कांधला के गांव श्यामगढ़ी में छात्रा सोनी को उसी के गांव के अमरपाल ने कथित एकतरफा प्रेम में बलकटी से मारकर मौत के घाट उतार दिया और जिस वक़्त ये घटना हुई छात्रा सोनी के साथ तकरीबन 50 छात्राएं मौजूद थी किन्तु सिवाय सोनी की अध्यापिका के किसी ने उसे बचाने की कोशिश नहीं की और अब घटना के बाद छात्राएं स्कूल जाने से डर रही हैं . समाचार पत्र की खबर के मुताबिक घटना के चौथे दिन केवल चार छात्राएं स्कूल पहुंची .कितने कमाल की बात है कि अपनी जान की कितनी फ़िक्र होती है सभी को जो अपने सामने एक जीते जागते इंसान को मर जाने देते हैं और कातिल को उसे मारते देखते रहते हैं और आगे अगर घटना की गवाही की बात आये तो अपनी चश्मदीदी से भी मुकर जाते हैं .
ऐसा नहीं है कि ये पहली घटना है कांधला में जो कई लोगों के सामने हुई .यहाँ अपराधी तत्व को पता है कि आम इंसान अपनी जान की कितनी फ़िक्र करता है इतनी कि उसके सामने कोई भी बड़े से बड़ी घटना हो जाये वह मुंह नहीं खोलता .16 फरवरी सन 1997 सुबह का वक्त था .कांधला के एक डाक्टर अपनी क्लिनिक पर गए जहाँ उन्होंने देखा कि उनका क्लिनिक का सामान वहां नहीं है ,पता करने पर पता चला कि उनके दुकान मालिक ने ,जिससे उनका उसे खाली करने को लेकर केस चल रहा था ये उसी का काम है और उसी ने उनका सामान नहर किनारे फेंक दिया है बस ये जानकर उन्हें गुस्सा आ गया ,जो कि स्वाभाविक भी था ,वे घर आकर अपने परिजनों को लेकर वहां फिर पहुंचे और वहां उस वक्त जबरदस्त भीड़ इकठ्ठा हो गयी जिसमे उनके दुकान मालिक व् उसके बेटों ने उन्हें पीट -पीटकर मौत के घाट उतार दिया और भीड़ में से न किसी ने उन्हें रोका और न ही इस घटना का कोई चश्मदीद गवाह मिला .
ऐसे ही सितम्बर सन 1997 कांधला से एक व्यापार ी साथ के व्यापारियों के पैसे लेकर सामान लेने के लिए दिल्ली जाता था उस दिन उसके साथ उसका पुत्र भी था ,कांधला से रेलवे स्टेशन का रास्ता ऐसा है जो अकेले में पड़ता है बस उस व्यापारी व् उसके पुत्र को लुटेरों ने घेर लिया ये नज़ारा पीछे आने वाले बहुत से व्यापारियों ने देखा क्योंकि उस दिन बाजार की छुट्टी होने के कारण और भी बहुत से व्यापारी सामान लेने जाते थे .घटना होती देख वे पीछे रुक गए क्योंकि घटना उनके साथ थोड़े ही हो रही थी लुटेरों ने पीटकर व् गोली मारकर दोनों बाप-बेटों को मार दिया और इस घटना का भी कोई चश्मदीद गवाह नहीं मिला जबकि शहर वालों को आकर घटना का पता उन्ही पीछे के डरपोक अवसरवादी व्यापारियों ने बताया .
ऐसे ही अभी 11 दिसंबर 2017 को कांधला में स्टेट बैंक के पास एक कोचिंग सेंटर में गांव मलकपुर की एक छात्रा पढ़ने जा रही थी सारी सड़क चलती फिरती थी पूरी चहल पहल थी तभी एक लड़का जो लड़की के ही गांव का था उसे छेड़ने लगा ,लड़की ने थोड़ी देर बर्दाश्त किया पर और लोगों ने ये देखा भी और किसी ने कुछ नहीं कहा ,आख़िरकार लड़की का धैर्य जवाब दे गया और उसने चप्पल निकालकर लड़के को खूब पीटा तब दो एक लोग भी सड़क पर उसके समर्थन में आये पर पहले शायद ये सोचकर नहीं आये कि हमारी बहन बेटी थोड़े ही है जो हम बोलें.
इसी तरह अगर लोग डरते रहे तो अपराधियों का हौसला बढ़ता ही जायेगा .ये एक निश्चित बात है कि वारदात करने वाले अपराधी बहुत कम होते हैं और चश्मदीद बहुत ज्यादा किन्तु एक आम मानसिकता अपराधी जानता है कि तेरी दुर्दांतता के सामने कोई नहीं आएगा ,तू कुछ भी कर कोई नहीं बोलेगा इसलिए भीड़ भी उनका वारदात करने का इरादा डिगा नहीं पाती और अगर देखा जाये तो लड़के-लड़की का भेद करने वाले कितने गलत हैं अरे जो गुण लड़कों में है वही तो लड़कियों में भी है फिर काहे का अंतर .लड़के अगर अपनी जान की फ़िक्र करते हुए अपराधी को अपराध करने देते हैं तो लड़कियां भी तो यही कर रही हैं .लड़के अगर किसी की हत्या होने पर बाजार-क़स्बा सूना कर देते हैं तो लड़कियां स्कूल सूना कर रही हैं फिर कम से कम अब तो ये भेद ख़त्म हो जाना चाहिए और इसमें गढ़ीश्याम की लड़कियों के सिर पर बहादुरी का सेहरा बांधना चाहिए .
चलिए यह तो रहा दुःख इंसानी मतलबी मिजाज व् अवसरवादिता की आदत का जिसमे इंसान यह नहीं देखता कि जो हश्र आज दूसरा झेल रहा है कल को तू भी झेल सकता है इसलिए तुझे अपना हौसला बढ़ाना चाहिए न कि अपराधी या अपराध का .अभी हाल ही में एक डब्ड फिल्म ''बेख़ौफ़ खाकी ''देखी उसी की प्रेरणा से मैं आप सबसे भी यही कहती हूँ कि हमारी मदद को हमेशा पुलिस नहीं आएगी हम सब जिस आपदा का सामना स्वयं कर सकते हैं उसका सामना हमें स्वयं करना चाहिए क्योंकि यदि हम अपने में हौसला रख इन विपदाओं का सामना करेंगे तो ये विपदाएं हमारे सामने पड़ने से पहले कम से कम 100 बार सोचेंगी और अगर ऐसा नहीं करेंगे तो हमेशा डरते डरते ही ज़िंदगी गुजारते रहेंगे और ये डर ऐसा डर है जिसके आगे जीत नहीं .
शालिनी कौशिक
[कौशल]