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टेक्नोलोजी, एक सेवक और एक मित्र

8 अगस्त 2015

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टेक्नोलोजी, क्या है? आज हम लगभग सभी से सुनते है, टेक्नोलोजी ने ये किया, टेक्नोलोजी ने वह किया? और हम आपस में ही बात करते हैं, अरे भाई, टेक्नोलोजी ने हमें तो बहुत ही फायदा पहुंचाया है. आखिर कैसे? ये टेक्नोलोजी है क्या? क्या यह कोई जादू है? क्या कोई परी या जिन्न के हाथों से निकला हुआ कोई कारनामा है? जो आया और इसने हमारी ज़िंदगी बदल दी. ऐसा तो हुआ नहीं. तो फिर टेक्नोलोजी ने कैसे हमारे जीवन में बदलाव की आंधी ला दी? कुछ तो हुआ ही है, टेक्नोलोजी ने हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित तो किया ही है. टेक्नोलोजी सतत अविष्कारों की श्रंखला का परिणाम है. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है. जैसे जैसे मानव सभ्यता के नए नए सोपानों पर विजय पाता गया, वह टेक्नोलोजी के और नज़दीक होता गया. पहले हम गर्मियों में मौसम की मार झेलने के लिए मजबूर होते थे, लेकिन अब हम क्या करते हैं, बिजली के आने के बाद? पंखा खोलते हैं, कूलर चलाते हैं और अब अधिकतर घरों में एसी भी है, जो हम प्रयोग करते हैं. और ये मौसम की क्रूरता को मात देते हुए हमें ठंडक का आभास देते हैं. ऐसे ही हम यात्रा का उदाहरण लेते हैं, पहले घोडागाडी, बैलगाड़ी, आदि से सफर होता था और शादी ब्याह केवल आस पास में ही तय कर दिया जाता था, इसलिए नहीं कि बिरादरी या क्षेत्र विशेष का मान था कुछ, बल्कि इसलिए कि घोड़ा गाडी से तीन चार दिन का सफर तय कौन करेगा? आज देखिये, इटावा के किसी कोने के गाँव की बिटिया भी लन्दन भी ब्याही जाती है? क्यों और कैसे ये जादू हुआ? ये जादू इसीलिए हुआ कि हमारे पास टेक्नोलोजी आई, पहियों का विकास होने के चरण से जो एक प्रक्रिया आरम्भ हुई, वह आज देखिये कहाँ तक पहुँची है कि आप कुछ ही घंटो में लखनऊ से अमेरिका जा सकते हैं. आज आपके सपने केवल इसका मोहताज़ नहीं है कि हमारे पास साधन नहीं है. हमारे पास साधन है, हम सशक्त है और हमें इस बारे में सशक्त करती है तकनीक. यानि विविध क्षेत्रों में एक चरणबद्धविकास की प्रक्रिया. हमें कुछ आवश्यकता होती है तो हमारे मस्तिष्क में उसके अनुसार एक विचार आता है, कि ऐसा होना चाहिए, फिर उस विचार का विकास होता है और फिर उसके निर्माण की प्रक्रिया होती है, यह एक चरण हुआ. लेकिन टेक्नोलोजी का अर्थ ही है, सतत प्रक्रिया. और इसी सतत प्रक्रिया से ही हमे और आपको वह लाभ मिल पाता है, जो हम चाहते हैं. अगर हम चाहते हैं, शुद्ध पानी पीना, तो सबसे पहले हम उसे उबालकर ठंडा करके पीते थे, उसके बाद नल में फिल्टर की प्रक्रिया का चरण आया और उसके बाद शायद आरओ, का और मशीनी फिल्टर का. टेक्नोलोजी हमारी सेवक और मित्र तभी तक हो सकती है जब हमें वह आराम पहुंचाए. अगर वह हमारे लिए कष्टकारक है तो ऐसी टेक्नोलोजी का कोई लाभ नहीं, कंप्यूटर के आने से हम सबकी ज़िंदगी में जितना आराम आया है उतना तो शायद कभी हमने कल्पना भी नहीं की होगी. अब देखिये, पहले हम बड़ी बड़ी हीरोइनों के स्टाइल वाली साड़ी केवल टीवी पर देखकर ही दिल मारकर देखकर बैठ जाते थे. और सोचते ही थे, अरे “दीदी तेरा देवर दीवाना” वाली साड़ी हम भी खरीद पाते? होता था न? पर आज? ऐसा होता है? पिछले महीने कोई फ़िल्म रिलीज़ होती है और उसमें जो ड्रेस हीरोइन पहनती है वह हमें इंटरनेट पर मिल जाती है. और हम खरीद लेते हैं. फिर चाहे वह तपस्या छाप साड़ी हो या फिर सिमर की साड़ी. बालिका वधु में आनंदी के द्वारा पहने हुए गहने हों या फिर सरहद पार के ज़िंदगी चैनल में पहने जा रहे सूट. इंटरनेट पर सब उपलब्ध है, जी खोलकर आप खरीद सकते हैं. तो देखा टेक्नोलोजी ने कैसे आपके फैशन के पैशन को शांत किया है. आइये हम ज़रा एक क्रियाकलाप करें. हमने अभी टेक्नोलोजी के लाभों पर इतनी बातें की है, तो हम अब अपनी थोड़ी सी बुद्धि का प्रयोग करके देखते हैं कि आखिर केवल शिक्षा के ही क्षेत्र में टेक्नोलोजी ने हमें क्या क्या दिया है? टेक्नोलोजी ने आज से दस साल पहले की शिक्षा के मुकाबले में आज के शिक्षा जगत में क्या बदलाव किए है, उनके बारे में आप लोग कम से कम दस बिन्दुओं को लिखें और फिर हम मिलकर उन्हें देखते हुए आंकलन करेंगे कि क्या वाकई में शिक्षा जगत में ये क्रांतिकारी बदलाव आए हैं और क्या क्या हो सकता है? शिक्षा जगत में आज शिक्षा अधिक व्यावहारिक हो गयी है, आज बच्चा रटने के स्थान पर विविध तरीकों से सीखने के लिए जोर देता है, बच्चे के दिमाग का विस्तार संभवतया अधिक वैज्ञानिक पद्धति से हो रहा है. आज हम देखते हैं कि बच्चे शुरू से ही एक तार्किक पद्धति से अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. आज युवाओं के समक्ष इतने नए नए क्षेत्र शिक्षा के क्षेत्र में आ रहे हैं कि उसे केवल कुछ चुनिन्दा क्षेत्रों में ही अपना कैरियर बनाने की चिंता नहीं है, बल्कि उनके सामने एक खुला हुआ आकाश है, जिसमें वह अपनी संभावनाओं का विस्तार कर सकता है. साहित्य के क्षेत्र में टेक्नोलोजी हमारी मित्र बनकर उभरी है. आज बिहार के किसी कोने में बैठे हुए कवी को अपनी रचना केवल एक सोशल साईट पर अपलोड करनी होती है और वह अगर किसी एक दिल को छूती है तो वह रचना एकदम कालजई रचना बनकर उभरती है, कई वेबसाइट्स है जो रचनात्मकता को बढ़ावा देती हैं. आज हमारे सामने कई ऐसे रचनाकार आ रहे है, जिन्हें शायद कविता के व्याकरण की समझ नहीं है, पर वे लिखना जानते हैं, वे जानते हैं कि कैसे एक टूटे हुए दिल को जोड़ा जाए, और उनके पास शब्द है, आज कई लोग नए शब्द गढ़ रहे हैं, तो आखिर कैसे? टेक्नोलोजी के ही कारण न, हम तसलीमा नसरीन को भी उतने चाव से पढ़ पा रहे हैं जितने चाव से हम गुनाहों का देवता पढ़ते थे, आज हमारे ग्रंथों के हर भाषा में नित नए अनुवाद हो रहे हैं और हमें पता भी चल रहे हैं, तो ये केवल टेक्नोलोजी का ही कमाल है. तो हम देखते हैं कि टेक्नोलोजी ने हमारी ज़िंदगी को किस प्रकार प्रभावित किया है? वह एक सेवक और मित्र बनकर उभर कर आई है, लेकिन उसे सेवक और मित्र बनाए रखना केवल और केवल व्यक्ति विशेष पर अर्थात हम पर निर्भर करता है. अगर हमारे पास रचनाधर्मिता टेक्नोलोजी पहुंचा रही है तो हमारे पास कट्टरपन भी यही टेक्नोलोजी पहुंचा रही है. हमारे पास अगर फैशन स्टेटमेंट आ रहे हैं तो हमारे पास अश्लीलता भी आ रही है. मित्रता और शत्रुता के बीच में बहुत ही झीनी रेखा है, जिसे हमें समझना है, और हमें ये खुद ही निर्धारित करना है कि टेक्नोलोजी हमारी सेवक बने न कि हम टेक्नोलोजी के गुलाम बन जाएं. आज माँ whatsapp में व्यस्त रहती है और बच्चे रोते रहते हैं, हम पूरी पूरी रात सो नहीं पे है, फेसबुक की लत के कारण, और इसका नतीजा काम में देरी, और बच्चो की पिटाई या पति से लड़ाई. तो आइये टेक्नोलोजी को अपना सेवक और मित्र बनाएं जो हमारे कठिन समय में हमारा साथ दे, न कि हमारे समय को ही कठिन बना दे
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टेक्नोलोजी, एक सेवक और एक मित्र

8 अगस्त 2015
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टेक्नोलोजी, क्या है? आज हम लगभग सभी से सुनते है, टेक्नोलोजी ने ये किया, टेक्नोलोजी ने वह किया? और हम आपस में ही बात करते हैं, अरे भाई, टेक्नोलोजी ने हमें तो बहुत ही फायदा पहुंचाया है. आखिर कैसे? ये टेक्नोलोजी है क्या? क्या यह कोई जादू है? क्या कोई परी या जिन्न के हाथों से निकला हुआ कोई कारनामा है? ज

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पवित्रता और अपवित्रता का फलसफा

8 अगस्त 2015
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होली अभी बीती है. होली के आते ही मेरे ज़ेहन में कई बरस पहले की एक घटना एकदम से जैसे सामने से आ जाती है। वह होली थी, मैं शायद 9 बरस की रही होऊँगी। शहर में हमारा मोहल्ला होली की सुबह से ही गुलज़ार हो जाया करता था। बच्चों की टोली कहीं जाती, बैठकों में कांजी बड़ा, गुझिया, मूंग की दाल की गुझिया आदि की प्लेट

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