तखल्लुस कह नहीं सकते ,तखैयुल कर नहीं सकते , तकब्बुर में घिरे ऐसे ,तकल्लुफ कर नहीं सकते . ………………………………………………………………. मुसन्निफ़ बनने की सुनकर ,बेगम मुस्कुराती हैं , मुसद्दस लिखने में मुश्किल हमें भी खूब आती है , महफ़िलें सुन मेरी ग़ज़लें ,मुसाफिरी पर जाती हैं , मसर्रत देख हाल-ए-दिल ,मुख्तलिफ ही हो जाती है . मुकद्दर में है जो लिखा,पलट हम कर नहीं सकते , यूँ खाली पेट फिर-फिर कर तखल्लुस कह नहीं सकते . ………………………………………………………………………. ज़बान पर अवाम की ,मेरे अशआर चढ़ जाएँ , मुक़र्रर हर मुखम्मस पर ,सुने जो मुहं से कह जाये , मुखालिफ भी हमें सुनने ,भरे उल्फत चले आयें , उलाहना न देकर बेगम ,हमारी कायल हो जाएँ . नक़ल से ऐसी काबिलियत हैं खुद में भर नहीं सकते , यूँ सारी रात जग-जगकर तखैयुल कर नहीं सकते . …………………………………………………………….. शहंशाही मर्दों की ,क़ुबूल की है कुदरत ने , सल्तनत कायम रखने की भरी हिम्मत हुकूमत ने , हुकुम की मेरे अनदेखी ,कभी न की हकीकत ने , बनाया है मुझे राजा ,यहाँ मेरी तबीयत ने . तरबियत ऐसी कि मूंछे नीची कर नहीं सकते , तकब्बुर में घिरे ऐसे कभी भी झुक नहीं सकते . …………………………………………………………… मुहब्बत करके भी देखो, किसी से बंध नहीं सकते , दिलकश हर नज़ारे को, यूँ घर में रख नहीं सकते , बुलंद इकबाल है अपना ,बेअदबी सह नहीं सकते चलाये बिन यहाँ अपनी ,चैन से रह नहीं सकते . चढ़ा है मतलब सिर अपने ,किसी की सुन नहीं सकते , शरम के फेर में पड़कर, तकल्लुफ कर नहीं सकते . ……………………………………………………………… शख्सियत है बनी ऐसी ,कहे ये ”शालिनी ”खुलकर , सही हर सोच है इनकी,भले बैठें गलत घर पर . ………………………………………………………………. शब्दार्थ-तखल्लुस-उपनाम ,तखैयुल-कल्पना ,तकब्बुर-अभिमान ,तकल्लुफ-शिष्टाचार ,मुसन्निफ़-
लेख क,मुसाफिरी-
यात्रा ,मसर्रत-ख़ुशी ,मुख्तलिफ -अलग मुसद्दस -उर्दू में ६ चरणों की
कविता ,मुखम्मस-५ चरणों की कविता ,मुखालिफ-विरोधी ,उल्फत-प्रेम, उलाहना -शिकायत ,कायल-मान लेना ,तरबियत-पालन-पोषण ,बुलंद इकबाल -भाग्यशाली शालिनी कौशिक [कौशल ]