इंसाफ का मंदिर है ये गीत ऑफ अमर (1 9 54): यह दिलीप कुमार, निम्मी, मधुबाला और जयंत अभिनीत अमर का एक सुंदर गीत है। यह मोहम्मद रफी द्वारा गाया जाता है और नौशाद द्वारा रचित है।
अमर (Amar )
है खोत तेरे मन्न में जो भगवन से है दूर है खोत तेरे मन्न में जो भगवन से है दूर हैं पाँव तेरे.. हैं पाँव तेरे फिर भी तू आने से है मजबूर आने से है मजबूर
दुःख दे के जो दुखिया से न इंसाफ करेगा भगवन भी उसको न कभी माफ़ करेगा ये सोच ले
पार्ट २: है पास तेरे जिसकी अमानत उसे दे दे है पास तेरे जिसकी अमानत उसे दे दे निर्धन भी है निर्धन भी है इंसान मोहब्बत उसे दे दे मोहब्बत उसे दे दे जिस दर पे सभी एक
पार्ट २: मायूस न हो हार के तकदीर की बाज़ी प्यारा है वह गाम जिसमें हो भगवन भी राज़ी दुःख दर्द मिलें दुःख दर्द मिले जिसमें वही प्यार अमर है वही प्यार अमर है ये सोच
इन्साफ का मन्दिर है ये भगवन का घर है क्ष (३)