बहुत पहले एक फिल्म आयी थी ,''रोटी ,कपड़ा और मकान '' तब हम बहुत छोटे थे ,घरवालों व् आसपास वालों की बातों को फिल्म के बारे में सुनता तो लगता कि यही ज़िंदगी की सबसे बड़ी ज़रुरत हैं किन्तु जैसे जैसे बड़े हुए जीवन की सच्चाई सामने आने लगी और तब एहसास हुआ कि जीवन की सबसे बड़ी ज़रुरत ''पानी '' है ,एक बार को आदमी रोटी के बगैर रह लेगा [हमारे साधु -संत रहते ही हैं ] ,कपडे के बगैर रह लेगा [जैन धर्म के दिगंबर मतावलम्बी साधु व् हमारे नागा साधु कपडे के बगैर ही रहते हैं ], मकान के बगैर रह लेगा [फुटपाथ पर रहने वाले रहते ही हैं ],किन्तु ऐसा कोई उदाहरण नहीं जो पानी के बगैर रह सके ,कहने को बहुत से कहेंगे कि निर्जला एकादशी का व्रत रखने वाले व् मुस्लिम धर्म में रोज़ा रखने वाले पानी के बगैर ही रहते हैं किन्तु अगर हम गहराई में अवलोकन करें तो एक निश्चित समयावधि व् अनिश्चित समयावधि का अंतर यहाँ मायने रखता है और कोई भी अनिश्चित समयावधि तक पानी के बगैर नहीं रह सकता ,
अभी हाल ही में विश्व जल दिवस २२ मार्च को मनाया गया । इसका उद्देश्य विश्व के सभी विकसित देशों में स्वच्छ एवं सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित करवाना है साथ ही यह जल संरक्षण के महत्व पर भी ध्यान केंद्रित करता है।ब्राजील में रियो डी जेनेरियो में वर्ष 1992 में आयोजित पर्यावरण तथा विकास का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में विश्व जल दिवस मनाने की पहल की गई तथा वर्ष 1993 में संयुक्त राष्ट्र ने अपने सामान्य सभा के द्वारा निर्णय लेकर इस दिन को वार्षिक कार्यक्रम के रूप में मनाने का निर्णय लिया इस कार्यक्रम का उद्देश्य लोगों के बीच में जल संरक्षण का महत्व साफ पीने योग्य जल का महत्व आदि बताना था।जानकारी के लिए आपको बता दूं कि 1993 में पहली बार विश्व जल दिवस मनाया गया था और संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1992 में अपने 'एजेंडा 21'में रियो डी जेनेरियो में इसका प्रस्ताव दिया था!
हमारी धरती का एक बड़ा हिस्सा पानी से घिरा हुआ है किन्तु तब भी हमें जल संरक्षण जैसे विषयों को लेकर ऐसे दिवस आयोजित करने पड़ते हैं इसके पीछे की मुख्य वजह है पीने के लिए स्वच्छ पानी की अनुपलब्धता ,हमारी धरती पर बहुत है किन्तु वह अधिकांश खारा है और इतना खारा कि हम उसे इस्तेमाल करने की सोच भी नहीं सकते ,पीना तो बहुत दूर की बात है हम उस पानी से अपने कपडे तक नहीं धो सकते , इसीलिए आज जगह जगह आर-ओ का बोतलबंद पानी मिलता है ,जगह जगह आर-ओ लगवाए जा रहे हैं ताकि लोगों को पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध हो सके लेकिन यह तकनीक इतनी महंगी है कि आम आदमी के बस की नहीं है और बोतल बंद पानी चलता कितना है एक तो इतनी महंगी बोतल जो कि 20 रूपये में मिलती है और जो घरों में आर-ओ के संयत्र लगवाए जा रहे हैं उनमे फिटकरी का अंश इतना कम है कि वह जल्दी ही घिसकर ख़त्म हो जाता है और संयत्र का व् मिस्त्री का खर्चा बेकार चला जाता है ,
ऐसे में अगर हम अपनी जिम्मेदारी समझते हुए निम्न उपाय अपनाएं तो साफ पानी भी पी सकते हैं और सरकार व् अपने इस संसार के निवासियों का बिना कुछ खास मेहनत व् खरचे के भला भी कर सकते हैं -
1 -सबसे पहले हम एक ड्रम या बड़े बर्तन में पानी लें और चुटकी भर पिसी हुई फिटकरी इस पानी में डाल दें और इस पानी को ढक दें अब आधे घंटे बाद हम इस पानी का पीने में उपयोग कर सकते हैं ,ये निश्चित रूप से साफ व् स्वच्छ पानी है और ध्यान रहे नीचे तली का पानी न पियें क्योंकि फिटकरी के प्रयोग से पानी की सारी गंदगी नीचे बैठ जाती है ,
2 -पेड़-पौधें लगाएं क्योंकि ये वातावरण में नमी बनाये रखते हैं और पानी का जमाव जमीन में रखतें हैं ,
3 -पेड़ -पौधों में जब भी पानी दें बाल्टी में पानी भरकर मग्गे से उनकी जड़ों में दें इससे उन्हें जीवन मिलता है और वे हमें जीवन देते हैं ,
आपने देखा होगा कि भौतिकवादी इंसान ने आज हर जगह व्यापार के लिए लगा दी है और खेतों बागों की भूमि भी बारातघर व् फैक्ट्रियों में तब्दील हो रही है इसी भौतिकवाद का दुष्परिणाम है वह स्थिति जो हम भुगत रहे हैं धरती का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है ,मानसून की गति धीमी व् कम समय के लिए होती जा रही है और धरती अकाल की तरफ बढ़ती जा रही है इसीलिए सभी से इन स्थितियों को देखते हुए नम्र निवेदन है कि पेड़ -पौधें लगाएं वे जमीन में मिटटी का कटान रोकेंगे,उनमे पानी दीजिये वह मौसम में नमी रखेगा और मानसून की अवधि को सही चक्र में लाएगा ,इससे ओज़ोन परत का क्षरण रुकेगा ,धरती पर रहने लायक स्थिति बनेगी और फिर इतनी बड़ी धरती होते हुए चाँद या मंगल ग्रह पर जगह नहीं ढूंढनी पड़ेगी ,
शालिनी कौशिक