करते हैं बैठ चर्चा,
खाली ये जब भी होते,
कोई काम इनको करते
मैने कभी न देखा.
...................................................
वो उसके साथ आती,
उसके ही साथ जाती,
गर्दन उठा घुमाकर
बस इतना सबने देखा.
...................................................
खाते झपट-झपट कर,
औरों के ये निवाले,
अपनी कमाई का इन्हें
टुकड़ा न खाते देखा.
...................................................
बेचारा उसे कहते,
जिसकी ये जेब काटें,
कुछ करने के समय पर
मौके से भागा देखा.
.....................................................
ठेका भले का इन पर,
मालिक ये रियाया के,
फिर भी जहन्नुमों में
इनको है बैठे देखा.
........................................................
शालिनी कौशिक
(कौशल)