआ जिसे सुनकर तुम ताज्जुब करोगे। सुनो और आश्चर्य करो कि तुम्हारे पड़ोस में कैसा एक विचित्र स्थान है! (रुककर) नहीं नहीं, यह मेरी भूल है कि मैं ऐसा कहता हूँ, निःसन्देह उस विचित्र स्थान का हाल सबसे ज्यादा तुम्हीं को मालूम होगा, मैं तो नया मुसाफिर हूँ।

भूतनाथ : आखिर किस स्थान के विषय में आप कह रहे हैं? कुछ समझाइए भी तो।

प्रभाकर सिंह : (हाथ का इशारा करके) बस इसी तरफ थोड़ी ही दूर पर एक शिवालय है जिसके अन्दर शिवजी की नहीं बल्कि किसी तपस्वी ऋषि की मूर्ति है जो कि पूरे आदमी के कद की…

भूतनाथ : हाँ-हाँ ठीक है इस तरफ के जंगली लोग उसे अगस्तमुनि की मूर्ति कहते हैं, खूब लंबी-लंबी जटा है और मूर्ति के आगे एक छोटा-सा कुंड है जिसमें हरदम जल भरा रहता है न मालूम वह जल कहाँ से आता है चाहे जितना भी खर्च करो कम होता ही नहीं। वह स्थान ‘अगस्ताश्रम’ के नाम से पुकारा जाता है।

प्रभाकर सिंह : बस-बस, वही स्थान है।

भूतनाथ : फिर, उससे क्या मतलब?

प्रभाकर सिंह : उसी मूर्ति की जुबानी मुझे कई बातें मालूम होती हैं, तुम्हें तो मालूम ही होगा कि उसमें बात करने की शक्ति है।

भूतनाथ : (दिल्लगी के तौर पर हँसकर) बहुत खासे! यह आपसे किसने कह दिया कि भूतनाथ ऐसा पागल हो गया है कि जो कुछ उसे कहोगे वह विश्वास कर लेगा!

प्रभाकर सिंह : तो क्या मैं गप्प उड़ा रहा हूँ?

भूतनाथ : अगर गप्प नहीं तो दिल्लगी ही सही!

प्रभाकर सिंह : नहीं कदापि नहीं, मुझे आश्चर्य होता है कि तुम यहाँ के रहने वाले होकर उस मूर्ति का हाल कुछ नहीं जानते और यदि मैं कुछ कहता भी हूँ तो दिल्लगी उड़ाते हो! अस्तु जाने दो अब मैं इस विषय में कुछ भी नहीं कहूँगा हाँ, तुम चाहो तो साबित कर दूंगा कि वह मूर्ति बोलती है और त्रिकालदर्शी है। अच्छा जाओ गुलाबसिंह को जल्द भेजो कि मैं उससे मिल कर विदा होऊँ।

भूतनाथ : तो आप मेरे स्थान पर ही क्यों नहीं चलते? उस जगह आपको बहुत आराम मिलेगा, गुलाबसिंह से मुलाकात भी होगी और साथ ही इसके मेरा भ्रम भी दूर हो जाएगा।

प्रभाकर सिंह : नहीं, अब मैं वहाँ न जाऊँगा। मैं उसी शिवालय में चल कर बैठता हूँ तुम गुलाबसिंह को उसी जगह भेज दो मैं मिल लूँगा, बस अब इस विषय में जिद न करो।

भूतनाथ : प्रभाकर सिंह जी, मैं खूब जानता हूँ कि आप क्षत्रिय हैं और सच्चे बहादुर हैं, आपकी वीरता मौरूसी है, खानदानी है, निःसन्देह आपके बड़े लोग जैसे वीर पुरुष होते आए हैं वैसे ही आप भी हैं, मगर आश्चर्य है कि आप मुझे कुछ ऐयारी ढंग की बातें करके धोखे में डालना चाहते हैं…अच्छा-अच्छा,मेरी बातों से यदि आपकी भृकुटी चढ़ती है तो जाने दीजिए, मैं कुछ न कहूँगा, जाता हूँ और गुलाबसिंह को बुलाए लाता हूँ।

इतना कहकर भूतनाथ ने जफील बजाई जिसकी आवाज सुनकर उसके तीन शागिर्द बात-की-बात में वहाँ आ पहुँचे। भूतनाथ उन्हें इशारे में कुछ समझा कर विदा हुआ और अपनी घाटी की तरफ चला गया। प्रभाकर सिंह को मालूम हो गया कि भूतनाथ इन तीनों ऐयारों को मेरी निगरानी के लिए छोड़ गया है।

कुछ सोच-विचारकर प्रभाकर सिंह उठ खड़े हुए और धीरे-धीरे ईशरान कोण की तरफ जाने लगे। एक घड़ी बराबर चले जाने के बाद वह उस शिवालय के पास पहुँचे जिसका जिक्र अभी थोड़ी देर हुई भूतनाथ से कर चुके थे और जिसका नाम भूतनाथ ने अगस्तमुनि का आश्रम बतलाया था।

यह स्थान बहुत ही सुन्दर और सुहावना था और पहाड़ की तराई में कुछ ऊँचे की तरफ बढ़कर बना हुआ था। इस जगह दूर-दूर तक बेल के पेड़ बहुतायत के साथ लगे हुए थे और बेलपत्र की छाया से यह जगह बहुत ठंडी जान पड़ती थी। मंदिर यद्यपि बहुत बड़ा न था मगर एक खूबसूरत छोटी-सी चारदीवारी से घिरा हुआ था। आगे की तरफ एक मामूली सभामंडप और बीच में मूर्ति के आगे एक छोटा-सा कुंड बना हुआ था जिसमें पानी हरदम भरा रहता था। वह कुंड यद्यपि बहुत छोटा अर्थात् डेढ़ हाथ चौड़ा तथा लंबा और उसी अंदाज का गहरा था मगर उसके साफ और निर्मल जल से सैकड़ों आदमियों का काम चल सकता था। किसी पहाड़ी सोते का मुँह उसके अन्दर जरूर था जिसमें से जल बराबर आता और बह कर ऊपर की तरफ से निकलता जाता था। इस कुंड के विषय में लोग तरह-तरह की गप्पें उड़ाया करते थे जिसके लिखने की यहाँ कोई आवश्यकता नहीं।

प्रभाकर सिंह आकर इस मंदिर के सभामंडप में बैठ गए और भूतनाथ तथा गुलाबसिंह का इंतजार करने लगे। उन्होंने देखा कि भूतनाथ के शागिर्द ऐयारों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा है बल्कि इधर-उधर चलते-फिरते दिखाई दे रहे हैं।

संध्या हुआ ही चाहती थी जब गुलाबसिंह को लिए भूतनाथ वहाँ आ पहुँचा जहाँ प्रभाकर सिंह बैठे उन दोनों का इंतजार कर रहे थे। प्रभाकर सिंह को देखकर गुलाबसिंह ने प्रसन्नता प्रकट की और दो-चार मामूली बातचीत के बाद कहा-

“भूतनाथ की जुबानी आपका हाल सुन कर मुझे बड़ा ही आश्चर्य हुआ। आपने भूतनाथ को यह समझाने की कोशिश की थी कि यह अगस्तमुनि की मूर्ति बोलती है और इसकी जुबानी आपको इंदुमति का बहुत कुछ हाल मालूम हुआ है।”

प्रभाकर सिंह : निःसन्देह! मेरा कहना केवल आश्चर्य बढ़ाने के लिए नहीं है बल्कि . इस विषय पर विश्वास दिलाने के लिए है, अब तुम आ गए हो तो अपने कानों से सुन लेना कि मूर्ति क्या कहती है, मुझे यह बात अकस्मात् मालूम हुई। मैं नहीं जानता था कि इस मूर्ति में ऐसे गुण भरे हुए हैं, मगर अफसोस इस बात का है कि यह मूर्ति रोज नहीं बोलती और न हर वक्त किसी के सवाल का जवाब का देती है। इसके बोलने का खास-खास दिन मुकर्रर है जिसका ठीक हाल मुझे मालूम नहीं है मगर इतना मैं जान गया हूँ कि बातचीत करते समय यह मूर्ति अंत में खुद बता देती है कि अब आगे किस दिन और किस समय बोलेगी। इसकी जुबानी सुनकर मैं कहता हूँ कि आज ग्यारह घड़ी रात जाने के बाद यह मूर्ति पुन: बोलेगी और इसके बाद पुन: रविवार के दिन बातचीत करेगी। आह, ईश्वर की लीला का किसी को भी अंत नहीं मिलता! मेरी अक्ल हैरान है और कुछ भी समझ में नहीं आता कि क्या मामला है?

गुलाबसिंह : निःसन्देह यह आश्चर्य की बात है! खैर अब जो कुछ होगा हम लोग देख ही सुन लेंगे परन्तु यह तो बताइए कि आप इस मूर्ति की जुबानी क्या-क्या सुन चुके है?

प्रभाकर सिंह : सो मैं अभी कुछ नहीं कहूँगा, थोड़ी ही देर की तो बात है सब्र करो, समय आना ही चाहता है, जो कुछ पूछना हो खुद इस मूर्ति से पूछ लेना। तब तक मैं जरूरी कामों से निपटकर संध्योपासना में लगता हूँ, अगर उचित समझें तो आप लोग भी निपट लीजिए।

भूतनाथ : मैं आपके लिए खाने-पीने की सामग्री लेता आया हूँ।

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रचनाएँ
भूतनाथ खण्ड -1
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भूतनाथ बाबू देवकीनंदन खत्री का तिलस्मि उपन्यास है। चन्द्रकान्ता सन्तति के एक पात्र को नायक का रूप देकर देवकीनन्दन खत्री जी ने इस उपन्यास की रचना की। किन्तु असामायिक मृत्यु के कारण वे इस उपन्यास के केवल छः भागों लिख पाये उसके बाद के अगले भाग को उनके पुत्र दुर्गाप्रसाद खत्री ने लिख कर पूरा किया।
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भाग -1

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मेरे पिता ने तो मेरा नाम गदाधर सिंह रखा था और बहुत दिनों तक मैं इसी नाम से प्रसिद्ध भी था परन्तु समय पड़ने पर मैंने अपना नाम भूतनाथ रख लिया था और इस समय यही नाम बहुत प्रसिद्ध हो रहा है। आज मैं श्रीमान

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भाग -2

7 जून 2022
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प्रभाकर सिंह पीछे-पीछे चले आते थे, यकायक कैसे और कहाँ गायब हो गये? क्या उस सुरंग में कोई दुश्मन छिपा हुआ था जिसने उन्हें पकड़ लिया? या उन्होंने खुद हमें धोखा देकर हमारा साथ छोड़ दिया? इत्यादि तरह-तरह

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भाग -3

7 जून 2022
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बेचारी इंदुमति बड़े ही संकट में पड़ गई है। प्रभाकर सिंह का इस तरह यकायक गायब हो जाना उसके लिए बड़ा ही दुःखदायी हुआ इस समय उसके आगे दुनिया अंधकार हो रही है। उसे कहीं भी किसी तरह का सहारा नहीं सूझता। उस

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भाग -4

7 जून 2022
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अब हम यहाँ पर कुछ हाल प्रभाकर सिंह का लिखना जरूरी समझते हैं। पहिले बयान में हम लिख आए हैं कि ‘प्रभाकर सिंह इंदुमति और गुलाबसिंह को लेकर भूतनाथ अपनी घाटी में गया तो रास्ते में सुरंग के अन्दर से यकायक प

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भाग -5

7 जून 2022
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संध्या का समय था जब नकली प्रभाकर सिंह इंदुमति को बहका कर और धोखा देकर भूतनाथ की विचित्र घाटी से उसी सुरंग की राह ले भागा जिधर से वे लोग गए थे। उस समय इंदुमति की वैसी ही सूरत थी जैसी कि हम पहिले बयान म

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भाग -6

7 जून 2022
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जब इंदु होश में आई और उसने आँखें खोलीं तो अपने को एक सुन्दर मसहरी पर पड़े पाया और मय सामान कई लौडियों की खिदमत के लिए हाजिर देखकर ताज्जुब करने लगी। आँख खुलने पर इंदु ने एक ऐसी औरत को भी अपने सामने इज

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भाग -7

7 जून 2022
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प्रभाकर सिंह को इस घाटी में आए यद्यपि आज लगभग एक सप्ताह हो गया मगर दिली तकलीफ के सिवाय और किसी बात की उन्हें तकलीफ नहीं हुई। नहाने-धोने, खाने-पीने, सोने-पहिरने इत्यादि सभी तरह का आराम था परन्तु इंदु क

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भाग - 8

7 जून 2022
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आज प्रभाकर सिंह उस छोटी-सी गुफा के बाहर आए हैं और साधारण रीति पर वे प्रसन्न मालूम होते हैं। हम यह नहीं कह सकते कि वे इतने दिनों तक निराहार या भूखे रह गए होंगे क्योंकि उनके चेहरे से किसी तरह की कमजोरी

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भाग -9

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तीन दिन नहीं बल्कि पाँच दिन तक मेहमानी का आनन्द लूट कर आज प्रभाकर सिंह उस अद्भुत खोह के बाहर निकले हैं। इन पाँच दिनों के अन्दर उन्होंने क्या-क्या देखा-सुना, किस-किस स्थान की सैर की, किस-किस से मिले-जु

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भाग - 10

7 जून 2022
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रात लगभग ग्यारह घड़ी के जा चुकी है। भूतनाथ, गुलाबसिंह और प्रभाकर सिंह उत्कंठा के साथ उस (अगस्तमुनि की) मूर्ति की तरफ देख रहे हैं। एक आले पर मोमबत्ती जल रही है जिसकी रोशनी से उस मंदिर के अन्दर की सभी च

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भाग -11

7 जून 2022
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ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन उसी अगस्ताश्रम के पास आधी रात के समय हम एक आदमी को टहलते हुए देखते हैं। हम नहीं कह सकते कि यह कौन तथा किस रंग-ढंग का आदमी है, हाँ, इसके कद की ऊँचाई से साफ मालूम होता है कि

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भाग - 12

7 जून 2022
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दिन पहर-भर से ज्यादा चढ़ चुका था जब भूतनाथ की बेहोशी दूर हुई और वह चैतन्य होकर ताज्जुब के साथ चारों तरफ निगाहें दौड़ाने लगा। उसने अपने को एक ऐसा कैदखाने में पाया जिसमें से उसकी हिम्मत और जवाँमर्दी उसे

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भाग -13

7 जून 2022
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रात आधी से ज्यादा बीत जाने पर भी कला, बिमला और इंदुमति की आँखों में नींद नहीं है। न मालूम किस गंभीर विषय पर ये तीनों विचार कर रही हैं! संभव है कि भूतनाथ के विषय ही में कुछ विचार कर रही हों, अस्तु जो क

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