20 जनवरी 2017
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
ये सब हमारी सोच पर निर्भर करता है की हम दूसरे धर्म के लोगो के सामने कैसे पेश आते है अगर आप भारत में इस तरह की मानसिकता बता रही है हिन्दुओ की तो इसके विप्रीत पाकिस्तान में हिन्दुओ के साथ मुस्लमान भी ऐसे ही वर्ताब करते है धन्यवाद
10 फरवरी 2017
संकीर्णता के आयाम अंतहीन हैं . बदलते परिवेश में हीन विचारों का बोलबाला हमारी सतही सोच और भीड़ की मानसिकता से प्रभावित होने के कारण भी है . एक ज्वलंत बिषय पर सारगर्भित लेख .
21 जनवरी 2017
सटीक
20 जनवरी 2017