भोलानाथ दिंगबर ये दुःख मेरा हरोरे॥ध्रु०॥
शीतल चंदन बेल पतरवा मस्तक गंगा धरीरे॥१॥
अर्धांगी गौरी पुत्र गजानन चंद्रकी रेख धरीरे॥२॥
शिव शंकरके तीन नेत्र है अद्भूत रूप धरोरे॥३॥
आसन मार सिंहासन बैठे शांत समाधी धरोरे॥४॥
मीरा कहे प्रभुका जस गांवत शिवजीके पैयां परोरे॥५॥