'आस-पास ही देख रहा हूँ मिटटी का व्यापार ,
चुटकी भर मिटटी की कीमत जहाँ करोड़ हज़ार ,
और सोचता हूँ आगे तो होता हूँ हैरान
बिका हुआ है कुछ मिटटी के ही हाथों इंसान .''
कविवर गोपाल दास ''नीरज '' की ये पंक्तियाँ इस वक़्त के भारतीय जनमानस की मनोदशा का अक्षरशः परिचय देने हेतु पर्याप्त हैं .हालाँकि ऐसी बातें कहनी नहीं चाहिए क्योंकि सच बोलने की सलाह सब देते हैं किन्तु उसे सुनना कोई नहीं चाहता इसीलिए गाँधी जी के लिए भी मजबूरी ''मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी ''जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि उनके जैसा बनना इस वक़्त के भारतीयों के लिए मुश्किल है जो सत्य के सबसे बड़े पुजारी थे लेकिन आज की जनता सच नहीं सह सकती और फलस्वरूप ऐसी बातें कहीं न कहीं किसी न किसी नेता के समर्थकों को कष्ट पहुंचाती हैं और यह कष्ट माहौल में उथल-पुथल का कारण बन जाता है किन्तु वह कलम ही क्या जो सच कहने से रुक जाये ,वैसे भी डॉ.शिखा कौशिक ''नूतन '' ने कहा भी है -
''हमारे हाथ में है जो कलम वो सच ही लिखेगी ,
कलम के कातिलों से इस तरह करनी बगावत है .''
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे.जयललिता अपने समर्थकों को इस दुनिया में अकेले छोड़ गयी और उनके समर्थकों के दुःख के कारण ही वहां के हालात सँभालने को तमिलनाडु में पुलिस व् फ़ोर्स को भारी मशक्कत करनी पड़ रही है .अम्मा का जाना वहां उनके चाहने वालों के लिए भगवान् का कहर है ,क्योंकि उनके अनुसार वे गरीबों की माँ थी लेकिन यहाँ उनसे इतनी दूर बैठे हम उन्हें मीडिया के जरिये ही जानते हैं और जिसके अनुसार जयललिता विवादस्पद जमीन सौदे , ग्रेनाइट खनन में फंड के दुरूपयोग ,आय के स्रोतों से अधिक धन ,आय से अधिक संपत्ति मामले में जेल आदि भ्रष्टाचार के मामलों से जुडी थी ,पर जनता को इससे क्या ,जनता के लिए तो वे गरीब-नवाज़ थी ,भले ही वे ऐ.आई.डी.ऍम.के.के करिश्माई नेता ऍम.जी.रामचंद्रन के अमरीका के अस्पताल में भर्ती होने पर राजीव गाँधी के सामने स्वयं को मुख्यमंत्री बनने की मांग करने पहुँच जाएँ ,भले ही ऍम.जी.रामचंद्रन की पहली पत्नी होते हुए और उन्हें [जयललिता को ] पत्नी का कोई दर्जा प्राप्त न होते हुए भी वे ऍम.जी.रामचंद्रन की मृत्यु पर स्वयं को उनकी विधवा के रूप में पेश करें ,जो जनता संस्कारों की बात करती है ,पत्नी के अधिकार की बात करती है उसे यहाँ इन बातों से कोई लेना देना नहीं है वह केवल अपना हित देखती है जो वोट की खातिर उनसे जुड़ा रहता है और जिसका दम हर बड़ा नेता भरता है.
१९७५ में आपातकाल ,१९८४ में ऑपरेशन ब्लू स्टार भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के विवादास्पद कदम रहे और १९८४ का ऑपरेशन ब्लू स्टार तो इनके लिए मारक साबित हुआ किन्तु १९६६ से लेकर १९८४ तक उनके बहुत से विवादास्पद क़दमों के बावजूद जनता का साथ इन्हें मिलता रहा यहाँ तक कि लोकप्रिय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु में इनके द्वारा साजिश किये जाने की सम्भावना भी जनता का साथ इनके साथ ख़त्म करने में व्यर्थ साबित हुई .क्योंकि एक बार फिर कहूँगी जनता पर कोई फर्क नहीं पड़ता .१९७५ में उनके द्वारा लगाए गए आपातकाल के कारण वे चहुँ ओर निंदा का कारण बनी ,जनता ने उन्हें विपक्ष में बिठाया किन्तु फिर १९८० में जनता का उन पर फिर विश्वास जम गया कैसा विश्वास है जो बार बार इन नेताओं पर जम जाता है जिसे कांच के समान कहा जाता है पर इनके मामले में वह कढ़ाई में पड़े हलवे के समान हो जाता है जो चाहे कहीं से ले लिया जाये वापस अपने पुराने आकार में पहुँच जाता है , और १९८० में जनता ने फिर सत्ता उन्हें सौंप दी ,कारण यही है कि जनता की महत्वाकांक्षाएं बार बार जन्म लेती हैं और उनकी आँखें नेताओं के दिखाए गए सुनहरे सपने ही देखने में अपना भला देखती हैं क्योंकि ये जनता जितना खुद को दुखी दिखाती है इतना तो कोई है ही नहीं .उसकी मनोभावना पर हरबंस सिंह ''निर्मल '' कहते हैं -
''पिला कर गिराना नहीं कोई मुश्किल ,
गिरे को उठाये वो कोई नहीं है .
ज़माने ने हमको दिए जख्म इतने ,
जो मरहम लगाए वो कोई नहीं है .''
मुलायम सिंह ,उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता ,समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष ,तीन-तीन बार मुख्यमंत्री और वो भी तब जब अपनी पार्टी के दूसरे काल में ही उन्होंने रामपुर तिराहा कांड कराया .२ अक्टूबर १९९४ को उत्तराखंड के कार्यकर्ताओं पर गोली चलवाई ,पूरे उत्तर प्रदेश के मालिक बन केवल सैफई को चमकाया ,तब भी जनता ने उन्हें बार बार सत्ता और अपनी सुरक्षा सौंपी जिसका जिम्मा इनकी पार्टी ने २०१३ में कितनी अच्छी तरह उठाया सभी के सामने है .तब भी आगे ये यूपी की सत्ता नहीं पाएंगे ऐसा नहीं कहा जा सकता क्योंकि जनता के अपने मकसद पूरे होने चाहियें और जैसे कि उन्होंने स्वयं को भारत के मुसलमानों का रहनुमा प्रदर्शित किया है वह इन्हें यूपी की सत्ता दिलाता ही रहेगा क्योंकि मुसलमानों को असुरक्षा का अहसास दिलाने को ये हैं और अपनी सुरक्षा के केंद्र मानने को मुसलमानों का दिमाग .
''मायावती '' उत्तर प्रदेश की चार-चार बार मुख्यमंत्री ,पहली दलित महिला मुख्यमंत्री ,दलितों का वोट बैंक इनको नहीं छोड़ता भले ही ये दलितों को इधर-उधर छोड़ दें ,ज़मीन से उठी ये नेताजी आज कई कोठियों की मालिक हैं ,जगह जगह पर्स लटकाये इनकी मूर्तियां हैं ,इनका जन्मदिन इनकी ज़िन्दगी का सुनहरा दिन है ,ताज कॉरिडोर केस , आय से अधिक संपत्ति मामले इनके विकिपीडिया की शान हैं भले ही जिनकी वोट ले ये मैडम बन घूमती हैं उनके पैरों में चप्पल भी न हो ,भले ही जिनसे नोट ले ये जन्मदिन का केक काटती हैं केक काटने वाला चाकू उन्हीं की गर्दन पर चल जाये ,वोट इन्हीं को मिलेंगी .उत्तर प्रदेश की सत्ता यहाँ के लोगों ने मायावती व् मुलायम में ही बाँट दी है भले ही यूपी का सत्यानाश हो जाये जनता का मकसद पूरा होना चाहिए जिसे उनके अनुसार इनमे से कोई एक ही पूरा कर सकता है .
और अब आते हैं इस समय देश के बहुसंख्यक समाज- हिन्दू समाज की धड़कन माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी पर ,टाइम पर्सन ऑफ़ थे ईयर के रीडर्स पोल में जीते मोदी जी इस वक़्त भारतीय हिन्दू जनता की आँख का तारा बने हुए हैं जिन्हें ये किसी फ़रिश्ते से कम नहीं लगते ,कारण ये कि उनके समय में जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब राज्य रिपोर्ट के अनुसार ७९० मुस्लिम वहां मारे गए थे ,भले ही वहां के दंगों में २५४ हिन्दू भी मारे गए हों किन्तु जब इनके समर्थकों के बीच इन्हें गुजरात के दंगों के लिए दोषी ठहराया जाये तो वे भड़क उठते हैं गोधरा को लेकर ,जबकि जब गोधरा हुआ तब मोदी ही वहां के मुख्यमंत्री थे और जब अन्य किसी के शासनकाल में कोई घटना हो जाये तब अभिभावी सरकार को ही ये समर्थक जिम्मेदार ठहराते हैं तो इस दायित्व से अपने पसंदीदा मोदी को मुक्ति क्यों ? अलग अलग नेता के लिए ये जनता अलग अलग मानक अपनाती है और आज इस जनता के दिलो-दिमाग पर हावी है मोदी द्वारा ८ नवम्बर को काले धन पर आक्रमण को लेकर की गयी नोटबंदी और हर तरफ उनके इन चारण-भाटों द्वारा उनकी विरदावली गायी जा रही है . स्थिति इतनी बदतर है कि अपने अपनों का दर्द उनके लिए कोई मायने नहीं रख रहा है बल्कि मोदी के इस काम के आगे उन्हें अपनों में ही खोट नज़र आ रहा है .काले धन को लेकर मोदी का यह दांव आज गरीब आदमी पर ही भारी पड़ गया है और हिन्दू-मुस्लिम के बीच जो खाई पूर्व में मोदी व् उनकी पार्टी ने खोदी है उसका परिणाम यह है कि जो कभी भाई थे वे आज दुश्मन हैं और अगर वे अपने ही नोट लेने को लाइन में खड़े हैं तो इन्ही अंधभक्तों द्वारा उन्हें कमीशन एजेंट कहा जा रहा है और स्वयं मोदी के एहसान तले सबको दबाने का प्रयास किया जा रहा है केवल इसलिए कि मोदी पर इन्हें ये भरोसा है कि ये इन्हें मुसलमानों से मुक्ति दिलाएंगे जिनके कदमो तले देश पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले महात्मा गाँधी इन्हें दबा गए हैं .मोदी जो आज सत्ता में हैं इनसे यह कभी भी यह अंधभक्त जनता नहीं पूछेगी कि आपने सत्ता में आने के लिए कौनसा धन इस्तेमाल किया और जो अपनी परिवतन रैली में स्वयं को फ़कीर कह झोला लेकर चलने की बात कह रहे हैं वे चलते वक्त कौनसा सूट पहनकर जाने वाले हैं ?वही लाखों वाला या कोई और नया और अपने झोले में और क्या समेटकर ले जाने वाले हैं फ़क़ीर तो खाली खरताल बजाता जाता है उसके पास तो कोई झोला नहीं होता लेकिन मोदी विशेष फ़क़ीर हैं वे झोला लेकर जायेंगे आखिर अपना काला धन भी तो ले जाना है ,लेकिन यह अंधी जनता उनसे यह सब नहीं पूछेगी क्योंकि उन्हें ये हिंदुओं के पहरेदार नज़र आते हैं उनके अनुसार मोदी न होंगे तो यहाँ के सभी हिंदुओं को खतना कराना पड़ेगा ,नारी सम्मान हित बड़ी बड़ी बातें करने वाले मोदी ने दिग्विजय सिंह द्वारा प्रगट किये जाने से पूर्व जशोदा बेन उनकी पत्नी हैं ये भी किसी को नहीं बताया था ,कुंवारे बने फिरते थे किन्तु नारी के लिए बड़ी बड़ी सीमा रेखाएं बाँधने वाली ये जनता उनसे इसका भी जिक्र नहीं करेगी क्योंकि कहीं ऐसा करने से मोदी का ध्यान उनकी सुरक्षा पर से हट गया तो भुगतना तो जनता को ही पड़ेगा .ये ज़हर घोला है मोदी की सोच ने जनता में और जनता है कि उसे अपने लाभ हानि को तोल पिए जा रही है ,इसीलिए तो पंडित विजेंदर पाल शर्मा जी कहते हैं -
''लो परिवर्तन आ गया ,हो गया जग का लाल रक्त पानी ,
अब हानि-लाभ से तोल रही रिश्तों को दुनिया दीवानी .''
ऐसे में भले ही कितने चुनाव करा लिए जाएँ , भले ही प्रजातंत्र कह लिया जाये इस देश का कुछ भी भला संभव नहीं है .वैसे भी जनता का ,जनता के लिए ,जनता के द्वारा किया गया शासन प्रजातंत्र है यह तो सभ्य समाज की भाषा है यहाँ सभ्यता है ही कहाँ जनता में ,वह तो निरी मूर्खों वाली बातें कर रही है इसलिए इसे निश्चित रूप में जो प्रजातंत्र की सही परिभाषा दी गयी है वही दी जा सकती है अर्थात ''प्रजातंत्र मूर्खों का ,मूर्खों के लिए ,मूर्खों के द्वारा किया गया शासन है क्योंकि यहाँ जनता नेताओं के अनुसार चल रही है और अपने क्षुद्र मकसद उनसे पूर्ण करा आज के प्रगतिवादी युग में सफलता का अनुभव कर रही है ऐसे में भले की उम्मीद ही बेमानी है .किसी भी देश का भला हम तभी देख पाते हैं जब उसके नागरिकों में देश हित में अपने हित कुर्बान करने की भावना हो .सबको रोटी तभी मिल सकती है जब कुछ लोग अपना पेट काटने को तैयार हों ,आज की स्थितियों में सबको पानी तभी मिल सकता है जब सब थोड़ा-थोड़ा बांटें ,कहा भी है - ''तेरा मेरा मत कर सासु ये पानी तो सबका है , थोड़ा थोड़ा बाँट ले इसको ,ये पानी तो सबका है . और ये यहाँ नहीं हो सकता क्योंकि हम बाँट नहीं सकते केवल लूट सकते हैं इसलिए केजरीवाल को झूठा कहते हैं ,ममता बैनर्जी को कोसते हैं ,सच बोल नहीं सकते ,सुन नहीं सकते केवल सलाह दे सकते हैं तब क्या फायदा चुनावों का जब हमें गलत ही करना है और ये हमारी गलत का साथ देने की ही आदत है जो हमें सच का सामना नहीं करने देती और न ही करने देगी और हमें इसी तरह सच बोलने वालों से दुश्मनी रखने को मजबूर करती रहेगी और हमारे इस प्रजातंत्र को ''मूर्खों का शासन '' कहलाती रहेगी .
''मैंने सच बोला तो बरसाए जहाँ ने पत्थर ,
जहाँ को सच बोलने वालों से अदावत क्यों है .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]