गली तो चारों बंद हु हैं मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय॥
ऊंची-नीची राह रपटली पांव नहीं ठहराय।
सोच सोच पग धरूं जतन से बार-बार डिग जाय॥
ऊंचा नीचां महल पिया का म्हांसूं चढ्यो न जाय।
पिया दूर पथ म्हारो झीणो सुरत झकोला खाय॥
कोस कोस पर पहरा बैठया पैग पैग बटमार।
हे बिधना कैसी रच दीनी दूर बसायो लाय॥
मीरा के प्रभु गिरधर नागर सतगुरु द बताय।
जुगन-जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाय॥