भाजपा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट बेंच, सोचकर भी दिल इस पार्टी से किसी सकारात्मक रवैये की आशा नहीं रख पाता और अगर रखना भी चाहे तो ये पार्टी अपनी हरकतों से उस पर पानी फेर देती है। २३ जुलाई २०१५ को पार्टी के प्रमुख नेता देश के केंद्रीय कानून मंत्री सदानंद गौड़ा जी कहते हैं -''कि केंद्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट बेंच चाहता है किन्तु यह खंडपीठ कहाँ हो यह उच्चस्तरीय विचार का विषय है। ''
ऐसा नहीं है कि केवल वे ही इसमें ऐसे हैं जो खंडपीठ मामले को उलझाने के लिए इस आंदोलन में दरार डालने का काम कर रहे हों। अंग्रेजी शासन से पूरी तरह से प्रेरणा ग्रहण करने वाली भाजपा अपने हर शख्स में इस गुण का गहराई से समावेश रखती है। जबसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिवक्ताओं ने यह नारा बुलंद किया है ''अभी नहीं तो कभी नहीं '' तबसे लार्ड कर्जन के पद चिन्हों पर चलने वाली यह पार्टी वेस्ट यूपी में ''फूट डालो राज करो '' की नीति ही अपनाकर काम चला रही है। सदानंद गौड़ा तो आगरा और मेरठ के बीच प्रभुत्व की लड़ाई के बीज बो गए और इनके वर्तमान यूपी में अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य इस आंदोलन की ही जड़ काटने पर आ गए उन्होंने इलाहाबाद के ही अधिवक्ताओं को प्रधानमंत्री से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट बेंच न बनायीं जाने की बात कहलवायी।
वर्ष १९७९ से आजतक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वकीलों द्वारा बेंच को लेकर तालाबंदी,कचहरी गेट पर धरना ,इलाहाबाद बार का पुतला फूंकना ,वकीलों से झड़पें ऐसी सुर्खियां समाचार पत्रों की १९७९ से बनती रही हैं और अभी आगे भी बनते रहने की सम्भावना स्वयं हमारी अच्छे दिन लाने वाली सरकार ने स्पष्ट कर दी थी क्योंकि केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के पत्र पर बेंच गठन के लिए बनी कमेटी को ही भंग कर दिया गया था . पश्चिमी यूपी में हाईकोर्ट बेंच हमेशा से राजनैतिक कुचक्र का शिकार बनती रही है और किसी भी दल की सरकार आ जाये इस मुद्दे पर अपने वोट बैंक को बनाये रखने के लिए इसे ठन्डे बस्ते में डालती रही है और इसका शिकार बनती रही है यहाँ की जनता ,जिसे या तो अपने मुक़दमे को लड़ने के लिए अपने सारे कामकाज छोड़कर अपने घर से इतनी दूर कई दिनों के लिए जाना पड़ता है या फिर अपना मुकदमा लड़ने के विचार ही छोड़ देना पड़ता है किन्तु वह पार्टी जो स्वयं को अच्छे दिन लाने वाली कहती है कहती है न गुंडाराज न भ्रष्टाचार अबकी बार भाजपा सरकार ,किन्तु जो गुंडाराज भ्रष्टाचार रोकने हेतु सबसे ज़रूरी कदम है उसे लेकर ही उसका रुख अन्य दलों जैसा ही नज़र आता है और वह भी पूरब में बसे वकीलों से अपनी बिगाड़ना नहीं चाहती है .
वकील इस मुद्दे को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता की लड़ाई लड़ रहे हैं और जनता इस बात से अभी तक या तो अनभिज्ञ है या कहें कि वह अपनी अनभिज्ञता को छोड़ना ही नहीं चाहती जबकि यह हड़ताल उन्हें हर तरह से नुकसान पहुंचा रही है और वे रोज़ न्यायालयों के चक्कर काटते है और वापस आ जाते हैं वकीलों पर ही नाराज़ होकर ,वे समझना ही नहीं चाहते कि हड़ताल की पूरी जिम्मेदारी हमारी सरकारों की है जो समय रहते इस मुद्दे को निबटाना ही नहीं चाहते और पूर्व के वर्चस्व को पश्चिम पर बनाये रखना चाहते हैं .साथ ही एक बात और भी सामने आई है कि सरकार जनता को बेवकूफ बनाये रखने में ही अपनी सत्ता की सुरक्षा समझती है और नहीं देखती कि न केवल जनता के समय की पैसे की बर्बादी हो रही है बल्कि इतनी दूरी के उच्च न्यायालय से जनता धोखे की शिकार भी हो रही है क्योंकि पास के न्यायालय में बैठे अधिवक्ता अपने मुवक्किल के सामने होते हैं और उन्हें मुक़दमे के संबंध में अपनी प्रतिबद्धता अपने मुवक्किल को साबित करनी पड़ती है किन्तु यह सब उस पार्टी को भी नहीं दिखता जो अपनी सत्ता द्वारा जनता से अच्छे दिन लाने का वादा करती है .पश्चिम का सब कुछ उठाकर पूर्व को देने की यह महत्वाकांक्षा यह पार्टी भी रखती है .
और फिर इस पार्टी से जितनी आशाएं जनता रखती है अगर गहराई से विचार किया जाये तो जिस मुद्दे को उठाकर यह पार्टी काफी दमदार रूप से सत्ता में दाखिल हुई थी उस मुद्दे का ही आज तक यह क्या कर पायी है ? राम मंदिर की नींव की ईंट तक यह पार्टी नहीं रखवा पायी जबकि १९९२ में इसने अपने आंदोलन द्वारा उत्तर प्रदेश के कितने ही घरों को उजड़वा दिया था ,देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को पूरे विश्व में धक्का पहुंचवाया था ,जिन कल्याण सिंह ने इस काम में अपनी सरकार की ही बलि दे दी थी उन्हें अपनी पार्टी तक से बाहर का रास्ता दिखा दिया था ,फिर ऐसी पार्टी से उम्मीद पालकर किसी को भी क्या मिलने वाला है समझ में नहीं आता फिर भी वेस्ट यूपी के वकील अपने समय की बर्बादी कर रहे हैं और अपने काम के साथ अन्याय .
राहुल गाँधी जिनकी पार्टी को विपक्ष के नेता का दर्जा तक नहीं मिला, को सदन में बोलने का मौका न मिले , बात समझ में आती है किन्तु ये सोचना चाहिए जो पार्टी पूर्ण बहुमत लेकर सत्ता में आयी है उसके प्रधानमंत्री जी ही सदन में बोलने की ताकत नहीं जुटा पाते तो ये पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हाई कोर्ट बेंच जैसी भारीभरकम मांग कैसे पूरी कर सकते हैं ,ये इनकी ताकत के बाहर की बात है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]