लूटी कोई आदमी का नगर अभिमान के गीत (1 9 73) को महारू सुल्तानपुरी द्वारा लिखा गया है, यह एसडी बर्मन द्वारा रचित है और लता मंगेशकर और मनहर उधस द्वारा गाया गया है।
अभिमान (Abhimaan )
लुटे कोई मन का नागर बन के मेरे साथी लुटे कोई मन का नागर बन के मेरे साथी कौन है वह अपनों में कभी ऐसा कहीं होता है
यहीं पे कहीं है मेरे मन का चोर नज़र पड़े तो बहियाँ दून मरोड़ यहीं पे कहीं है मेरे मन का चोर नज़र पड़े तो बहियाँ दून मरोड़ जाने दो जैसे तुम प्यारे हो वह भी मुझे
रोग मेरे जी का मेरे दिल का चैन सांवला सा मुखड़ा ा.. उसपे कारे नैन रोग मेरे जी का मेरे दिल का चैन सांवला सा मुखड़ा ा.. उसपे कारे नैन ऐसे को रोके अब कौन भला दिल से
लुटे कोई मन का नागर हो.. ो.. लुटे कोई मन का नागर बन के मेरे साथी लुटे कोई मन का नागर बन के मेरे साथी साथी.. साथी..