ललछौंहे
पाँकड़ के नीचे से
गुज़रती डगर पर
तुम्हारी देह-धार लहर गयी
धूप की कूची ने सभी कुछ को
सुनहली प्रभा से घेर दिया।
देख-देख संसृति
एक पल-भर ठहर गयी।
फिर सूरज कहीं ढलक गया,
साँझ ने धुन्ध-धूसर हाथ
सारे चित्र पर फेर दिया।
इधर एक राग-भरी स्मरण-रेख,
उधर अनुराग की उदासी
मेरे अन्तस्तल में गहर गयी।