बात है:
चुकती रहेगी
एक दिन चुक जाएगी ही — बात ।
जब चुक चले तब
उस विन्दु पर ! < विन्दु ही है इसे बिन्दु न करें, विन्दु का मतलब भी यही होता है
जो मैं बचूँ
(मैं बचूँगा ही !)
उस को मैं कहूँ
इस मोह में अब और कब तक रहूँ ?
चुक रहा हूँ मैं ।
स्वयं जब चुक चलूँ
तब भी बच रहे जो बात
(बात ही तो रहेगी !)
उसी को कहूँ
यह सम्भावना
यह नियति — कवि की
सहूँ ।
उतना भर कहूँ,
इतना कर सकूँ
जब तक चुकूँ!