राम नाम की महिमा
अजामिल ने बहुत पाप किये थे। अभी 12 वर्ष बाकि थे कि यमदूत लेने आ गए।
मृत्युकाल समीप आ गया है, अजामिल घबराया। घबराहट में उसने अपने पुत्र के प्रति आसक्ति के कारण *नारायण-नारायण* असहाय भाव से, उसे बुलाया। नारायण तो नहीं आया पर वहाँ भगवान विष्णु के दूत आ पहुँचे। उन्होंने यमदूतों से कहा कि अजामिल को छोड़ दो।
यमदूतों ने कहा- अजामिल का चरित्र भ्रष्ट है, अतः वह जीने के लिए अपात्र है।
विष्णुदूतो न कहा- यह सच है कि अजामिल ने बहुत पाप किए हैं किंतु भगवान का नाम लेकर इसने अपने पापों का प्रायश्चित कर लिया है। इसके पाप जल गए हैं, अतः अब इसे जीने दो। इसके आयु के 12 वर्ष अभी शेष हैं।
यमदूत- अजामिल ने “नारायण नारायण” तो कहा है, किंतु वैकुंठपति नारायण को नहीं, अपने पुत्र को पुकारा था।
विष्णुदूत - अनजाने में ही सही उसके मुख से हमारे स्वामी का नाम निकला है। जाने अंजाने में वस्तु-शक्ति काम करती है। अंजाने में भी अगर अग्नि में हाथ डाला जाये तो वह जला देती है। इसी प्रकार अनजाने में भी अगर कोई भगवान का नाम लेता है तो उसका कल्याण तो होता ही है और उसे अलौकिक फल भी मिलता है।
बड़े-बड़े महापुरुष भी जानते हैं कि संकेत से, परिहास से, तान के आलाप से, किसी को गाली देने पर भी - यदि प्रभु के नाम का उच्चारण हो जाए, तो उसके पाप नष्ट हो जाते हैं।
जो मनुष्य गिरते समय, पैर के फिसलने पर, अंगभंग होने पर, चोट लगने पर या ऐसी कोई भी विवशता में भगवान का नाम उच्चारण करता है तो वह नरक की यातना का पात्र नहीं बनता।
गिर जाने पर चोट लगने से हाय-हाय मत करो, हरि-हरि बोलो। गैस स्टोव पर जब भूल से दूध उबल कर बाहर आता है तो माताएं हाय-हाय करती हैं। हाय-हाय करने से कुछ नहीं होगा। इसके बदले हरि-हरि करो तो अग्नि में आहुति हो जाएगी और यज्ञ का फल मिलेगा।
वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि मृतात्मा के पीछे “हाय-हाय” अधिक करने से मृतात्मा को कष्ट होता है, उसे दुःख पहुंचता है। हरि -हरि बोलने से उसका फल मृतात्मा को मिलता है।
विष्णुदूतों ने अजामिल को यमदूतों के बंधन से मुक्त किया और उसका उद्धार हो गया। आयुष्य बाकी हो और मृत्यु आए, वह अपमृत्यु, आयुष्य पूरा होने पर मृत्यु आए वह महामृत्यु और महामृत्यु टल नहीं सकती, अपमृत्यु टल सकती है। अजामिल की मृत्यु टल गयी।
अजामिल बिस्तर में पढ़ा हुआ था और यह सब वार्ता सुन रहा था। यह सुनकर उसे खूब पश्चाताप हुआ। हृदय से प्रायश्चित करने के कारण उसके सारे पाप भस्म हो गए। जल्दी ही वह सब कुछ छोड़कर हरि नाम स्मरण करने लगा। पश्चाताप करने से अति पापी व्यक्ति का भी जीवन बदल जाता है। वह सुधर जाता है, प्रायश्चित चित्त की शुद्धि करता है। अजामिल की बुद्धि अब त्रिगुणात्मिका प्रकृति से परे होकर भगवान के नाम में स्थिर हो गई।
12साल नाम स्मरण करने के बाद, उसे लेने भगवान के पार्षद आये। नाम में निष्ठा रखने का यही फल है।
नाम हरि का तारणहारा
सुमिर सुमिर नर उतरे पारा
मूर्ख मन की आंखें खोल
हरि बोल हरि बोल हरि हरि बोल