जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्र सरकार व् सुप्रीम कोर्ट में विवाद फिर से गहरा गया है ,जहाँ सुप्रीम कोर्ट का कोलेजियम जजों के नाम की सिफारिश नियुक्ति हेतु कर पहली पसंद जाहिर करता है वहीँ दूसरी व् अंतिम पसंद केंद्र सरकार की होती है जिसके चलते कोलेजियम द्वारा की गयी छंटनी और संक्षिप्त बनकर रह जाती है जिसका परिणाम अभी हाल ही में जस्टिस के एम् जोसफ को कोलेजियम द्वारा सिफारिश किये जाने के बाद केंद्र सरकार द्वारा नियुक्ति न दिए जाने रूप में भुगतना पड़ा , और अभी इसी स्थगन को लेकर एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश जी डी इनामदार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल दायर की गयी है -
केंद्र कॉलेजियम की सिफारिशों पर “पिक एंड चूज़” नहीं कर सकता, जस्टिस जोसेफ की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति पर केंद्र के कदम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती ... महाराष्ट्र के सोलापुर के एक सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश जीडी इनामदार द्वारा दायर पीआईएल में न्यायमूर्ति जोसेफ को परिणामस्वरूप वरिष्ठता के संबंध में नियुक्ति के वारंट जारी करने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है।
...इनामदार ने कहा कि उन्हें कोर्ट आने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि केंद्र सरकार ने “ चौंकाने वाले तरीके से एकतरफा और आकस्मिक रूप से पृथक करके न्यायमूर्ति जोसेफ के नाम को खारिज कर दिया जबकि इस माननीय न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए के लिए कोलेजियम द्वारा वरिष्ठ वकील सुश्री इंदु मल्होत्रा की उन्नति की सिफारिश को स्वीकार कर लिया , उन्होंने कहा कि उन्होंने पीआईएल को भारतीय न्यायपालिका, विशेष रूप से भारत के सुप्रीम कोर्ट की संस्थागत अखंडता और आजादी को कायम रखने के लिए दायर किया है जिसे केंद्रीय कार्यकारी / केंद्र सरकार दबाने की कोशिश कर रही है। .
.. इनामदार ने यह भी प्रस्तुत किया कि दो सिफारिशों में से एक के नाम को अलग करने की अनुमति नहीं है। “अगर सरकार को दो नामों में से किसी एक पर कोई आरक्षण था, तो पूरी फाइल को कॉलेजियम के पुनर्विचार के लिए भेजा जाना चाहिए। इसे अलग करने की अनुमति नहीं है।”
... पिक एंड चूज़ की अनुमति नहीं है ...
इनामदार जी तो यह कह रहे हैं कि केंद्र सरकार को पिक एंड चूज़ की अनुमति नहीं है और यह भी कह रहे हैं कि उन्होंने पीआईएल को भारतीय न्यायपालिका, विशेष रूप से भारत के सुप्रीम कोर्ट की संस्थागत अखंडता और आजादी को कायम रखने के लिए दायर किया है और जजों की नियुक्ति को लेकर जो रोज़ सुप्रीम कोर्ट व् सरकार के विवाद सामने आ रहे हैं उसे देखते हुए वर्तमान में अतिशीघ्र ऐसे बहुत से पीआईएल आने व् इन पीआईएल पर सुप्रीम कोर्ट का स्वतंत्र न्यायपालिका के अस्तित्व को बचाने के लिए एकतरफा निर्णय आना ज़रूरी है ,
इस प्रकार आज की स्थितियों को देखते हुए और न्यायपालिका में कार्यपालिका के बढ़ते दखल को देखते हुए सरकार का जजों की नियुक्ति में दखल बंद होना चाहिए क्योंकि पहले तो भारत का संविधान स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना करता है और उस पर भी सुप्रीम कोर्ट संविधान का संरक्षक है किन्तु जिस कदर कार्यपालिका का न्यायपालिका में दखल बढ़ रहा है उससे यह स्वतंत्रता और संरक्षकता खतरे में पड़ गयी है जिसका निदान समय रहते हो जाना चाहिए और इसका उपाय एक मात्र यही है कि कोलेजियम सुप्रीम कोर्ट की ही वृहत पीठ को सिफारिश सौंपे और जजों की नियुक्ति का निर्णय सुप्रीम कोर्ट ही ले ,
शालिनी कौशिक
[कौशल ]