बद्ध!
हृत वह शक्ति किये थी जो लड़ मरने को सन्नद्ध!
हृत इन लौह शृंखलाओं में घिर कर,
पैरों की उद्धत गति आगे ही बढऩे को तत्पर;
व्यर्थ हुआ यह आज निहत्थे हाथों ही से वार
खंडित जो कर सकता वह जगव्यापी अत्याचार,
निष्फल इन प्राचीरों की जड़ता के आगे
आँखों की वह दृप्त पुकार कि मृत भी सहसा जागे!