बचपन में माखनलाल चतुर्वेदी कृत पुष्प की अभिलाषा पढी, जिसमें पुष्प कहता है - "चाह नहीं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं, चाह नहीं प्रेमी माला में विंध नित प्यारी को ललचाऊं, चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊं, चाह नहीं देवों के सिर पर चढूं, भाग्य पर इठलाऊं, मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना फेंक, मातृभूमि पर शीश चढाने जिस पथ जायें वीर अनेक." पर लगता है कि वर्तमान में पुष्प को अपनी इस अभिलाषा में परिवर्तन करना होगा क्योंकि जिस वक्त माखनलाल जी ने हम सबको पुष्प की इस अभिलाषा से रूबरू कराया था तब देश में देशभक्ति की भावनाएं सर्वोपरि थी, राजनीति उससे नीचा स्थान रखती थी किन्तु आज राजनीति सर्वोपरि है.
देश के 17 सैनिक शहीद हो गए किन्तु उनके लिए शोक तक करने को राजनीति की तराजू में तोला जा रहा है. चन्द वोट मांगने आने वाले अभयागतों के स्वागत के लिए देश के सैनिकों की शहादत को दरकिनार किया गया और यह कहा गया कि यहां राजनीति मत करिये, अब एेसे में तो यही लगता है कि पुष्प को अपनी अभिलाषा ही परिवर्तित कर यह करनी होगी अर्थात उसे यह कहना होगा - "मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना फेंक, वोट मांगने स्वार्थ हित लिए, जिस पथ चलते नेता अनेक." कुमारी शालिनी कौशिक एडवोकेट, काँधला शा