दिल्ली -एनसीआर में ३१ अक्टूबर तक सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई ही थी कि लेख क चेतन भगत उसकी भर्तसना भी करने लग गए यह कहते हुए कि ,''यह हमारी परंपरा का हिस्सा है बिना पटाखों के बच्चों की कैसी दिवाली ? उनकी इस ट्वीट की देखा देखी ठाकरे भी बोले तो क्या व्हाट्सप्प पर छोड़ेंगे पटाखे इस तरह सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को लेकर बवाल मचा ही था कि दिन की एक घटना ने सभी के मुंह पर ताले लगा दिए खबर यह थी - ''नई दिल्ली: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली जिले में एक चीनी मिल से गैस रिसाव की वजह से 300 से ज्यादा बच्चे बीमार हो गए हैं. दो स्कूलों के बच्चे इस गैस रिसाव का शिकार हुए हैं. ANI के अनुसार गैस रिसाव में 30 बच्चों की हालत गंभीर बताई जा रही है. बीमार बच्चों को पास के अस्पतालों में भर्ती कराया गया है. चीनी मिल से कौन सी गैस का रिसाव हुआ है, इसके बारे में अभी कुछ भी कहा नहीं जा सकता है.''
अब पटाखों की तरफदारी करने वाले ज़रा एक बार गौर फरमा लें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के सामयिक व् दूरंदेशी फायदे को तो शायद अपने मुंह पर स्वयं ही ताले लगा लेंगे .
अभी पिछले ही वर्ष दिल्ली का माहौल पटाखों के धुंए के कारण ऐसा रहा कि लोगों को सामान्य जीवन में भी मुंह पर मास्क लगाकर काम करना पड़ा ऐसे में पटाखों के औचित्य पर अगर सवाल उठा दिए जाएँ तो शायद कुछ गलत नहीं होगा .
चेतन भगत कहते हैं कि ये हमारी परंपरा का हिस्सा है और अगर हम देखें तो धार्मिक रूप से दिवाली पर पटाखों का प्रयोग इस कारण से किया जाता है कि इस त्यौहार के अवसर पर एक धारणा यह है कि इस पर टोना टोटका बहुत ज्यादा हद तक होता है क्योंकि इसमें अमावस्या तिथि के कारण बुरी आत्माएं चहुँ ओर आकाश में भटकती फिरती हैं और पटाखे छोड़कर उन्हें ख़त्म किया जाता है किन्तु कोई भी परंपरा यह नहीं कहती कि इसमें पटाखें छोड़ना धार्मिक रूप से कोई बहुत ज़रूरी काम है क्योंकि ये त्यौहार रौशनी का त्यौहार है ,खुशियां बाँटने का त्यौहार है और उसके लिए कहीं भी इस शोर-शराबे को करने व् धुंआ फ़ैलाने को नहीं कहा जाता .
चेतन भगत के अनुसार पटाखों के बगैर बच्चों की कैसी दिवाली ,पर वे यह भी तो विचार कर लें कि जो नाजुक बच्चे शामली चीनी मिल के गैस रिसाव के शिकार हुए हैं वहां बड़े क्यों नहीं हुए ,जबकि स्कूल केवल बच्चों का तो नहीं होता ,बड़े भी तो वहां किसी भूमिका में होते हैं .कितने ही बच्चे हर साल पटाखों के कारण हादसों का शिकार होते हैं और ऐसा लगता है चेतन भगत जैसे अनर्गल प्रलाप करने वालों को ही सही स्थिति समझाने को भगवान् ने ऐसी स्थिति इतनी शीघ्र पैदा कर दी कि वे बहुत जल्द ही अपनी राय पलट सकें .
और चेतन भगत ही क्या ये सीख तो हम सभी के लिए ज़रूरी है एक बार विचार तो हम सबको ही करना चाहिए कि क्या ये पटाखे जो बच्चे छोड़ते हैं ये मात्र पटाखें है या सही रूप में बम.देखा जाये तो आज जिनका प्रयोग किया जा रहा है वे पटाखे नहीं हैं बम हैं ,बच्चों के लिए अगर पटाखों की बात की जाये तो फुलझड़ी ,फिरकी काफी हैं लेकिन यहाँ तो अनार बम ,रॉकेट बम जैसे खतरनाक पटाखें छोड़े जा रहे हैं क्या ये ही है बच्चों की दिवाली जो चेतन भगत या हम अपने बच्चों को दे रहे हैं ?
वास्तव में चेतन भगत सहित हम सभी को सुधरना होगा ,दीपावली पर्व के सही उद्देश्य को अपनाना होगा हमें अँधियारा मिटाना होगा जो कि यही नहीं कि मात्र बल्ब जलाकर या दीप जलाकर ही हो बल्कि हमें ज्ञान का उजाला फ़ैलाने की ओर भी सोचना होगा ,दीपावली की रात हम लाखों रूपये स्वाहा कर देते हैं पटाखों में और बदले में क्या पाते हैं आँखों में धुंआ,व् कानों के परदे का नुकसान ,जबकि हम इस स्वाहा की दिशा मोड़ सकते हैं अज्ञान के पटाखों को जला ज्ञान की रौशनी प्रज्वलित करके .हम वास्तव में इस अवसर पर इतना पैसा पटाखों पर व्यर्थ में बहा देते हैं कि हर परिवार कम से कम एक बच्चे की शिक्षा का प्रबंध तो कर ही सकता है .
इसलिए चेतन भगत जैसी हस्ती को खास तौर पर इसलिए कि इनकी लोग सुनते हैं इसलिए सही सोच अपनानी चाहिए और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की सराहना करनी चाहिए साथ ही पटाखों पर पूर्ण प्रतिबन्ध की मांग भी क्योंकि सही में पटाखे बनने ही अगर बंद हो जाएँ तो
''न बनेगा बांस ,न बजेगी बांसुरी ''
या यूँ कहें
''न नौ मन तेल होगा ,न राधा नाचेगी .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]