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गांधी

31 जनवरी 2015

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0 जनवरी - स्वर्गीय मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या की वर्षगांठ पर , मुझे लगता है की मेरे बचपन से अब तक जो उलझने थीं और स्वर्गीय गांधी से मेरे प्रश्न थे , कागज़ पर उतारने के लिए ये एक अच्छा दिन है !!!!!! मुझे विश्वास है की आधुनिक भारत के कथित रूप से सर्वमान्य , प्रभावशाली और अहिंसक मानव होने के बावजूद आपकी वजह से और आपके साथ के लोग के दुस्साहस और अपराध से इस हजारों वर्ष पुराने देश के ढांचे को जो नुकसान पहुंचा है उसके दोषी सिर्फ आप हैं ! आपके दक्षिण अफ्रीका में हुए आंदोलन ने भारतीयों को गर्व करने का अवसर दिया था , क्योंकि घर और विदेश दोनों ही जगह शिक्षा और रंग की वजह से इन्हे दुत्कारा जाना आम हो गया था अंग्रेजों को झुकाने के आपके अहिंसक प्रयास को दुनिया भर में सराहा और स्वीकारा गया , इसी स्वीकार्यता का इतना दुरूपयोग हुआ जिसने देश की क्षेत्र रेखाएं और सीमाएँ बदल दीं, 1880 से शुरू हुआ ये दुरूपयोग 1948 तक चला ! स्वार्थों और गलत फैसलों का ऐसा घालमेल हुआ की इन बातों के सिरे पकड़ने मुश्किल हो गए कुछ ही सालों में ! इतनी गलतफहमियां फैलीं जो अफवाहों की तरफ थी , अंग्रेज ये मानते थे आप भारत में हो रहे सशस्त्र आंदोलन वालों की तरफ हो और दर्जनों क्रन्तिकारी जब फांसी चढ़ने वाले थे तो पूरा देश ये सोच रहा था की आप दो शब्द कहें तो ये नौजवान असमय न मरें !पर आपने न अंग्रेजों का भ्रम तोडा और क्रन्तिकारी तो बेचारे टांग ही दिए गए , सच क्या था ये तो आपके साथ ही चला गया पर मैं समझता हूँ आप कभी किसी निश्चय पर पहुँच ही नहीं पाये , आप बैरिस्टर थे पर राजनैतिक रूप से आप अक्षम थे और दूरदृष्टि का अभाव साफ़ दीखता था,जहाँ तक लिखित साक्षय बताते हैं उनके अनुसार आप एक अवज्ञयाकारी थे जिसे किसी एक कार्य में मिली सफलता को भुनाने का मौका बार बार मिला और बढ़ती उम्र के साथ आपकी सुधारों की मार्केटिंग बढ़ती गयी और लोगों ने यही म!न! की एक बुजुर्ग जो सिर्फ धोती में रहता है उसका अपना क्या स्वार्थ हो सकता है ? वर्ना आप दोनों विश्व युद्धों में भारतीय सैनिक भेजने के लिए पूरे देश की तरफ से हाँ कदापि न कहते , वाइसरॉय का बुलावा आते ही आपने एक वक्तव्य जारी किया " अगर हमें अपने देश की रक्षा करनी है तो हमें उन शास्त्रों का प्रयोग सीखना होगा जो अंग्रेजी सेना के पास है , क्या बजाय इसके आप उन युवाओं को संगठित होने में सहायता नहीं कर सकते थे जो अपने देश के लिए अपनी जान की परवाह किये बिना इतनी बड़ी सशस्त्र सेना से लड़ रहे थे , लाखों स्वतंत्र सेनानी मारे गए पर आपने उन से कभी अपना जुड़ाव या संवेदना नहीं दिखाई यह उस स्वीकार्यता के दुरूपयोग का प्रमाण है जो आपको अफ्रीकन आंदोलन के कारण मिली थी !! , आपके प्रयोग और आपके द्वारा दिए गए वचन, ये भारत से बड़े हो गए और इस देश का भाग्य भी ! 1900 से 1948 तक आप ही भारत के नीति और भाग्य निर्माता रहे , आपको सत्य के प्रयोग करने हैं और पूरे भारत की जनता जिन महानुभावों से फैसलों की उम्मीद कर रही है वो तो आपका आमरण अनशन निपटाने में व्यस्त हैं, बंगाल में सूखा और अकाल पड़ता है लोग मरते हैं , अंग्रेज सरकार कुछ करती भी तो आप अपने अमेरिकन पत्रकार मित्र के साथ जा कर उनकी पूँछ पर पैर रख देते हैं वो और कुपित हो जाते हैं, पर इसका उत्तर आपसे कौन मांगे आप तो इस समय तक कथित महात्मा घोषित हो चुके थे ! कैसे और क्यों कोई नहीं बता सकता ! अगर ये प्रश्न नेहरू से भी पूछे जाएँ तो वो आएं बाएं शाएं कहते ! अंग्रेजों ने हर समय आपको आपकी सीमायें दिखाई पर आप उन संकेतों को समझ नहीं पाये , 1932 में गांधी - इरविन पैक्ट के लिए आपको लन्दन ले जाया गया हर जगह साफ लिखा है की आप भारतीय नेशनल कांग्रेस के एकमात्र अधिकृत व्यक्ति बन कर गए ! क्यों? क्या कांग्रेस ही भारत की जनता की प्रतिनिधि थी ? इस बात का फैसला आज तक नहीं हो सका , आपने बजाय ये सवाल करने के कि इसमें दूसरे दल/ विचारधारा वाले लोग भी शामिल हैं या नहीं आपने भी कांग्रेस को भारत मान लिया , आप विफल रहे, लन्दन में अंग्रेजों ने वही किया जो वो पहले से सोचे बैठे थे , विश्व युद्ध में भारतीयों को इस्तेमाल करने के बाद आपको सात समुन्दर पार बुला कर आपको जवाब दिया , अदूरदर्शिता की पराकाष्ठा 7 वर्षों बाद आई दुसरे विश्व युद्ध के लिए 1939 में आप फिर भारतीय सैनिकों की बलि चढाने को तैयार हो गए पर इस बार पूरी कांग्रेस ही आपके विरुद्ध हो गयी और पूरी कार्यकारिणी ने पद से इस्तीफ़ा दिया तब आपको कड़ी भाषा में अंग्रेजों से बात करनी पड़ी, अगर पटेल और दूसरे लोग न अड़ते तो इस बार भी भारतीय बर्लिन जाते ! आपने शिक्षित होते हुए भी एक तरह से उस समय के भारत को अशिक्षा की तरफ धकेला दूसरों के विचारों हथियाये और वो भी पूरे ठसके के साथ , जो लोग आपको छुआछूत विरोधी और विधवा विवाह की शुरुआत करने वाला मानते हैं उन्हें राजा राम मोहन राय , ईश्वरचंद्र विद्यासागर स्वामी विवेकानंद के नाम बताये जाने चाहिए , ये आपके द्वारा फैलाई गयी अशिक्षा है ! 1908 में लिखी आपकी पहली पुस्तक " हिन्द स्वराज " में आपने अपना विज़न देश पर थोपा ये भी दूसरों के ही विचार थे क्योंकि महिलाओं को संपत्ति में हिस्सा न मिलना , विधवाओं को सती होने पर विवश करना , भूमिहीन किसानों का जमींदारों के दमन पूरे समाज में स्वीकृत था , सिर्फ स्वर्ण ही काम धंधा कर सकते थे , पूजा अनुष्ठान सिर्फ ब्राह्मणों कर सकते थे मैला उठाने वालों का जीवन नरक था हिन्दू धर्म की इन कुरीतियों से सब परिचित थे और 1780 के आस पास से उनका विरोध और दूर करने की सामाजिक प्रक्रिया शुरू हो गयी थी पर दुखदायी ये की इन शुऱुआतों का श्रेय आपको मिला , बाकि सारे लोग जिन्होंने इनके प्रयास किये वो नेपथ्य में खो गए ! आपने एक महान भूल की जो आपके एक साधारण सुधारक होने का सूचक है , आपने अपने कथित और भ्रमित दिशाहीन महात्मा और बापू होने का एक ऐसा अनुचित फायदा उठाया जिसका नुकसान ये देश आज तक उठा रहा है और शायद हमेशा उठाएगा , आपने इस देश के विभाजन का मसौदा तैयार किया जो की गलत तरीके से हुआ ! आप अंग्रेजों की तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की नक़ल करते करते एक ऐसे रास्ते पर चले गए जहाँ से वापसी संभव ही नहीं थी , हिन्दुओं और मुस्लिमों बीच दंगे और लड़ाइयां 1750 से ही चल रहे थे , आपने दोनों लोगों को इक्कठा रखने के नाम पर जिन्ना और सर सय्यद के सपनों के लिए ज़मीन तैयार करनी शुरू की , ये दोनों आपको ये समझने में सफल रहे कि पाकिस्तान में दोनों धर्म सुरक्षित रहेंगे जबकि उनकी ये मंशा कभी भी नहीं थी , आपने धर्मनिरपेक्ष भारत का सपना जिन्ना के शब्दों से देखा , वो जिन्ना जिन्होंने कभी धर्मनिरपेक्ष पाकिस्तान का कभी डिजाइन नहीं सोचा , ये झूठ सिर्फ आपको बरगलाने के लिए बोला गया, इसका मैं प्रमाण 1942 में कलकत्ता में हुए डायरेक्ट एक्शन डे में हुए नरसंहार के जिन्ना के एक इशारे पर रुकने और सुहरावर्दी के माफ़ी मांगने से दे सकता हूँ , यहाँ जिन्ना आपको इस बात से डराने में सफल रहे की अगर पाकिस्तान नहीं बना तो गृह युद्ध चलता रहेगा और आप ने घुटने टेक दिए , जहाँ तक भारतीय खेमे की बात है तो पता नहीं कैसे नेहरू अघोषित प्रधानमंत्री बन चुके थे , ऐसा लगता है की इतने बड़े देश के सारे क्रिया कलाप लुटियंस में हो रहे थे , किसी को भी पंजाब सिंध बलूचिस्तान में मारे जा रहे निर्दोषों का ख़याल तक नहीं था ! आपने अपनी जिदों में इस देश का भविष्य तक बिगड़ने का ख्याल नहीं किया , जब ये बातें हुई की धर्म आधारित देश बन रहें हैं तो स्थानांतरण पूरी तरह हो जाये तो आपने अपने मरने का डर दिखा दिया ये उस अफ़्रीकी आंदोलन में मिली स्वीकार्यता का घटिया दर्जे का फायदा उठाना था , पाकिस्तान अपने पूरे स्वरुप में आ गया भारत का स्वरुप और भविष्य बिगाड़ कर ! अभी तो हद होना बाकी था , आपको भारत की अर्थव्यवस्था और पैसे के बारे में सब कुछ पता होते हुए भी आपने उस नए देश का अनुचित और पापपूर्ण पक्ष लिया , जब पाकिस्तान हमारे कश्मीरी पर आक्रामक हो रहा था, आप उपवास पर बैठ गए थे कि भारत पाकिस्तान को अविभाजित देश के ख़जाने से उसका हिस्सा, पचपन करोड़ रुपये देने का अपना वादा पूरा करे. यह किसी भी दृष्टि से उस देश के भविष्य के लिए ठीक नहीं था ! ये सारी बातें आपकी एक साधारण और कमजोर मनुषय होने की तरफ संकेत हैं, आपके बारे में पूरी जानकारी पढ़ने और समझने के उपरांत मेरे विचार से आपको एक मनोरोगी की श्रेणी में रखा जा सकता है ,आप के 71 वर्षीय पोते राजमोहन गांधी ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है कि अपनी विवेकबुद्धि के लिए प्रख्यात गांधी विवाहित और चार संतानों के पिता होने के बावजूद भी सरलादेवी के प्रेम में पड़ गए थे। इतना ही नहीं, वे सरला से शादी करने के लिए भी तैयार हो गए थे। सरलादेवी गांधी की पत्नी कस्तूरबा की तुलना में काफी प्रतिभाशाली और बुद्धिमान थीं और वे स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थीं।परिवार और राष्ट्रहित के लिए उन पर भी गांधी से संबंधों पर पूर्ण विराम लगाने का दबाव डाला गया। राजमोहन के अनुसार गांधीजी का यह प्रेम प्रकरण सीक्रेट नहीं था, बल्कि यह बात दोनों परिवारों में सबको मालूम थी। आपके द्वारा किये प्रयोग यदि आज के समय किये गए होते तो मैं कह सकता हूँ की आप दिल्ली या साबरमती की किसी जेल में आसाराम बापू के साथ होते, आप अपने ब्रह्मचर्य की परीक्षा लेने के लिए सुशीला नायर और टीनएज मनु तथा आभा के साथ सह-स्नान और नग्न होकर सोने के प्रयोग भी किया करते थे। आप के ये प्रयोग भारी विवाद का मुद्दा भी बने थे ! इसे लेकर आश्रमवासियों और उनके परिवारजनों ने नाराजगी भी प्रकट की थी याद रहे मनु और आभा आपकी मानस पुत्रियां या गोद ली हुई बेटियां थीं , इन सब बातों के प्रकाश में आपको महात्मा , राष्ट्रपिता और बापू कैसे कहा जा सकता है ये मेरी बुद्धि में नहीं आता ! नाथूराम गोडसे के बिना इस बात को पूरा नहीं किया जा सकता , उनके हाथों से ट्रिगर सिर्फ इतना सोच कर ही दब गया होगा की अगर आप जीवित रहे तो अपनी असाधारण स्थिति का लाभ उठाते हुए भारत सरकार को आप कहां -कहां मजबूर करतें कि वह राष्ट्रहित के ख़िलाफ़ फ़ैसला करे. आखिर सरकार आपके शिष्यों की ही थी!
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अभी की बात

27 जनवरी 2015
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थोड़ा कठिन है कांग्रेस के लिए ये स्वीकार करना कि सोनिया गांधी के १० जनपथ के अंदरुनी सिस्टम , भाषणों के रचनाकार राजगुरु और पार्टी लाइन या विचारधारा की कट्टर वकालत करने वाले जनार्दन दिवेदी ने किसी इंटरव्यू में नरेंद्र मोदी को भारतीयता का सम्पूर्ण सिम्बल कहा ! इस बात को दिग्विजय सिंह कहते तो मैं ये मानत

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अराजक केजरीवाल !!!

27 जनवरी 2015
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मेरे एक मित्र ने टिप्पणी की शायद किरण बेदी ये सोचती हैं की केजरीवाल से बहस सिवाय तमाशे के कुछ नहीं होगी शायद इससे लोकतंत्र को अधिक मजबूती मिलती !अरविंद केजरीवाल ईमानदार नागरिक हैं इसमें कोई शक नहीं , पर अगर आप उनके इतिहास पर निगाह डालें तो उनकी ईमानदारी समय के साथ नकली होती चली गयी सी लगती हैं , उनक

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दिशाहीन समाज !!

27 जनवरी 2015
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मेरी हर दूसरे दिन किसी भारतीय पर्टयक से बहस होती है , अंत या तो कुतर्क से होता है या चुप्पी से , बात राजनीती से शुरू होती है और ख़त्म होती है समाज पर आ कर ! अब मोदी आ गया है सुधार तो पक्का होगा जी !!!! मैं पूछता हूँ ,कैसे साहब ? रिशवत तो आप और मैं लेते और देते हैं , यातायात के नियम हम तोड़ते हैं मोदी

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गांधी

31 जनवरी 2015
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0 जनवरी - स्वर्गीय मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या की वर्षगांठ पर , मुझे लगता है की मेरे बचपन से अब तक जो उलझने थीं और स्वर्गीय गांधी से मेरे प्रश्न थे , कागज़ पर उतारने के लिए ये एक अच्छा दिन है !!!!!! मुझे विश्वास है की आधुनिक भारत के कथित रूप से सर्वमान्य , प्रभावशाली और अहिंसक मानव होने के बावजूद आ

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