महाभारत की गान्धारी भी कैकेयीजी के समान ही परम पतिव्रता थीं । उनका विवाह अन्धे धृतराष्ट्र के साथ हुआ, लेकिन जब उन्होंने देखा कि मेरे पति के पास दृष्टि नहीं है तो उन्होंने भी अपनी आँखों पर पट्टी बाँध ली । नेत्र से बढ़कर और कौन-सी वस्तु होगी ? दृष्टि होते हुए भी उन्होंने देखना बन्द कर दिया । सारे संसार में उनकी कीर्ति फैल गई । उनके पातिव्रत की महिमा फैल गई, लेकिन ममता ने किसके यश को धूमिल नहीं किया ? जब गान्धारी ने दुर्योधन को बुलाया और कहा - पुत्र ! मैंने निर्णय किया है कि कुछ समय के लिए मैं अपनी आँखों की पट्टी खोलूँगी । दुर्योधन ने पूछा - क्यों, क्या उद्देश्य है आपका ? गान्धारी ने कहा - मैं पतिव्रता हूँ । आज तक अपनी दृष्टि से संसार को नहीं देखा । ज्योंही पट्टी खोलकर मैं तुम्हें देखूँगी, तुम्हारा शरीर व्रज का हो जाएगा और तब भीम तुम्हें नहीं मार सकेगा । तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी । फिर देखें, पाण्डव तुम्हें कैसे जीत पाते हैं ?
दुर्योधन तो सुनकर फूला नहीं समाया, प्रसन्न हो गया । यह समाचार जब गुप्तचरों के द्वारा पाण्डवों के पास पहुँचा, तो वे निराश हो गए । वे पातिव्रत की शक्ति से परिचित थे । सोचने लगे कि अब तो लड़ाई से हार अवश्यंभावी है । भीम भी निराश हो गये और अर्जुन भी । युधिष्ठिर भी घबरा गए । एकमात्र श्रीकृष्ण ही थे, जो सुनकर मुस्कुराने लगे । श्रीकृष्ण को मुस्कुराते देखकर पाण्डव बोले - महाराज ! हम लोग तो इतने घबराए हुए हैं और आप मुस्कुरा रहे हैं ? क्या आपने नहीं सुना कि गान्धारी जैसी पतिव्रता अपनी आँखों की पट्टी हटा रही है । श्रीकृष्ण बोले - पट्टी हटा नहीं रही है, चढ़ा रही है । अभी तक पट्टी केवल कपड़े की थी और अब उन्होंने ममता की पट्टी चढ़ाने का निर्णय लिया है । यह कपड़े की पट्टी तो हट जाएगी पर इस ममता की पट्टी से वह पूरी तरह अन्धी हो जाएँगी । इसलिए तुम लोग निश्चिंत रहो । वस्तुतः न देखने की स्थिति में तो वह अब आई है ।
गान्धारी की यह ममता कि दुर्योधन मेरा बेटा है, मैं उसे नहीं मरने दूँगी और दुर्योधन ? क्या वह कपड़े उतारकर गया ? उसे तो दूसरों का कपड़ा उतारना ही आता है, अपना कपड़ा उतारना उसे नहीं आता । कपड़े उतारकर चला तो बीच में नारदजी मिल गए । नारदजी ने पूछा - अरे-अरे, यह क्या, कहाँ जा रहे हो ? लज्जा के मारे बिचारा दुर्योधन बैठ गया । तब नारदजी ने कहा कि मेरे सामने जब तुम्हें इस प्रकार से लज्जा आ रही है तो गान्धारी के सामने कैसा लगेगा ? इसलिए ऐसा करो, कमर में एक छोटा-सा कपड़ा लपेट लो । दुर्योधन को नारदजी की सलाह अच्छी लगी । कमर में वस्त्र लपेट कर वह गान्धारी के सामने पहुँच गया ! पतिव्रता गान्धारी ने अपनी आँखों की पट्टी हटाई, उसकी दृष्टि दुर्योधन पर पड़ी और उसका सारा शरीर व्रज का हो गया, केवल कमर कच्ची रह गयी क्योकिं कमर पर पट्टी पड़ी थी ।
बड़ा विचित्र व्यंग्य है । इससे बढ़कर विडम्बना क्या हो सकती है । पतिव्रता की दृष्टि ने सारे शरीर को तो व्रज का बना दिया, पर एक कपड़े की पट्टी को भेद वह दृष्टि उसके कमर को व्रज नहीं बना पाई । क्यों ? वह दुर्योधन की कमर पर मात्र कपड़ा नहीं था । वह तो ईश्वर का संकल्प था । जो नारद ने कहा था, वह कपड़े के रूप में भगवान का ही संकल्प था । जब भगवान सुने तो हँसकर उन्होंने यही कहा कि देखो, गान्धारी ममता में कितनी अन्धी हो रही है । वह समझ रही थी कि मैं अपने पुत्र को अमर बनाने जा रही हूँ । अमर तो नहीं बना पाई, बल्कि उन्होंने तो मारने का उपाय बता दिया । पहले तो सोचना पड़ता कि दुर्योधन को कहाँ से मारा जाए, पर अब सबको पता चल गया कि वह मरेगा तो कमर पर से ही मरेगा । उसकी कमर ही कमजोर है । कैसा दुर्भाग्य है उसका !
इसका अभिप्राय यह है कि इतिहास में बड़े-से-बड़े ऐसे भी पात्र हैं, जिनके जीवन में यशस्विता होते हुए भी ममतायुक्त पक्षपात आया, जहाँ ममता का अन्धत्व आया और वहाँ उन पर कलंक भी अवश्य लगा । सच्चे अर्थों में ममता हमारे जीवन को अन्धकार में डाल देती है, भ्रम में डाल देती है । और हमारे जीवन में जब तक स्नेह ममता की आर्द्रता बनी रहेगी, तब तक यह पक्षपात हमारे लिए और समाज के लिए संकट उत्पन्न करती रहेगी ।