गज और ग्राह की कथा जानते है. गज पानी मे नहाने जाता है और वंहा ग्राह उसका पैर पकड़ लेता है।
उन के बीच लड़ाई होती है. अपना पूरा बल लगाने के बाद भी गज अपना पैर नहीं छुडा पाता.
जब उसका पूरा बल समाप्त हो जाता है तो वह प्रभु को याद करता है.प्रभु उसे बचाने के लिए नंगे पैर दौड़ पड़ते है।
"हाथ पकड़ कमला कहे कहा जात यदुनाथ
तो 'हा' तो कमला ने सुनी 'थी' सुनी गजराज
कथा और उसमें निहित गूढ़ार्थ तो प्राय: सब को विदित ही है किन्तु उसमें एक अदभुत संदेश छिपा हुआ है। गजेन्द्र की करूण पुकार सुनकर प्रभु नंगे पाँव ही दौड़े चले आते हैं और ग्राह के चंगुल से गजेन्द्र का उद्धार करते हैं।
मोक्ष पहले किसे मिला?
गजेन्द्र को या ग्राह को?
ग्राह को ! तो प्रभु का यह कैसा न्याय? जहाँ भक्त की अपेक्षा दुष्ट की पहिले सुनी जाती है। नहीं, ऐसा नहीं है। प्रभु के न्याय में, उनकी करूणा में,कहीं भी कोई भेद-भाव नहीं है। हमारे समझन में ही भूल होती है।
गजेन्द्र है भक्त और ग्राह ने अनजाने में ही भक्त के चरण पकड़ लिये हैं तो उसका फ़ल तो उसे मिलना है ही।
भगवान हँसते है और कहते है,बड़े राज की बात है मेरा काम भक्त का उद्धार करना तो है ही,परन्तु जिसने मेरे भक्त के पैर पकड़ लिए उसका उद्धार तो मुझे पहले करना पड़ता है !
जिस प्रकार कोई अमृत या विष जानकर पिये अथवा अनजाने, उसका फ़ल तो मिलेगा ही। प्रभु से मिलना है तो किसी संत या रसिक के चरण पकड़ लीजिये, उन्हें छोड़ना नहीं है; निश्चित ही प्रभु-कृपा प्राप्त होगी।
प्रभु तो अपने भक्तों से इतना प्रेम करते हैं कि कोई यदि प्रभु से प्रेम न कर उनके किसी प्रिय भक्त को भी पकड़ लेगा तो उसका उद्धार होने में किसी भी प्रकार का संशय नहीं है हमारी समस्या यह है कि हम गुरु भी अपने स्टेट्स का ढूँढते हैं जिसके पास कीर्ति-वैभव हो।
अब, जिसके पास जो नहीं है, वह अनुभव कैसे करावे? प्रभु से तो कोई अकिंचन प्रेमी-रसिक ही मिलावेगा। प्रभु, अपने भक्त के लिये तो एक बार तनिक विलंब कर सकते हैं क्योंकि वे दोनों ही अभिन्न हो जाते हैं परन्तु जिसने उनके भक्त को पकड़ा हो, उसे शीघ्र ही लाभ होता है।
रसिकजनों में भी प्रभु के से स्वभाव की उदारता देखी जाती है और जो कुछ भी प्रभु कृपा से उनके पास होता है; वे उसे बाँटने में संकोच नहीं करते।
यही कारण है कि संतो रसिकजनों को जिस प्रभु कृपा को पाने में वर्षों लगते हैं वह उनके समीपस्थों को बहुत शीघ्र मिल जाता है क्योंकि उन पर दो कृपायें एक साथ होती हैं. ।
प्रथम तो संत की और दूसरी भगवंत की। श्रीरामजी को पाना है तो श्रीहनुमानजी के श्रीचरणों का अवलम्बन लेना होगा।