अमरावती सी अर्णवनेमी पुलकित करती है मन मन को ,
अरुणाभ रवि उदित हुए हैं खड़े सभी हैं हम वंदन को .
अलबेली ये शीत लहर है संग तुहिन को लेकर आये ,
घिर घिर कर अर्नोद छा रहे कंपित करने सबके तन को .
मिलजुल कर जब किया अलाव गर्मी आई अर्दली बन ,
अलका बनकर ये शीतलता छेड़े जाकर कोमल तृण को .
आकंपित हुआ है जीवन फिर भी आतुर उत्सव को ,
यही कामना हों प्रफुल्लित आओ मनाएं हर क्षण को .
पायें उन्नति हर पग चलकर खुशियाँ मिलें झोली भरकर ,
शुभकामना देती ''शालिनी''मंगलकारी हो जन जन को .
शालिनी कौशिक
[कौशल]
शब्दार्थ :अमरावती -स्वर्ग ,इन्द्रनगरी ,अरुणिमा -लालिमा ,अरुणोदय-उषाकाल ,अर्दली -चपरासी ,अर्नोद -बादल ,तुहिन -हिम ,बर्फ ,अर्नवनेमी -पृथ्वी