पॉलिटिकल पार्टियां भले ही अपने नारे बदलती रहें लेकिन गर्मी में दिल्ली कुछ इलाकों का एक ही नारा हैं 'हर हाथ बाल्टी हर हाथ पाइप'. चौकिंए नहीं, यही नारा है जिसे राजधानी हर गर्मी में सुबह से शाम तक जीती है.
सुबह होते ही सड़क रसोई में बदल जाती है. सारे बर्तन बाहर और इंतजार होता हैं पानी के दूत जलदूत का, जो आए और खाली बर्तनों में जीवन भर जाए. क्योंकि कहते हैं ना जल ही जीवन है. पानी का टैंकर आया तो ऑक्टोपस मे तब्दील हो गया. इसकी पाइप चारों तरफ फैल गई. और फिर शुरू होती है पानी भरने की होड़.
पानी भरना सीखे बच्चे
संजय कॉलोनी में रहने वाली सपना नवीं क्लास में पढ़ती हैं पढ़ाई में नहीं लेकिन पानी की लड़ाई मे अव्वल हैं. वो बताती हैं कि अभ्यास करते-करते इसे मालूम चल गया हैं कि कहां पोजिशन लेनी हैं, और कैसे सबको धता बताते हुए अपने बर्तनों को पानी खत्म होने से पहले जलमग्न कर लेना है.
पानी के लिए होती हैं लड़ाइयां
गोविंद पुरी की संजय कॉलोनी में पानी की जरूरत बस इन टैंकरों से पूरी होती है या यूं कहिए दिल्ली के एक बहुत बड़े हिस्से की यही हालत हैं. पानी की किल्लत ऐसी की मामूली लड़ाई-झगड़े चोट तो क्या मर्डर तक हो चुके हैं पानी की इस लड़ाई में.
अर्से से नहीं बदली दशा
दिल्ली की वो अनाधिकृत कॉलोनिया जहां पानी की पाइपलाइन नहीं है वहां टैंकर के भरोसे ही जीवन कट रहा है. जहां जल बोर्ड के टैंकर नही आ पाते वहां प्राइवेट टैंकर पैसा कमाते हैं. सदर बाजार प्रियदर्शिनी बस्ती, संगम विहार, तिगड़ी कॉलोनी, बदरपुर, ओखला, मदनपुर खादर, परमानंद कॉलोनी समेत तमाम कॉलोनी हैं, जहां अर्से से दशा नहीं बदली. अनुमान के मुताबिक दिल्ली को रोजाना 1200 एमजीडी यानी मिलियन गैलेन पानी की दरकार होती हैं, जबकि महज 960 एमजीडी ही मिल पाता हैं.
हरियाणा के भरोसे लातूर पानी भेजने को तैयार दिल्ली सरकार को ये कॉलोनिया रोज याद करती हैं. हर गर्मी का ये ही हाल है. पार्षद-विधायक बदलते रहते हैं, लेकिन दिल्ली के इन इलाकों की दशा नहीं बदलती.