म्हारा ओलगिया घर आया जी।
तन की ताप मिटी सुख पाया, हिल मिल मंगल गाया जी॥
घन की धुनि सुनि मोर मगन भया, यूं मेरे आनंद छाया जी।
मग्न भई मिल प्रभु अपणा सूं, भौका दरद मिटाया जी॥
चंद कूं निरखि कमोदणि फूलैं, हरषि भया मेरे काया जी।
रग रग सीतल भई मेरी सजनी, हरि मेरे महल सिधायाजी॥
सब भगतन का कारज कीन्हा, सोई प्रभु मैं पाया जी।
मीरा बिरहणि सीतल होई दुख दंद दूर नसाया जी॥