ईश्वर की माया
तेरी इस दुनिया में ये मंजर क्यूँ हैं कहीं ज़ख़म तो कहीं खंजर क्यूँ हैं सुना है की तू हर जर्रे में रेहता हैतो फिर जमीन पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ हैं जब रहने वाले इस दुनिया के तेरे ही बंदे हैंतो फिर कोई किसी का दोस्त और कोई किसी का दुश्मन क्यूँ हैं तू ही लिखता है सब लोगों का मुकद्दर तू ही लिखता ह